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आर्जव धर्म : कुटिलता छोडो सहजता प्राप्त करो : आचार्य श्री विशुद्ध सागर जी महाराज

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कोल्हापूर(विश्व परिवार)। पर्वराज पर्युषण के अवसर पर दिगंबर जैनाचार्य 108 श्री विशुद्ध सागर जी गुरुदेव ने ” श्रावक साधना संयम संस्कार शिवीर” में धर्म सभा को संबोधन करते हुए कहा कि –
मायाचारी महा – अनर्थकारी, कष्टकारी, दुखद ही होती हैं। मायाचारी करने वाला कभी भी सुखद जीवन नहीं जी सकता हैं। माया का फल दुर्गती होती है। मायाचारी को तिर्यंच बनना पडता है | माया के चक्कर में पडकर मानव दानव बन जाता है और फिर वह मानवता भुलकर अनर्थ पर अनर्थ कर स्व पर को कष्ट में डालता है। माया के कारण ही व्यक्ती अकल्याण, अशांती, अनर्थकारी, अवनती के मार्ग पर अग्रसर होता है। फलत : अपने धन- वैभव, यश- ख्याती, सौदर्य,समृद्धी, सुख शांती को खो देता है।
मायाचारी से कभी भी किसी का हित नहीं होता है। जो मायाचारी कपटी दुसरो को ठगता है वह निश्चित ही दुसरो से ठगा जाता है। जो दुसरो को गड्ढा खोदता है, वही एकदिन स्वयं उस गड्ढे में गिरकर दुःखी हो जाता है। दुःख से बचना है तो मायाचारी छोडो, कपट मत करो, कटुता छोडो, जटीलता का त्याग करो, आर्जव धर्म स्वीकार करो।
सरलता, नम्रता, सहजता ही अमृत है। सरलता से सर्व सिद्धीया प्राप्त हैं। सरलता से सन्मान प्राप्त होता है। विनय ही मुक्ती का द्वार है। विनय में सुख -शांति है। विनय ही धर्म का आधार है। विनय में ही आनंद है। सरलता ही पूज्य बनाती है।
सरलता ही प्रसिद्धी दिलाती है। सरलता से ज्ञान बढता है। सरलता से विशुद्धी वर्धमान होती है। सरलता से सौन्दर्य वृद्धिमान होता है। सरलता प्राप्त करो, सरलता मानवता का चिन्ह है। सरलता मानवीय गुण है। सरलता सज्जनो कि कुल विद्या है। सरलता से ही आत्म उत्थान होता है। सरलता गुणकारी है।
आकांक्षाओं से मायाचारी का जन्म होता है। जितनी अधिक आकांक्षाये, कामनाये होंगी उतनी अधिक मायाचारी होगी। इच्छाये कम करो, संतोषी बनो।
व्यक्ती जितना श्रम (मेहनत), पुरुषार्थ, उपाय दुसरों को ठगने में करता है, यदी उतनी मेहनत अच्छे कार्यो में करे तो उसे कभी मायाचारी नहीं करना पडेगा। सरलता से जो कार्य हो सकता है, वह मायाचारी से संभव नहीं है। सरल बनो, सरलता सीखो, सरलता का व्यवहार करो। सरलता से ही व्यक्ती सबका प्रिय हो सकता है।
अन्यक्षेत्र में यदि मायाचारी कि तो वह धर्म क्षेत्र में सरलता, आर्जव धर्म से दूर कि जा सकती है, परंतु धर्म क्षेत्र में कि गई मायाचारी बज्र के समान कठोर होती है। सरलता से सबको वश में किया जा सकता है। सरलता से गुरू भी प्रसन्न हो जाते हैं।

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