(विश्व परिवार)। हाल ही में नई दिल्ली में आयोजित अंतर्राष्ट्रीय सहकारी गठबंधन (ICA) का वैश्विक सहकारी सम्मेलन 2024, सौ से अधिक देशों से आए वैश्विक नेताओं की एक सभा मात्र न होकर कहीं अधिक मायने रखता है; यह एक सतत एवं न्यायसंगत भविष्य को आकार देने में सहकारी समितियों के बढ़ते महत्व का प्रमाण है। सम्मेलन में प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी ने संयुक्त राष्ट्र के अंतर्राष्ट्रीय सहकारिता वर्ष 2025 (IYC 2025) का शुभारंभ किया, जो एक महत्वपूर्ण वैश्विक पहल है जिसका मूल उद्देश्य संयुक्त राष्ट्र के सतत विकास लक्ष्यों (SDG) को आगे बढ़ाने में सहकारी समितियों की महत्वपूर्ण भूमिका पर ध्यानाकर्षित कराना है। यह वर्ष वैश्विक, आर्थिक और सामाजिक विमर्श का वह महत्वपूर्ण अध्याय बन रहा है, जहाँ सहकारी समितियों को न केवल स्थानीय विकास के साधन बल्कि वैश्विक अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण भागीदार के रूप में भी पहचान दी जा रही है।
सहकारी मॉडल: आस्तित्व में समुदायिक पर वैश्विक बदलाव के लिए तैयार
सहकारी मॉडल के मूल में एक सरल लेकिन शक्तिशाली अवधारणा निहित है – परस्पर लाभ के लिए एक साथ काम करते लोग। सहकारिता सामूहिक स्वामित्व, साझा जिम्मेदारी और लोकतांत्रिक निर्णय लेने पर जोर देती है। इन सिद्धांतों ने दुनिया भर में कृषि, स्वास्थ्य सेवा और वित्तीय सेवाओं से लेकर ऊर्जा उत्पादन तक उल्लेखनीय सफलताएँ दिलाई हैं।
भारत में, सहकारी समितियाँ ग्रामीण विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती रही हैं । उदाहरण के लिए, अमूल ने न केवल भारत को दुनिया का सबसे बड़ा दूध उत्पादक बना दिया है, बल्कि सहकारिता के माध्यम से आत्मनिर्भरता और समृद्धि का प्रतीक भी बन गया है। अमूल जैसी डेयरियां उन सभी महिलाओं को सशक्त बनाकर ग्रामीण क्षेत्रों में महिला नेतृत्व वाले विकास का समर्थन करती हैं, जो महिलाएं व्यावसायिक दूध उत्पादक के लिए ऐसी समितियों से जुड़ी हुई हैं। अपने सहकारी मॉडल के माध्यम से ये सहकारी समितियाँ नेतृत्व की भूमिकाएँ, कौशल विकास और वित्तीय सहायता प्रदान करती हैं, जिससे महिलाओं को आर्थिक स्वतंत्रता प्राप्त करने में मदद मिलती है और अर्थव्यवस्था में उनकी भूमिका और मजबूत होती है।
सहकारी मॉडल को बढ़ावा देने में भारत का नेतृत्व
भारत ने लंबे समय से आर्थिक परिवर्तन और सामाजिक प्रगति को बढ़ावा देने के साधन के रूप में सहकारी समितियों के मूल्य को पहचाना है। नई दिल्ली में आयोजित ICA वैश्विक सहकारी सम्मेलन के कार्यक्रम में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी की उपस्थिति ने सहकारी आंदोलन के प्रति भारत की गहरी प्रतिबद्धता को उजागर किया है। अंतर्राष्ट्रीय सहकारिता वर्ष 2025 के शुभारंभ के दौरान उनके संबोधन ने एक आत्मनिर्भर, समृद्ध राष्ट्र के निर्माण में सहकारिता की भूमिका को रेखांकित किया। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के भाषण ने हाशिए पर पड़े समुदायों को सशक्त बनाने की सहकारी क्षेत्र की क्षमता पर भी प्रकाश डाला, खासकर ग्रामीण भारत में, जहाँ सहकारी समितियाँ, कृषि और डेयरी फार्मिंग जैसे क्षेत्रों की रीढ़ बनी हुई हैं। नरेन्द्र मोदी जी के नेतृत्व में, भारत सरकार ने सहकारी क्षेत्र को बढ़ाने में महत्वपूर्ण प्रगति की है। सरकार द्वारा सहकारिता को बढ़ावा देने के लिए लिए जा रहे कदम इस मान्यता को उजागर करते है कि सहकारी समितियाँ केवल अतीत की निशानी नहीं हैं, बल्कि समकालीन आर्थिक और सामाजिक विकास की एक महत्वपूर्ण कड़ी हैं।
सहकार से समृद्धि का विजन: भारत के सहकारी क्षेत्र का आधुनिकीकरण
प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व और केंद्रीय गृह एवं सहकारिता मंत्री श्री अमित शाह के मार्गदर्शन ने देश के सहकारी परिदृश्य को नया आयाम देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। इनके कुशल दिशानिर्देशों में, भारत एक आधुनिक सहकारी ढांचे की ओर बढ़ रहा है जो डिजिटल अर्थव्यवस्था की मांगों के अनुरूप है। सहकारी समितियों की पहुँच और प्रभावशीलता का विस्तार करने के लिए प्रौद्योगिकी का लाभ उठाने की प्रधानमंत्री और सहकारिता मंत्री की सोच तेजी से डिजिटल होती दुनिया में विशेष रूप से महत्वपूर्ण है। सहकारी समितियों का भविष्य, बदलते समय के साथ इनके विकसित होने, और दक्षता में सुधार के लिए आधुनिक उपकरणों को समाहित करने की उनकी क्षमता में निहित है।
वैश्विक एजेंडा: सहकारिता और सतत विकास लक्ष्य
विश्व जब आर्थिक असमानता, जलवायु परिवर्तन और सामाजिक अशांति से जूझ रहा है, तो सहकारिता, विकास के लिए एक वैकल्पिक मॉडल पेश करती है जोकि समावेशी, लोकतांत्रिक और लचीला है। सहकारी मॉडल का जोर एकजुटता, आपसी सहयोग और लोकतांत्रिक भागीदारी पर है, जो इसे प्रमुख वैश्विक समस्याओं को संबोधित करने के लिए अद्वितीय बनाता है। सहकारी समितियां वित्तीय लाभ से अधिक लोगों की प्राथमिकताओं पर जोर देती है ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि आर्थिक गतिविधियों के लाभ और व्यापक रूप से वितरित हो सके, जिससे वंचित सशक्त बनें और सामाजिक अंतर को कम करने में मदद मिले। सहकारिता आंदोलन को सतत विकास लक्ष्यों के साथ जोड़कर भारत ने खुद को सतत और समावेशी विकास के लिए वैश्विक अधिवक्ता के रूप में स्थापित किया है। संक्षेप में, सहकारिता एक समावेशी और टिकाऊ वैश्विक अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देने में एक अहम भूमिका निभाती है।
आगे की राह: एक सहकारी भविष्य
सहकारिता केवल एक आर्थिक उपकरण नहीं हैं – वह सामाजिक न्याय, आर्थिक समानता और पर्यावरणीय स्थिरता प्राप्त करने का एक शक्तिशाली साधन है।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व और गृह एवं सहकारिता मंत्री अमित शाह के मार्गदर्शन में ‘सहकार से समृद्धि’ के विजन से ही 140 करोड़ की आबादी वाले हमारे देश को एक बेहतर भविष्य दिया जा सकता है । एक ऐसी दुनिया बनाई जा सकती है जहाँ विकास को साझा किया जाता है, जहां असमानताएँ न्यून होती हैं और जहां समुदाय सहकार से सशक्त होकर जनमानस समृद्ध होते हैं।