(विश्व परिवार)। जैसे-जैसे भारत 2047 तक विकसित भारत बनने के अपनी मंज़िल की तरफ आत्मविश्वास से आगे बढ़ रहा है, बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ योजना का परिवर्तनकारी प्रभाव इस बात का प्रमाण है, कि हम महिलाओं के विकास से महिला-नेतृत्व में विकासतक के सफर में कितने आगे आ गए हैं। स्वामी विवेकानन्द ने एक बार कहा था, ”जब तक महिलाओं की स्थिति में सुधार नहीं होता, तब तक विश्व के कल्याण की कोई संभावना नहीं है। किसी भी पंछी के लिए महज़ एक पंख के साथ उड़ना संभव नहीं है।” उनके इस कालजयी दृष्टिकोण से प्रेरित होकर, माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने 22 जनवरी 2015 को हरियाणा के पानीपत में बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ (बीबीबीपी) योजना की शुरूआत की। इस ऐतिहासिक पहल का मकसद भारत में गिरते बाल लिंग अनुपात (सीएसआर) पर ध्यान देना और यह सुनिश्चित करना था कि देश भर में लड़कियों और महिलाओं को वे सभी अवसर, देखभाल और सम्मान मिलें, जिनकी वे हकदार हैं।
2011 की जनगणना में बाल लिंग अनुपात 918 होने के साथ सामाजिक पूर्वाग्रहों और नैदानिक उपकरणों के दुरुपयोग की चिंताजनक तस्वीर सामने आई। एक लक्ष्य के साथ तथा जीवन-चक्र-केंद्रित कदमों के ज़रिए, बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ को न केवल इस तस्वीर को बदलने के लिए लॉन्च किया गया था, बल्कि एक ऐसे भविष्य की नींव भी रखी गई, जहां महिलाएं नेतृत्व करें और आगे बढ़ें।
पिछले एक दशक में, इस योजना ने महत्वपूर्ण प्रगति की है। स्वास्थ्य प्रबंधन सूचना प्रणाली के अनुसार, 2014-15 में जन्म के समय राष्ट्रीय लिंग अनुपात 918 से बढ़कर 2023-24 में 930 हो गया है। संस्थागत प्रसव के मामले भी 2014-15 में 61% से बढ़कर 2023-24 में 97.3% हो गए हैं, जबकि पहली तिमाही में प्रसवपूर्व देखभाल पंजीकरण 61% से बढ़कर 80.5% हो गया है। माध्यमिक स्तर पर लड़कियों का सकल नामांकन अनुपात 2014-15 में 75.51% से बढ़कर 2021-22 में 79.4% हो गया। इसके अलावा, पुरुष और स्त्री नवजात शिशुओं के बीच शिशु मृत्यु दर में अंतर तकरीबन खत्म हो गया है, जो उत्तरजीविता और देखभाल में समानता के प्रति हमारी प्रतिबद्धता को दर्शाता है।
हमारे माननीय प्रधानमंत्री के दूरदर्शी नेतृत्व में, बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ आंदोलन, आंकड़ों में सुधार की सीमा से कहीं आगे निकल गया है।इसने महिला सशक्तिकरण के मायने ही बदलकर रख दिए हैं। अक्टूबर 2023 में 150 महिला बाइकर्स द्वारा 10,000 किलोमीटर की यात्रा, यशस्विनी बाइक अभियान जैसी पहल, भारत की बेटियों के अदम्य साहस का प्रतीक है। 2022 में कन्या शिक्षा प्रवेश उत्सव ने, स्कूल न जाने वाली करीब 1,00,786 लड़कियों को फिर से स्कूल जाने के लिए प्रेरित किया, जो जीवन को बदलने में शिक्षा की शक्ति का प्रदर्शन है। कौशल विकास पर आधारित राष्ट्रीय सम्मेलन ने, कार्यबल में महिलाओं की सक्रिय भागीदारी के महत्व पर जोर दिया, जिससे हम महिलाओं के नेतृत्व वाले विकास के अपने दृष्टिकोण के और करीब आ पाए।
आज, जब हम इस परिवर्तनकारी पहल के दस साल पूरे होने का जश्न मना रहे हैं, साफ है कि मिशन अभी ख़त्म नहीं हुआ है। हमें अगर विकसित भारत के अपने सपने को हासिल करना है, तो यह तय करना जरूरी है कि लड़कियां और महिलाएं हमारे राष्ट्र-निर्माण प्रयासों के केंद्र में रहें। भारत तब तक विकसित नहीं हो सकता, जब तक इस देश की लड़कियाँ और महिलाएँ अपनी पूरी क्षमता का उपयोग करने के काबिल नहीं हो जातीं। यह हमारे लिए निर्णायक कार्रवाई करने का वक्त है। हमें गर्भधारण पूर्व और प्रसव पूर्व निदान तकनीक (पीसीपीएनडीटी) अधिनियम 1994 के कार्यान्वयन को मजबूत करना चाहिए, शिक्षा में ड्रॉपआउट दर को संबोधित करना चाहिए, कौशल विकास कार्यक्रमों का विस्तार करना चाहिए और लड़कियों के जीवन के हर चरण में ज़रुरी मदद देनी चाहिए।
वित्तीय वर्ष 2023-2024 के लिए, भारत में महिला श्रम बल की भागीदारी 41.7% थी। हालाँकि यह पिछले वर्षों की तुलना में एक महत्वपूर्ण वृद्धि है, लेकिन फिर भी यह पुरुषों की श्रम शक्ति भागीदारी के मुकाबले कम है। ग़ौर करने की बात यह भी है कि शहरी क्षेत्रों में महिला श्रम बल की भागीदारी, देश के ग्रामीण क्षेत्रों में महिला श्रम बल की भागीदारी से कम है। भारत में बड़ी संख्या में महिलाएँ अवैतनिक घरेलू देखभाल कार्य में शामिल हैं। हमारा प्रयास न केवल अधिक महिलाओं के लिए अपने घरेलू क्षेत्रों को छोड़कर घर से बाहर रोजगार करने के लिए एक माहौल को बढ़ावा देना होना चाहिए, बल्कि एक वाजिब कैरियर और पेशे के तौर पर देखभाल कार्य को बढ़ावा देने के साधन भी बनाने चाहिए, ताकि जो महिलाएं देखभाल कार्य में प्रशिक्षित हैं, और इसे आगे बढ़ाना चाहती हैं, तो वे इससे भी वित्तीय आज़ादी हासिल कर सकें और अपने प्रयासों से देश की आर्थिक वृद्धि में योगदान भी दे सकें। विश्व आर्थिक मंच के अनुसार, कार्यबल लिंग में अंतर को कम करने से वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद में 20% की वृद्धि हो सकती है। भारत के लिए, यह सिर्फ एक अवसर नहीं है, बल्कि एक ज़रूरत है। महिलाओं के नेतृत्व वाला विकास, एक ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था के हमारे लक्ष्य को प्राप्त करने और 2047 तक एक विकसित राष्ट्र बनने के लिए बेहद ज़रूरी है। बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ योजना महज़ एक कार्यक्रम नहीं है, बल्कि यह एक ऐसा आंदोलन है, जिसने लाखों लोगों को प्रेरित किया है और महिलाओं को भारत की प्रगति में सबसे आगे खड़ा किया है।
हमारे माननीय प्रधानमंत्री के दूरदर्शी नेतृत्व में, आज हम एक ऐतिहासिक बदलाव देख रहे हैं। महिला विकास से लेकर महिला नेतृत्व वाले विकास तक, भारत की बेटियां चेंजमेकर, उद्यमी और नेता के रूप में उभर रही हैं। वे अपनी कामयाबी की कहानी की हीरो खुद हैं। आइए हम सब मिलकर उनके सपनों को संजोएं और उनकी यात्राओं को सशक्त बनाएं, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि भारत अपनी आजादी के 100 साल एक ऐसे राष्ट्र के रूप में पूरे करे, जहां हर महिला इसके भाग्य को आकार देने में अहम भूमिका निभाएं।