अशोक नगर(विश्व परिवार)। आचार्य श्री सुमति सागर जी की शिष्या आर्यिका श्री सृष्टि भूषण माताजी ससंघ विगत दिनों से नगर में शीतकालीन वाचना कर रही है ।24 दिसंबर को आर्यिका श्री सृष्टि भूषण ,श्री विश्वयश मति,श्री आप्तमति संघ का मंगल विहार बहादुरपुर सिद्धक्षेत्र थोबन जी की और हुआ। मंगल विहार के समय जगह-जगह आर्यिका माता जी के चरण प्रक्षालन कर अश्रुपूरित नेत्रों से विदाई दी गई।
वात्सल्य मूर्ति आर्यिका श्री सृष्टि भूषण माताजी ने परिवार की खुशहाली आपसी प्रेम संस्कार के लिए प्रवचन में महत्वपूर्ण सूत्र दिए । माताजी ने प्रवचन में बताया कि धर्म प्यार सिखाता है संस्कृति को सफल बनाना चाहिए। सुख भौतिकता से नहीं आत्मा की अनुभूति से प्राप्त होता है। स्वयं के अंतरंग भाव परिणाम से आत्मा सुख आनंद मिलता है। इसलिए अर्थ पुरुषार्थ से जोड़े गए धन को त्याग दान के माध्यम से छोड़ना भी चाहिए। आदिनाथ भगवान नेअसि ,मसि , कृषि ,शिल्प कला, वाणिज्य का उपदेश दिया। इसलिए श्रावक को अर्थ पुरुषार्थ के साथ कृषि से ऋषि बनने का भी पुरुषार्थ करना चाहिए। साधु के हाथ 23 घंटे ऊपर आशीर्वाद देने के लिए रहते हैं 1 घंटे आहार के समय हाथ नीचे रहता है , श्रावक का हाथ 24 घंटे में मात्र 1 घंटे आहार दान देने के लिए ऊपर होता है। आहार दान सहित सभी दान करने से मोक्ष की राह प्रशस्त होती है। प्रवचन में माताजी ने परिवार को संस्कृकारित रखना सास बहू सहित सभी रिश्तों में आपसी समन्वय प्रेम सौहार्द रखने की प्रेरणा दी। हिंदू जैन धर्म में एकम से लेकर पूर्णिमा तक अनेक त्यौहार मनाए जाते हैं उन्होंने अंग्रेजी कैलेंडर के बजाय भारतीय तिथि त्यौहार मनाने पर उपदेश दिया बच्चों को गुड मॉर्निंग नहीं सुप्रभात सीखना चाहिए जीवन में इच्छाओं की अपेक्षा की पूर्ति नहीं होने से उपेक्षा से टेंशन होता है जीवन में अटेंशन रहोगे तो टेंशन दूर होगा। इससे रोग ,कर्ज और मर्ज दूर होगा। परिवार का संचालन न्याय नीति धर्म पूर्वक करना चाहिए।ब्रह्मचारिणी शिखा दीदी ने बताया कि इसके पूर्व आर्यिका श्री विश्वयश मति माताजी ने अपने प्रवचन में गुरु मां सृष्टि भूषण माताजी की जन्म नगरी मुंगावली को ननिहाल दर्शाते हुए बताया कि आना और जाना चलता रहता है। जीवन का लक्ष्य निर्धारित होना चाहिए अंतरंग के भाव और परिणाम अच्छे होना चाहिए चिड़िया कविता के माध्यम से बताया कि पुरानी हो गई बस्ती, पुराना हो गया आशियाना , पुराना आंगन, खिड़की ,दरवाजा हो गया है। इस कविता को सुनकर सभी के नेत्र अश्रुपुरित हो गए। माताजी ने बताया कि श्रावक की मृत्यु होती है जबकि साधु की सल्लेखना होने पर उसकी मृत्यु महोत्सव मनाया जाता है ।आपको भी मृत्यु महोत्सव मनाने का पुरुषार्थ करना चाहिए। क्योंकि समय बहुत कम है संयम धारण करना चाहिए।