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गुरु की कृपा आशीर्वाद से शिष्यों के सब कार्य पूर्ण होते हैं – आचार्य श्री वर्धमान सागर जी

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धरियावद (विश्व परिवार)। आचार्य श्री वर्धमान सागर जी संघ सहित धरियावद विराजित हैं संघ सानिध्य में आचार्य श्री धर्म सागर जी का 57 वा आचार्य पदारोहण वर्ष एवम आचार्य श्री वर्धमान सागर जी का 57 वा दीक्षा वर्ष उत्साह, भक्ति एवम श्रद्धा पूर्वक मनाया। इस अवसर पर आचार्य श्री धर्मसागर जी के प्रति भावांजलि में आचार्य श्री वर्धमान सागर जी ने बताया कि आज हम जो कुछ है हमारे पूर्वाचार्यों गुरुओं का आशीर्वाद है कि हम प्रथमाचार्य श्री शांति सागर जी की परंपरा का कमजोर कंधो से संचालन कर रहे हैं। गुरु के कृपा से शिष्यों के सभी कार्य पूर्ण होते हैं। आचार्य श्री धर्म सागर जी बहुत ही पुण्य शाली आत्मा रहे क्योंकि आपका जन्म और समाधि मरण तीर्थंकर भगवान के कल्याणक पर हुआ। आपने आचार्य पद फागुन शुक्ल 8 दिनांक 24 फरवरी 1969 को 11 दीक्षा दी । उस दिन हमें भी दीक्षा देकर उपकार किया। यह भावांजलि दीक्षागुरु आचार्य श्री धर्म सागर जी के 57 वे आचार्य पदारोहण वर्ष के अवसर पर आयोजित धर्मसभा में आचार्य श्री वर्धमानसागर जी ने प्रगट की।गज्जू भैया,वीणा दीदी ,राजेश पंचोलिया अनुसार आचार्य श्री धर्म सागर जी महाराज के बारे में विनियांजलि प्रस्तुत करते हुए आचार्य श्री ने अनेक संस्मरण भावविभोर होकर सुनाएं। आचार्य श्री शांति सागर जी की परंपरा के तृतीय पट्टाधीश होने के कारण वर्ष 1974 में भगवान श्री महावीर स्वामी का 2500 वा निर्वाण महोत्सव आचार्य श्री धर्म सागर जी के प्रमुख सानिध्य में देहली में मनाया गया। जैन धर्म के चारो समुदाय में कभी भी दिगंबर धर्म के सिद्धांतो की उपेक्षा नही होने दी।आचार्य श्री ने बताया कि आप इतने निस्पृही थे कि सिंहासन पर नही बैठते थे।आपके अभिवंदन ग्रन्थ को हाथ तक नहीं लगाया । इसी परिसर ने 56 जिनालय बनाने की योजना हेतु मंगल आशीर्वाद भी दिया । इसके पूर्व मुनि श्री पुण्य सागर जी महाराज ने आचार्य धर्म सागरजी एवंआचार्य श्री वर्धमान सागर जी का गुणानूवाद कर बताया कि इससे ज्ञान में वृद्धि ओर चारित्र निर्मल होता हैं। धरियाबाद का एक संस्मरण बताया कि जब आचार्य श्री मुनि अवस्था में थे तब आपकी वाणी अवरुद्ध हो गई थी जैसे ही मुनि श्री वर्धमान सागर जी ने आचार्य धर्मसागर जी की चरण वंदना धरियाबाद के इसी चंद्रप्रभु जिनालय में की तो आप की वाणी पूर्ण खुल गई आपकी 19 वर्ष की उम्र में भी नेत्र ज्योति चली गई थी जो प्रभु भक्ति से पुनः प्राप्त हुई। संघस्थ मुनि श्री हितेंद्र सागर जी ने भी दोनों आचार्यों का गुणानुवाद किया महान आचार्यों के मंगलमय स्मरण से पापों का प्रक्षालन होता हैं।पंडित श्री हंसमुख ने फागुन की अष्टांहिका में समाज की और से सिद्ध चक्र महामंडल विधान आचार्य संघ सानिध्य में करने हेतु सानिध्य एवं आशीर्वाद चाहा। आपने भी आचार्य श्री धर्म सागर जी ओर आचार्य श्री वर्धमान सागर जी का गुणानूवाद किया। आचार्य श्री के सानिध्य में आचार्य श्री धर्मसागर जी की पूजन हुई। संयोग था कि 24 फरवरी फागुन शुक्ला 8 को आचार्य श्री धर्म सागर जी ने 11 दीक्षाए दी जिनमे मुनि श्री वर्धमान सागर जी को 19 वर्ष की आयु में दीक्षा दी। वर्तमान में आचार्य श्री धर्म सागर जी के आचार्य श्री वर्धमान सागर जी,आर्यिका श्री शुभ मति जी सहित 6 शिष्य है।आज आचार्य श्री वर्धमान सागर जी का भी समाज ने 57 वा दीक्षा दिवस मनाया समस्त मुनिराजो ने आचार्य श्री को जिनवाणी भेंट की।अनेक श्रद्धालुओं ने चरण प्रक्षालन और विशेष द्रव्यों से पूजन की तथा आचार्य श्री का गुणानुवाद किया।

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