भव भव के पापों की क्षणभर में इम कर देती है भक्ति – आचार्य श्री विमर्शीरसागर जी
दिल्ली(विश्व परिवार)। श्री दिगम्बर जैन महावीर जिनालय में जिनधर्म की प्रभावना का संदेश – सिर्फ दिल्ली ही नहीं पूरे N.C.R में गूँज रहा है। परम पूज्यनीय जिनागम पंथ प्रवर्तक आदर्शमहाकवि भावलिंगी संत श्रमणाचार्य श्री विमर्शसागर जी — महामुनिराज विशाल चतुर्विध संघ इससमय कृष्णानगर दिल्ली में चातुर्मास चल रहा है। चतुर्थ कालीन श्रेष्ठ चर्या और अनुशासन के धनी पूज्य आचार्य प्रवर की वाणी में ऐसा अद्भुत ओज है कि जो एक बार सुन लेता है वह के लिये लालायित हो उठता है। उनके वात्सल्य मयी व्यक्तित्व की पुनः सुनने के लिये लालायित जो एक बार दर्शन करता है वो अका ही होके रह जाता है। ऐसे महान दिगम्बर जैनाचार्य के पावन सानिध्य में राजधानी में प्रथम बार श्री भक्तामर शुद्धोच्चारण शब्द तिथि प्रशिक्षण शिविर का आयोजन चल रहा है। प्रतिदिन पूरे दिल्ली N.C.R. से सेकड़ों गुरुभक्त इस अद्भुत और अपूर्व- अवसर का लाभ उठा रहे हैं। श्री भक्तामर महिमा की विशेष व्याख्या करते हुये आचार्य श्री ने कहा कि भगवान की निश्छल भक्ति से भव-भव से बँधे हुये पापकर्म भी क्षणभर में क्षय की प्राप्त हो जति हैं। भगवान् के द्वार पर आकर, प्रभु की अपने सन्मुख पाकर अगर स्वयं के अंदर से स्वयं के दोषों की स्वीकृति का भाव अनि लग जाये, और परमात्मा का पूर्ण गुणमय स्वभाव हमारी श्रद्धा के दर्पण में झलकने लग जाये तो निश्चित मानना कि अब हमारे अंदर जो भक्ति जन्म ले रही है वो हमार जन्म-मरण के चक्रब्यूह की ध्वस्त कर देगी। भगवान का दर और भगवान् ती अनेकों बार मिला है परन्तु प्रभु को पाकर भी भाभी प्रभु के सच्चे स्वरूप भी अच्दा हमारे अंदर जागृत नहीं ही सन्नी, मोर न ही हम अपने दोषों को प्रभु के सन्मुख स्वीकार भर सके। गुणों का बोध हुये बिना गुणानुराग का भाव पैदा नहीं हो सकता। भोरे गुणानुराग के बिना भक्ति कभी सफल नहीं होती।
सच्चा साधक राज भगवान के सन्मुख उनकी पूर्णता और अपनी अपूर्णता को निवेदित करता है। वो जानता है कि अभी मैं’ साधमा कमथ का मात्र पथिक हैं, अपनी मंजिल पाने के अपने अंदर भी लिये मुझे भगवान भगवान के गुणमय स्वभाव भी स्वीकाते करना होनी । सच्चा योगी इस बात को अच्छी तरह से जानता हैं कि मेरे अंदर अभी सिर्फ मार्ग भी पवित्रता है और प्रभु आपके पास मार्गफल की पवित्रता है। सद्गुरु के पास आकर सद्गुण प्राप्ति का संकल्प और दुर्गुण व्यागने का संकल्प अवश्य करना चाहिए।