धरियावद (विश्व परिवार)। प्रथमाचार्य श्री शांतिसागर जी महाराज की परंपरा के पंचम पट्टाधीश वात्सल्य वारिधी आचार्य श्री वर्धमानसागर जी महाराज अनेक जिनालयों मुनियों की जन्मस्थली धर्म नगरी धरियावद में 52 साधु सहित विराजित हैं। प्रतिदिन श्री जी का पंचामृत अभिषेक शास्त्र प्रवचन दोपहर को आचार्य श्री सानिध्य में संघ स्वाध्याय ,शाम को श्री जी आचार्य श्री की आरती , मुनि श्री पुण्य सागर जी सहित साधुओं की धर्म कक्षा से महती धर्म प्रभावना हो रही हैं ।प्रातः कालीन धर्म सभा में आचार्य वर्धमान सागर जी ने बताया कि जम्बू दीप आर्यखंड के धर्मप्रधान भरतक्षेत्र में अनेक संसारी प्राणी जन्म लेते हैं यहां जन्मे तीर्थंकरों ने भव्य जीवों ने संसार को बसाया किंतु यहां रहकर उन्होंने संन्यास को भी धारण किया।आचार्य श्री ने बताया कि 24 तीर्थंकर में 19 तीर्थंकरों ने घर बसाया किंतु पांच तीर्थंकर बाल ब्रह्मचारी भी रहे इस नगर धरियाबाद के भी अनेक भव्य जीवों ने संसार में रहकर संन्यास के मार्ग को चुना जिसमें हमारे से ही दीक्षित मुनि श्री श्रेयस सागर जी, मुनि पदमकीर्ति जी, आर्यिका श्री श्रेय मति, आर्यिका श्री प्रेक्षा मति श्री योगीमति सहित 12 साधु इस नगर के हैं मुनि पुण्य सागर जी ने भी मुनि श्री उदित सागर जी , एवं आर्यिका श्री उत्साह मति को दीक्षा दी है। मनुष्य जीवन में श्रेष्ठ कल की सार्थकता तभी है जब मनुष्य जीवन में रत्नत्रय धर्म को प्राप्त कर श्रावक धर्म और मुनि धर्म अंगीकार कर जीवन को सफल बनाने का पुरुषार्थ करे। जन्म और मरण सभी का होता है किंतु समाधिमरण संयम, तप साधना से सार्थक होता है।यह धर्म देशना आचार्य श्री वर्धमान सागर जी ने धर्म सभा में प्रगट की राजेश पंचोलिया पंडित विशाल अनुसार आचार्य श्री ने आगे बताया कि अभी मुनि श्री पूर्ण सागर जी तप साधना में लींन होकर एक आहार एक उपवास कर रहे है, उन्होंने अन्न अनाज का भी त्याग कर दिया हैं इससे सभी को त्याग की प्रेरणा लेना चाहिए। आगामी फागुन शुक्ला अष्टमी से सिद्धचक्र महा मंडल विधान में आपको सिद्धों की आराधना पूजन का अवसर नहीं छोड़ना चाहिए क्योंकि अरिहंत भगवान ही सिद्धों की आराधना करते हैं विधान पूजन से अर्जित पुण्य से अपने भाव परिणाम बुद्धि को निर्मल बनाने का पुरुषार्थ करना चाहिए।