जयपुर (विश्व परिवार)। आज हम पूज्य गुरु मां गणिनी आर्यिका 105 विशुद्ध मति माताजी का 76वा जन्म जयंती महोत्सव मना रहे हैं। निश्चित रूप से ऐसी भारती की श्रुतज्ञ नंदनी कोई और नहीं है। यदि है तो वह गणिनी माँ श्री विशुद्धमति माताजी हैं। गुरु माँ नारी शक्ति का प्रतिरूप है आपने संयम त्याग के द्वारा अपनी शिक्षा ज्ञान के द्वारा न जाने कितनी बेटियों को धर्म मार्ग पर अग्रसर करते हुए मोक्षमार्ग पर अग्रसर किया है।आप इस युग की सर्वाधिक दीक्षा प्रदात्री गणिनी आर्यिका है ।
आपको भारत गौरव की उपाधि से भी सुशोभित किया जा चुका है। हम सबके लिए एक पुण्य का अवसर है की हम गुरु माँ का 76 जन्म जयंती महोत्सव मना रहे है। इनकी साधना के विषय मे जितना लिखा जाए कम है।
गणिनी गुरु माँ विशुद्धमति माताजी जन्म जयंती महोत्सव पर एक काव्य रचना
है युग की सर्वाधिक दीक्षा प्रदात्री कहते गुरुवर ज्ञानी
थी माघ सुदी दोज की तिथि ख़ुशहाली हर्षाई
नवजात शिशु को देख लखकर माँ श्रीदेवी हर्षाई
1949 के दिन परिकर में खुशियां थी
है युग की सर्वाधिक दीक्षा प्रदात्री कहते गुरुवर ज्ञानी
जो यू बाला बड़ी हुई संस्कार झलक आते
त्यागे कन्दमूल बैठे जब चार वर्ष आते
माँ की ऊगली पकड़ पकड़ जाती है मंदिर को
स्तुति करती पूजा करती ध्याति प्रभुवर को
लखकर छवि प्रभुवर की माया मन मुस्काती थी
है युग की सर्वाधिक दीक्षा प्रदात्री कहते गुरुवर ज्ञानी
राजेन्द्र वीरेंद्र अग्रज भ्राता इनके
धीर वीर गंभीर स्वयं व्यवसायी व्रती के
इकलौती छोटी बहना को देख मन में वो इठलाते
कभी गोद में उठाकर, कभी जाकर छिप जाते
रही मुराद अधूरी दोनो भाई के मन की
है युग की सर्वाधिक दीक्षा प्रदात्री कहते गुरुवर ज्ञानी
बालपन से जु यू बडी हुई कहती है माता से
माँ मुनि के दर्शन करवा दो कहे हित मित प्रिय वचनों से
सीमंधर मुनि नगर माही मंदिर में रहे विराज
दर्शन करने आई माया का उनने खोला राज
तुम धन्य हो गई माँ बनकर तेजस्वी माया की
है युग की सर्वाधिक दीक्षा प्रदात्री कहते गुरुवर ज्ञानी
मिल गया निमित्त इस माया को अब आगे बढ़ने का
कर दिया शूद्र जल त्याग मनोरथ अब संयम धरने का
माँ बोली रुको रुको मुनिवर क्यो जल्दी करते हो
सुकमारी माया है मेरी आयु न लखते हो
जाओ जाओ ये माया माया पाए शिवपुर की
प्राणो सी प्यारी इकलौती है श्रीदेवी की
है युग की सर्वाधिक दीक्षा प्रदात्री कहते गुरुवर ज्ञानी
नन्ही माया की धर्मनीति परिकर को न भाई
शादी जल्दी से हो जाए यह युक्ति मन आई
जाना यू ही माया ने माँ से यू वचन कहे
माँ पग धोने से अच्छा क्यो कीचड़ कदम गहे
सोचो सोचो माँ तुम मेरे अंदर की अभिव्यक्ति
प्राणो सी प्यारी इकलौती है श्रीदेवी की
है युग की सर्वाधिक दीक्षा प्रदात्री कहते गुरुवर ज्ञानी
संयोग तभी महावीर कीर्ति गुरुवर का मिल जाता
गदगद होती मन माया विश्वास झलक आता
जु ही चरण नमन किया गुरुवर ने वचन ये कहे
क्यो डरती हो व्रत लेने से व्रत सदा अखण्ड रहे
वृत ब्रह्मचर्य का ग्रहण किया आयु थी चौदह की
प्राणो सी प्यारी इकलौती है श्रीदेवी की
है युग की सर्वाधिक दीक्षा प्रदात्री कहते गुरुवर ज्ञानी
गुरुवर बोले शासन की डोरीखुद ये थामेगी
महाव्रत को लेकर निश्चित ही गणिनी पद को पाएगी
मन की मुराद पुरी होते ही मंज़िल मिल जाती
अब ब्रह्मचारीणी बनकर के माया मुस्कराती
यू ललक बढ़ गई अब आशा है पीछी की
प्राणो सी प्यारी इकलौती है श्रीदेवी की
है युग की सर्वाधिक दीक्षा प्रदात्री कहते गुरुवर ज्ञानी
धर्म ध्यान बीच परिवार कुछ रास नही आया
सीमंधर मुनि के चरणों में अग्रिम पद यू पाया
ले सात प्रतिमा केशलोंच स्वयं कीना
ग्रहवास यहा पर त्याग किया मंदिर मे चित दीना
सोलह वर्ष की अल्प उम्र विस्मारित करती थी
प्राणो सी प्यारी इकलौती है श्रीदेवी की
है युग की सर्वाधिक दीक्षा प्रदात्री कहते गुरुवर ज्ञानी
तब ब्रह्मचारीणी माया ने पुरूषार्थ किया भारी
दिवस रात का भेद मिटा किया शास्त्रा अध्यन जारी
सब आगम अध्यन कंठस्थ कर ह्रदय समा पाऊ
चाहे कोई भी प्रश्न रहे उत्तर में दे पाऊ
समीचीन हो ज्ञान ध्यान है यही पाने की
प्राणो सी प्यारी इकलौती है श्रीदेवी की
है युग की सर्वाधिक दीक्षा प्रदात्री कहते गुरुवर ज्ञानी
सिद्धान्त ग्रंथ के अमृत रस का पान मुझे करना
जाना होगा इस अध्यन को मुझे किसी शुरू शरणा
जो ही सोचा आकर्ष रूप आती एक मुरुत
माँ कृष्णा बाई खड़ी सामने आती एक सूरत
आदेश मिला विश्वास जागा यह उम्र थी 19 की
प्राणो सी प्यारी इकलौती है श्रीदेवी की
है युग की सर्वाधिक दीक्षा प्रदात्री कहते गुरुवर ज्ञानी
ग्राम इसरी मे आश्रम था कृष्णा बाई का
बुंदेलखंड की यात्रा करके मिलन हुआ माँ का
देखा जु ही उत्साहित हो मन यू ही दोड़ जाता
माँ कृष्णा बाई की चर्चा संतोष ह्रदय लाता
चर्चा चर्या कर तैयारी अध्यन की
प्राणो सी प्यारी इकलौती है श्रीदेवी की
है युग की सर्वाधिक दीक्षा प्रदात्री कहते गुरुवर ज्ञानी
गोमटसार के गहन अध्यन से तत्व का ग्रहण किया
माँ कृष्णा बाई के दिल मे अपना स्थान लिया
यू ही जाना पार्श्व प्रभु के पंचकल्याणक को
मचल उठा मन दीक्षा को पाने को
माँ कृष्णा बाई बोली डोर सभालो आश्रम की
प्राणो सी प्यारी इकलौती है श्रीदेवी की
है युग की सर्वाधिक दीक्षा प्रदात्री कहते गुरुवर ज्ञानी
करबद्ध प्रणाम किया मस्तक भू पर टेका
गुरुवर महाव्रत देदे मन भव भव सैट भटका
पारद्रष्टि डाली गुरुवर ने जब माया पर
भाग्य द्रष्टि धारी इससे होगा इतिहास अमर
इसी उत्साह रही गुरुवर से पिच्छि पाने की
प्राणो सी प्यारी इकलौती है श्रीदेवी की
है युग की सर्वाधिक दीक्षा प्रदात्री कहते गुरुवर ज्ञानी
सन 1970 की माग सुदी तीज थी प्यारी
नारी की परम अवस्था गुरुवर से मिली न्यारी
गुरुवर है जो निर्मल सिंधु जो परम हितेषी थे
रत्नत्रय के आदर्श रहे मन वचन अम्रत जेसे थे
अब जगत पूज्य बन गयी ये माँ विशुद्धमति
प्राणो सी प्यारी इकलौती है श्रीदेवी की
है युग की सर्वाधिक दीक्षा प्रदात्री कहते गुरुवर ज्ञानी
संकलन अभिषेक जैन लुहाड़िया रामगंजमंडी