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आर्यिका श्री ज्योतिमति जी का सातवां उपवास सहित संयम साधना जारी। मुनि संघ आचार्य श्री वर्धमान सागर जी के दर्शन हेतु पारसोला पधारे

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पारसोला(विश्व परिवार)। घरियाबाद के पारसोला कस्बे में पंचम पट्टाघीश आचार्य श्री वर्धमान सागर जी अपने विशाल संघ सहित सन्मति भवन पारसोला में विराजित है। जयंतीलाल कोठारी एवं ऋषभ पचौरी ने बताया कि आचार्य श्री सुनील सागर जी के शिष्य मुनि श्री श्रुतेश सागर जी, मुनि श्री सुश्रुत सागर जी एवम मुनि श्री सक्षम सागर जी महाराज आचार्य श्री वर्धमान सागर जी के दर्शन हेतु पारसोला पधारे। 6 दिसंबर से चारों प्रकार के आहार का त्याग कर यम संल्लेखना धारी की संयम साधना निरंतर चल रही है।क्षपकोतमा आर्यिका श्री ज्योतिमति जी को संबोधित करते हुए आचार्य श्री ने बताया कि शास्त्रीय भाषा में सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यग्चारित्ररूप रत्नत्रय सहित परिणामों, भावों के रहते हुए इस देह का विसर्जन त्याग या छोड़ना समाधिमरण कहलाता है। समाधिमरण का दूसरा नाम शास्त्रों में सल्लेखना मरण के नाम से देखने में आता है और सल्लेखनामरण का अर्थ भी वही है कि सत् लेखना सत् सम्यक प्रकार से लेखना याने कृश करना नष्ट करना, किसे कृश करना कम करना शरीर व कषाय को सम्यक शब्द का अर्थ होता है किसी सांसारिक ख्याति लाभ पूजा से रहित होकर अन्तरंग और बहिरंग तपश्चरण करना सल्लेखना मरण कहलाता है। यह देशना आचार्य श्री वर्धमान सागर जी महाराज ने आर्यिका श्री ज्योति मति जी को संबोधित करते हुए बताई।

ब्रह्मचारी गज्जू भैया एवं राजेश पंचोलिया अनुसार आचार्य श्री ने आगे बताया कि मृत्यु को अपनी आँखों से देखना समाधिमरण है। जो जिनेंद्र वचनों पर श्रद्धान रखकर संसार शरीर भोगों से विरक्त होकर गुरु शरण में जाकर श्रावक के उत्कृष्ट पद आर्यिका या मुनि दीक्षा को ग्रहण करता है।ऐसा व्यक्ति अपने संयमी जीवन को (जन्म) अपनी आँखों से देखता है उसका मरण समाधिमरण कहलाता है। सरल भाषा में अगर समाधिमरण को समझना चाहे तो सभी शत्रु-मित्र स्वजन परजन से क्षमा माँगकर व क्षमा कर आहार पानी की इच्छा से रहित होकर, गुरु श्री मुख से पंचपरमेष्ठी का श्रवण करते हुए गुरु चरण में अपने प्राणों का विसर्जन करना समाधिमरण है। होश में मरना समाधिमरण है और बेहोशी में मरना मौत है जो कि प्रायः सबकी होती है ।
राजेश पंचोलिया इंदौर

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