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पुलिस हिरासत में मौत: सरकार पर उठ रहे गंभीर सवाल – डॉ. अजय कुमार मिश्रा

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(विश्व परिवार)। इस देश में सबसे सस्ता क्या है ? यदि इसका जबाब बिना किसी पक्षपात के दिया जाए तो निसंदेह सभी कहेगे की “मौत”। कारण एक दो नहीं बल्कि अनेकों है कभी सीवर खुला होने से गिर कर मौत, कभी जमीन पर बिजली के तारों से मौत, कभी इलाज के आभाव में मौत, कभी लापरवाही से इलाज में मौत, कभी स्पीड से मौत तो कभी दुसरें की स्पीड से मौत और इन सब में सबसे दुखद है पुलिस हिरासत में मौत होना है। दशकों व्यतीत हो जाने और लाखों प्रयास के बावजूद पुलिस और पब्लिक में सामंजस्य आज तक नहीं बैठ पाया है। आज भी लोग पुलिस को किस नजरिये से देखतें है यह समझने की जरूरत है जबकि दूसरी तरफ पुलिस की अपनी समस्याएं है जिसे सिस्टम ने ऐसे जकड़ रखा है की आजाद होने में कम से कम पचास वर्ष तो अभी भी लग सकतें है। यहाँ चर्चा आज उत्तर प्रदेश की राजधानी में हाल ही में पुलिस हिरासत में एक सख्स की मौत की करना जरुरी है क्योंकि जिस तरह से पुलिस उसे थाने ले गयी और वापसी उसकी लाश से हुई क्या यह पुरे सिस्टम पर कड़ा प्रश्न नहीं है ? आप बदलें में लाखों रूपये, नौकरी, बच्चो की शिक्षा और दोषियों को निलंबित करके केस दर्ज कराकर के कार्यवाही को घोषणा कर सकतें है पर क्या आप मृत व्यक्ति को पुनः जीवित कर सकतें है ? क्या करोड़ों की आबादी वाले इस प्रदेश में आम जन के मन में जो डर घर करता जा रहा है उसे आप दूर कर सकतें है ? उत्तर प्रदेश की राजधानी में पुलिस हिरासत में व्यक्ति की मौत की हाल ही में घटित यह दूसरी घटना है। यह सोचने वाली बात भी है की दोनों मृतक व्यक्तियों का कोई अपराधीक रिकॉर्ड नहीं थे। मामूली विषय था जिसमे उन्हें समझा बुझाकर मौके पर ही मामले का निपटारा हो सकता था पर अब दोनों इस दुनियां में नहीं है। किसी भी घटना के एक बार होने पर की गयी कोई भी कार्यवाही पर्याप्त हो सकती है पर वही घटना बार-बार हो तो उस पर तथा कथित एक ही कार्यवाही के बजाय सरकार को कठोरतम से कठोरतम नियम बनाने चाहिए जिससे इस तरह की घटना की पुनरावृत्ति न हो सकें | क्या यही राम राज्य की झांकी है जिसे हम अपना हितैषी समझतें है जो हमें सुरक्षा प्रदान करतें है उसी स्थान पर हम-सब सबसे असुरक्षित है। किसी एक दो घटना से सभी को दोषी नहीं बनाया जा सकता है पर मानवीय प्रवृत्ति के विपरीत किसी भी तरह का कार्य जो लोगों के जीवन को ख़त्म कर दे किसी को भी स्वीकार नहीं होगा | दावा और वादे के ठीक विपरीत पुलिस का अवमानानीय चेहरा राजधानी में प्रदर्शित होना इस बात को कहने और विश्वास करने पर बल दे देता है की यदि प्रदेश की राजधानी जहाँ पर अनेकों आला अफसर और संगठन बैठे है वहां पर ऐसी घटना हो रही है तो प्रदेश के अन्य जिलों का क्या हाल होगा ? चलिए एक सरकारी आकड़ों से समझते है – वित्तीय वर्ष 2020-2021 में कुल 1940 व्यक्तियों की हिरासत में मौत हुई थी जिनमे प्रथम क्रम पर उत्तर प्रदेश रहा है जहाँ पर कुल 451 लोगों की मौत हुई थी यदि प्रतिशत में देखें तो कुल मौतों का 23% है। क्या यह चिंता का विषय नहीं है ? जिन्हें इन विषयों पर सोचना और कानून बनाना चाहिए शायद यह मौतें उनके लिए महज एक आकड़ा ही है | वित्तीय वर्ष 2021-2022 में हिरासत में मौत का आकड़ा बढ़ कर के 2544 हो गया जिसमे उत्तर प्रदेश ने व्यापक वृद्धि करके 501 संख्या के साथ पुनः प्रथम स्थान प्राप्त किया है। क्या यह किसी ज़िम्मेदार के लिए कार्यवाही और कठोर नियम बनाने को बाध्य नहीं कर रहा ? उतर प्रदेश के बाद वेस्ट बंगाल, मध्यप्रदेश बिहार, महाराष्ट्र, गुजरात राज्य रहे है। भारतीय संविधान में निहित बातों और अधिकारों की खुली धज्जियाँ उड़ रही है और सभी मौन है।
आये दिन हम सभी समाचार पत्रों में इस तरह की घटना को पढ़ते है और महसूस करतें है की इस देश में सबसे सस्ती कोई चीज है तो किसी की “जान” ही है। कठोरतम कार्यवाही करने और पुनरावृत्ति को रोकने के बजाय दोषियों को लीपापोती करके छोड़ दिया जाता है या इतने अधिक समय पश्चात् न्याय होता है जिसकी आवश्यकता पीड़ितों को रह ही नहीं जाती है। सख्श कोई भी हो किसी भी विषय से सम्बंधित हो न्याय बराबर होना चाहिए। ऐसे मामले जहाँ पर सख्श की हिरासत में मौत हुई है किसी एक दोषी के घर बुलडोजर आज तक नहीं चला होगा। चला होता तो शायद प्रदेश इस मामलें में प्रथम होकर हम सभी को शर्मिंदा नहीं कर रहा होता। किसी एक आरोपी को गलती से भी ऐसे मामलों में गोली भी नहीं लगती। आखिर इस देश में सबसे सस्ता जीवन ही है और वह भी निर्भर करता है की आपकी अपनी मजबूती कितनी है आप आम नागरिक है तो सारी गलती आपकी यहाँ तक की मरने की भी गलती आपकी है और आप VIP है तो आप गाड़ी से आम लोगों को कुचल करके भी खुली हवा में पहले की तरह शान से रह सकतें है। आब समय आ गया है की सरकार को यह सोचना पड़ेगा की इस तरह के मामलें सिर्फ मामलें नहीं होतें बल्कि जनता के मन मस्तिष्क में ऐसा घर बनाते है की सरकारें बदल जाती है। बिना देरी किये सरकार को चाहिए की इस विषय पर कठोर नियम बनाये और कड़ाई से उसका अनुपालन करें। किसी भी परिस्थिति में हिरासत में मौत होने पर सम्बन्धित सभी दोषियों की स्थायी सेवा समाप्ति और नियमों के अंतर्गत तुरंत गिरप्तार करके मुकदमा चलाया जाए । अन्यथा जनता जितना डरती रहेगी उतनी अस्थिरता सरकार की भी रहेगी।

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