दिल्ली (विश्व परिवार)। ईद अल-अधा से पहले, कई स्थानीय लोग जंतर मंतर पर पशु कुर्बानी के खिलाफ प्रदर्शन के लिए एकत्र हुए। “पशु कुर्बानी पर प्रतिबंध लगाओं” और ख़ुदा खून नहीं चाहता” जैसे संदेशों वाले बैनरों के साथ, उन्होंने नारे लगाए: “बंद हो, बंद हो, पशु शोषण बंद हो। जानबर मरना नहीं चाहते, पशु कुर्बानी गलत है: पशु बलि गलत है; मांस खाना नहीं, हिंसा है।” कुछ प्रदर्शनकारियों ने खुद को कुर्बानी चढ़ाए जा रहे जानवरों जैसा रंगा, उनकी गर्दनों पर लाल रंग लगाकर खून का प्रतीक बनाया।
इस प्रदर्शन का मुख्य उद्देश्य यह संदेश फैलाना है कि जानवरों की हत्या नैतिक रूप से गलत है और इसकी कोई आवश्यकता नहीं है, चाहे वह कुर्बानी के लिए हो, बलि के लिए हो, मांस, अंडे या दूध के लिए। एक कार्यकर्ता पिंकी शर्मा ने कहा, “हम किसी त्योहार या धर्म को निशाना नहीं बना रहे। हम हर प्रकार के पशु शोषण के खिलाफ है, जिसे किसी भी तरह से उचित नहीं ठहराया जा सकता। हमारे अभियान और प्रदर्शन मांस, शहद, डेयरी, पशु परीक्षण और अन्ध्र कई शोषणों के खिलाफ हैं।”
आम आलोचनाओं को संबोधित करते हुए एक आयोजक मंजिरी ने कहा, “जब हम डेयरी उद्योग की बात करते हैं, तो कुछ हिंदू कहते हैं कि हम कुर्बानी पर नहीं बोलते। लेकिन सच्चाई यह है कि हर पशु उत्पाद में शोषण होता है। दूध हर धर्म का व्यक्ति पीता है। एक गलत कार्य किसी दूसरे गलत कार्य को सही नहीं बनाता। चाहे वह डेयरी हो, मांस, कुर्बानी, बलि या कोई और परंपरा जिसमें जानवरों का शोषण होता है, हम उसके खिलाफ हैं। हम चाहते हैं कि लोग समझें कि जानवर भी संवेदनशील प्राणी हैं जिन्हें दर्द महसूस होता है, ठीक हमारी तरह। अब समय आ गया है कि हम उनका शोषण बंद करें और उनके अधिकारों की लडाई लड़ें।”
एक अन्ध कार्यकर्ता मोहिनी शर्मा ने कहा कि हमारा समाज हमें यह सोचने के लिए तैयार करता है कि जानवर हमारे उपभोग के लिए हैं, जो कि भेदभाव का एक रूप है जिसे प्रजातिवाद (speciesism) कहा जाता है। उन्होंने जोड़ा, “हमें इसे खारिज करना होगा, उन्हें एक व्यक्ति के रूप में देखना होगा, न कि संसाधन के रूप में।”
प्रदर्शनकारियों का एकजुट संदेश स्पष्ट है: जानवरों को न्याय मिलना चाहिए, और उनके किसी भी उद्देश्य के लिए किए जाने वाले शोषण को अब खत्म होना चाहिए।