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प्राकृतिक कारणों से खराब हुई फसल पूरी तरह कवर होती है और किसानों को उसका लाभ मिलता है: शिवराज सिंह चौहान

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बीमा कंपनी देर से भुगतान करेगी तो उस पर 12 प्रतिशत की पेनल्टी लगेगी जो कि सीधे किसान के खाते में डाली जाएगी: चौहान

नई दिल्ली(विश्व परिवार)। केंद्रीय मंत्री कृषि एवं किसान कल्याण और ग्रामीण विकास मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने आज लोक सभा में फसल बीमा संबंधी प्रश्नों के उत्तर देते हुए कहा कि पूर्ववर्ती फसल बीमा योजनाओं में कई तरह की कठिनाइयां थीं, पहले की सरकारों में कई सारी फसल बीमा योजनाएं थीं, अपर्याप्त दावे थे, बीमित राशि कम मिलती थी, दावों के निपटान में बिलंब होता था। किसानों और किसान संगठनों को कई तरह की आपत्तियां थीं। मुझे यह कहते हुए गर्व है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी नई प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना लेकर आए। पहले, फसल बीमा के लिए 3 करोड़ 51 लाख आवेदन आते थे और अब 8 करोड़ 69 लाख आवेदन आए हैं, वहीं सकल बीमित राशि बढ़कर 2.71 लाख करोड़ रूपये से ज्यादा हो गई है। 32 हजार 404 करोड़ रु. प्रीमियम किसानों ने दिया है और इसके बदले उन्हें 1.64 लाख करोड़ रूपये क्लेम दिया गया है।
केंद्रीय मंत्री चौहान ने कहा कि प्राकृतिक कारणों से अगर फसल खराब होती है तो वो भी पूरी कवर होती है और किसान को उसका लाभ मिलता है। केंद्रीय मंत्री ने कहा कि पुरानी फसल बीमा के अनुसार, बैंक के ऋणी का बीमा आवश्यक रूप से किया जाता था और बीमे की प्रीमियम की राशि को बैंक स्वयं ही काट लेता था। सरकार ने यह विसंगति दूर कर योजना को स्वैच्छिक बना दिया है। अब तक 5 लाख 1 हजार हेक्टेयर क्षेत्र इसमें कवर हुआ है, जो 2023 में बढ़कर 5 लाख 98 हजार हेक्टेयर हो गया है, 3 करोड़ 57 लाख किसान कवर हुए हैं। सरकार ने योजना को सरल बनाने के लिए कई उपाय किए हैं, ताकि योजनाओं का लाभ लेने में किसान को परेशानी ना हो।
उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री फसल बीमा के 3 अलग-अलग मॉडल हैं। केंद्र सरकार सिर्फ पॉलिसी बनाती है। राज्य सरकार जिस मॉडल को चुनना चाहे, उस मॉडल को चुनती है। मॉडल चुनने के बाद बीमा कंपनियां (निजी क्षेत्र व सार्वजनिक क्षेत्र) प्रतिस्पर्धी दरों पर फसल बीमा योजना लागू करने का काम करती है। फसल बीमा योजना हर राज्य के लिए आवश्यक नहीं है। बिहार में फसल बीमा का प्रीमियम अधिक होने के सवाल पर चौहान ने कहा कि बिहार में राज्य सरकार ने प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना को लागू नहीं किया है। बिहार राज्य की अपनी फसल बीमा योजना है, जिसके अनुसार ही किसान को प्रीमियम देना पड़ता है।
चौहान ने कहा कि प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना पूरे देश के हर जिले के लिए है। योजना की इकाई में पहले कभी विसंगतियां होती थी कि ब्लॉक को ही इकाई बना दिया जाता था। अब ग्राम पंचायत को इकाई बनाया गया है, ताकि ग्राम पंचायत में किसान का नुकसान हो तो किसान के नुकसान की भरपाई सही से की जा सके। पहले की योजनाओं की कमियों को दूर किया गया है। साथ ही, हर ग्राम पंचायत में कम से कम 4 क्रॉप कटिंग एक्सपेरिमेंट करना भी आवश्यक कर दिया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मार्गदर्शन में नवाचार करते हुए फसल के नुकसान का आकलन रिमोट सेंसिंग के माध्यम से कम से कम 30 प्रतिशत करना अनिवार्य कर दिया गया है। उन्होंने कहा कि यही कारण है कि क्लेम के भुगतान में देरी होती है। राज्य सरकार से उपज डाटा उपलब्ध होने के महीने के अन्दर दावे की गणना की जाती है। केंद्र सरकार पॉलिसी बनाती है तो उसे सही से लागू करने की जिम्मेदारी राज्य सरकार की है। उन दावों के भुगतान में देर होती है तो एक प्रावधान किया गया है कि अगर बीमा कंपनी देर करेगी तो उस पर 12 प्रतिशत की पेनल्टी लगेगी, जो कि सीधे किसान के खाते में डाली जाएगी।
उन्होंने कहा कि जब हमने बीमा भुगतान के देरी के कारणों को देखा तो 98.5 प्रतिशत कारण राज्य सरकारों द्वारा अपने हिस्से की प्रीमियम राशि को देर से जारी करना है। मैं राज्य सरकारों से निवेदन करना चाहूंगा कि वह अपनी तरफ से प्रीमियम की राशि जारी करने में देर ना करें। 99 प्रतिशत देरी इसलिए होती है कि कई बार उपज के आंकड़े देरी से प्राप्त होते हैं, कुछ मामलों में बीमा कंपिनयों और राज्य सरकारों के बीच विवाद होता है, कई बार किसानों के नम्बर ग़लत होते हैं, इन कारणों से भी देरी होती है। श्री चौहान ने कहा कि हमने एक प्रावधान किया है कि राज्य के शेयर से अपने आप को डी-लिंक कर लिया है, जिससे किसान के भुगतान में देरी न हो। केंद्र सरकार अपना शेयर तुरंत जारी करती है ताकि किसानों को केंद्र के हिस्से का भुगतान मिल सके। इसी खरीफ सीजन से 12 प्रतिशत की पेनल्टी लगाकर सीधे किसान के खाते में भुगतान का काम होगा। जहां तक योजना के बारे में समिति बनाने का सवाल है, मुझे आज उसकी जरूरत महसूस नहीं होती, अगर सदस्य कोई सुझाव देना चाहे तो उनका स्वागत है।

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