- समाधि के 10 दिन पहले आचार्य श्री विद्यासागर महाराज ने मुझे नये आचार्य के रूप में समय सागर जी का नाम बताया था-मुनिश्री योग सागर महाराज
सागर (विश्व परिवार)। भाग्योदय तीर्थ सागर में 27 मई को आचार्यश्री विद्यासागर महाराज के गुरु आचार्य श्री ज्ञान सागर महाराज के समाधि दिवस निर्यापक मुनि श्री योगसागर महाराज के ससंघ सानिध्य मनाया गया शुरुआत में श्री जी का अभिषेक शांतिधारा हुई उसके पश्चात आचार्य ज्ञानसागर महाराज और आचार्य विद्यासागर महाराज की पूजन भक्ति भाव के साथ महिला और पुरुष मंडलो ने संयुक्त रूप से की।मुनि संघ के वर्षायोग चातुर्मास हेतु समाज के द्वारा सामूहिक श्रीफल भी मुनिसंघ को चढ़ाया गया। वर्षायोग चातुर्मास श्रीफल सजाओ प्रतियोगिता का भी आयोजन किया गया है। प्रथम पुरस्कार शास्त्री वार्ड महिला मंडल को द्वितीय पुरस्कार श्रीमती नीता जैन बरा और तृतीय पुरस्कार अगम्या जैन बर्धमान कॉलोनी को प्राप्त हुए कई अन्य सांत्वना पुरस्कार भी दिए गए। इस अवसर पर प्रवचन करते हुए निर्यापक श्रमण श्री योगसागर महाराज ने कहा कि महान आचार्य परम्परा के अंतर्गत मुझे दीक्षा लेने का सौभाग्य मिला और दादा गुरु आचार्य ज्ञान सागर महाराज के दर्शन करने का पुण्य लाभ भी मिला। वे हमेशा णमोकार मन्त्र से मङ्गलाचरण करते थे। उनके साथ 2 वर्षों तक रहा और तीसरे वर्ष में आचार्य विद्यासागर महाराज जी के साथ आ गया। मैंने महान आचार्य ज्ञान सागर को देखा है आचार्य विद्यासागर ने अपने गुरु आचार्य ज्ञान सागर की उस भावना को पूर्ण किया की बुंदेलखंड में जाकर आपको धर्म ध्यान करना है और गुरूकुल तैयार करना है। उन्होंने आचार्यश्री को दीक्षित कर महान निधि दी थी आचार्य पद देते समय उन्होंने कहा था कि 78 वर्ष की उम्र में मुझे आचार्य पद मिला है और दो वर्ष बाद शिष्य को आचार्य पद दे दिया था। आचार्यश्री विद्यासागर महाराज से उन्होंने कहा था उनका स्वास्थ्य लगातार गिर रहा है। साधना का फल सभी पदों का त्याग करने पर ही मिलता है समाधि को प्राप्त हुए आचार्य श्री विद्यासागर महाराज ने उस समय कहा था कि उनकी पद के प्रति कभी कोई लालसा नहीं रही है। यह कर्म का फल था गुरु आज्ञा का पालन कर रहा हूँ और आचार्य पद ग्रहण किया है ताकि भविष्य में यह परंपरा बनी रहे इसलिए यह आचार्य पद दूसरे योग्य साधु को सौंपा जाता है। मुनिश्री ने कहा पद को पकड़कर बैठे रहोगे तो 3 काल तक कभी इस जीवन से मुक्त नहीं हो पाओगे। अंतिम परीक्षा साधु की उत्कृष्ट समाधि होती है।
मुनि श्री निरोग सागर महाराज ने कहा कि आचार्य श्री विद्या सागर महाराज अपने गुरु के बारे में हमेशा कहते थे कि वे कुछ न कुछ नया चिंतन करते रहते हैं।
आचार्य श्री उन्हें बताया कि एक बार एक बड़े शिष्य उनके ही संघ के उनसे किसी बात को लेकर नाराज हो गए तो आचार्य श्री ने 3-4 दिन बाद सबके बीच में कहा कि तुम भाग्यशाली हो कि तुम्हें डांट मिल रही है। हमारे गुरुदेव ने तो हमें थोड़ा ही डांटा था लेकिन उस डांट को मैं जीवन भर अपने साथ रखकर चल रहा हूँ। और एक हाईकू उन्होंने लिखा था शिष्य और शीशी में डांट जरूरी है। शिष्य को डाँट नहीं पड़ेगी तो वह बिगड़ सकता है और शीशी में डांट नहीं लगेगी तो उसमें रखा हुआ सामान गिर जायेगा उन्होंने अपने गुरु आचार्य ज्ञान सागर से सीख ली थी। जीवन में कभी जवाब नहीं देना उन्होंने वही किया आचार्यश्री कहते थे समय अपना जवाब स्वयं देता है। ऐसा कर्म सिद्धान्त पर भरोसा उनका रहता था। आचार्य ज्ञान सागर कहते थे अप्रभावना से बचना ही सच्ची प्रभावना होती है उनकी एक और विशेषता थी वे यथाजात थे। बच्चों जैसे और आगम के अनुसार ही हर समस्या का हल कर देते थे उन्होंने 3000 संस्कृत के श्लोक लिखकर एक शास्त्र तैयार किया था और उन्होंने कहा था अंतिम अध्याय समाधि है निरोगसागर महाराज ने कहा कि आज पदों की होड है। उस समय पदों की छोड़ थी पदों को छोड़ने में जो आनंद है वह पद पर बैठकर नहीं है। साध्यत्व से सिद्धत्व की यात्रा है आचार्यश्री विद्यासागर महाराज ने समाधि के पूर्व 10 दिन पहले निर्यापक मुनिश्री योगसागर महाराज को कायोत्सर्ग कराते हुए बताया था कि अगले आचार्य निर्यापक मुनि श्री समय सागर महाराज होंगे। सवा वर्ष पहले पूरे संघ ने कुंडलपुर में उन्हें आचार्य पद लाखों की भीड़ ने सौंपा था।
मुनि श्री निर्भीक सागर महाराज ने आचार्य श्री समाधि को हमेंशा महोत्सव की संज्ञा देते थे। अकेला मंदिर बन जाये प्रतिमा विराजमान हो जाए लेकिन जब कलश मंदिर के ऊपर रखा जाता था तब मंदिर पूर्ण होता था उसी प्रकार साधु का जीवन होता है। अंतिम समय सुयोग समाधिकरण हो जाए। यह साधु का सबसे अच्छा पुण्य माना जाता है। और समाधि को वे कलश की संज्ञा देते थे। आज अंधाधुंध चकाचौंध में दीपक को जलाए रखना अत्यंत कठिन हो गया है। आचार्य विद्यासागर महाराज ने अपने गुरु को अंतिम समय तक बहुत सेवा की है और उसके बाद ही उन्होंने गुरुकुल तैयार किया है पुराने जमाने में मुनि दीक्षा लेना अत्यंत कठिन होता था। बड़ा दुर्लभ था लेकिन आचार्य ज्ञान सागर ने अपनी माँ की बात मानते हुए कहा कि जब तक आपका जीवन है तब तक अखण्ड ब्रह्मचर्य व्रत लेकर रहूँगा। उसके बाद फिर मैं अपना कल्याण करूँगा उन्होंने वही किया। विद्या वचन सरल है लेकिन अपने ऊपर ढालना बहुत कठिन है लेकिन आचार्य ज्ञान सागर ने अपने ऊपर ढालकर लोगों को इस प्रकार का साधु जीवन जीने की बात सिखाई
8 वर्षों तक उन्होंने संलेखना विधि की। वे हमेशा हित मित प्रिय बचन बोला करते थे। आचार्यश्री कहते थे उनके लिए सारी उपाधियां बोनी थी। आत्मानुशासन का पालन करना सबसे अच्छा है आचार्य ज्ञान सागर महाराज अपने को जिनवाणी का प्रचारक मानते थे और साधना की कला उनके पास थी। आचार्य श्री भी अपने गुरुदेव के पद चिन्हों पर ही चले हैं और बुंदेलखंड में धर्म प्रभावना कर सभी को धर्म मय बना दिया।
कार्यक्रम में ब्रह्मचारी भैया, बहनें, समाज के प्रमुख व्यक्ति और महिला मंडल आदि उपस्थित थे।
कार्यक्रम का संचालन निराली जैन ने किया।
मुकेश जैन ढाना ने बताया 31 मई को श्रुत पंचमी पर चंदप्रभु भगवान का महामस्तकाभिषेक का कार्यक्रम पहली बार भाग्योदय तीर्थ में होने जा रहा है। यह कार्यक्रम निर्यापक मुनि संघ के सानिध्य में संपन्न होगा।