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दर्शन विशुद्धीभावना से सम्यक दर्शन प्राप्त होता है रत्नत्रय धर्म मोक्ष मार्ग का आधार है- आचार्य श्री वर्धमान सागर जी

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पारसोला(विश्व परिवार)। पंचम पट्टाघीश आचार्य श्री वर्धमानसागर जी महाराज संघ सहित पारसोला तहसील घरियाबाद में 56वां वर्षायोग संघ सहित कर रहे हैं। आचार्य श्री के सानिध्य में प्रतिदिन श्री जी का पंचामृत अभिषेक एवं अन्य धार्मिक क्रियाएं होती हैं आज की प्रवचन सभा में आचार्य श्री वर्धमान सागर जी ने 16 कारण भावनाओं पर चर्चा करते हुए उनकी विवेचना की। आचार्य श्री ने बताया कि दर्शन विशुद्धी से मोक्ष मार्ग की प्रभावना होती है सम्यक दर्शन देव ,शास्त्र, गुरु के प्रति श्रद्धा से होता है। सम्यक दर्शनमोक्ष मार्ग का कारण है, दर्शन विशुद्धता से सम्यक दर्शन होता है। वर्तमान में लौकिक शिक्षा के लिए व्यक्ति बड़े-बड़े महानगरों में जाता है वहां जाकर भी बालकों को संस्कारित रहना जरूरी है उनमें धर्म के संस्कार जरूरी है, उन्होंने घर को नहीं भूलना चाहिए क्योंकि घर से सुख शांति मिलती है यहां घर से आशय शाश्वत मोक्ष से है अनादि काल से यह जीव संसार की अनेक गतियो में भ्रमण कर रहा है आकुलता के कारण उसे शांति नहीं मिल रही है आचार्य श्री ने सम्यकदर्शन , सम्यकज्ञान, सम्यकचारित्र ,धर्म को राष्ट्रीय राजमार्ग हाईवे निरूपित करके बताया कि इस राजमार्ग से सिद्धालय की प्राप्ति होती है इस मोक्ष मार्ग को प्राप्त करने के लिए दुर्लभ मनुष्य पर्याय मिली है। सम्यकदर्शन अर्थात समिचिन धर्म का मार्ग होता है। आत्मा की प्रभावना सम्यकदर्शन, रत्नत्रय धर्म से होती है। प्रभावना में विकृति नहीं आना चाहिए । ऋषभ पचोरी अध्यक्ष चातुर्मास समिति रितिक एवं राजेश पंचोलिया ने बताया कि आचार्य श्री ने प्रभावना प्रतीक निकाले जाने वाली जैन धर्म की रथयात्रा शोभायात्रा में चप्पल जूते पहनने पर चिंता व्यक्त की आचार्य श्री ने बताया कि आप लोगों का शरीर के प्रति ममत्व बढ़ता जा रहा है जबकि साधु सभी ऋतुओं में पैदल बिहार करते हैं । श्रावकों द्वारा अर्जित किया जाने वाला अर्थ धन का दुरुपयोग नहीं करते हुए सदुपयोग करना चाहिए। आचार्य श्री ने जयपुर के श्रावक का उदाहरण बताया कि रत्न के जैन व्यापारी द्वारा प्रथम शीला पत्थर से श्रीजी जिनेंद्र भगवान की प्रतिमा बनाई जाती है और इस प्रकार उस व्यक्ति ने 400 रत्नौ की प्रतिमा बनाकर श्री अतिशय क्षेत्र महावीर जी में ध्यानमंदिर में दान की। जिनकी पंचकल्याणक प्रतिष्ठा विगत वर्ष हमारे संघ सानिध्य में संपन्न हुई। आचार्य श्री ने 16 कारण भावनाओं के बारे में बताया कि दर्शन विशुद्धि भावना, विनय सम्पन्नता ,शील, संवेग,,साघु समाधि, तप, त्याग आदि भावना से भव का नाश होता है । क्योंकि 16 कारण भावना से ही तीर्थंकर प्रकृति का बंध होता है। जयंतीलाल कोठारी अध्यक्ष जैन समाज ने बताया कि बाहर से आए अतिथियों और समिति के सदस्यों द्वारा श्री जी और पूर्वाचार्यों के चित्र अनावरण दीप प्रज्वलन कर आचार्य श्री के चरण प्रक्षालन कर जिनवाणी भेंट की गई। आचार्य श्री वर्धमान सागर जी महाराज के 75 वे जन्म वर्ष के उपलक्ष्य में हीरक जन्म जयंती वर्ष 10 सितंबर को पारसोला समाज द्वारा मनाया जाएगा।

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