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डॉक्टर अरिहंत जैन को निबंध प्रतियोगिता में प्रथम स्थान मिलने पर किया गया सम्मानित..

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चंडीगढ़ { विश्व परिवार }  चंडीगढ़ पीजीआई अस्पताल में कैंसर रोग विशेषज्ञ डॉक्टर अरिहंत जैन को भगवान महावीर के सिद्धांतों पर आधारित निबंध प्रतियोगिता में प्रथम स्थान प्राप्त होने पर परम पूज्य आचार्य श्री सुनील सागर महाराज सानिध्य में किशनगढ़ में सोमवार की मेला में सम्मानित किया गया उन्हें पुरस्कार स्वरूप प्रशस्ति पत्र प्रतीक चिन्ह एवं 51000 की राशि प्रदान की गई यह पुरस्कार उन्हें भामाशाह श्रीमान अशोक सुशीला पाटनी आरके मार्बल ग्रुप एवं समाज के वरिष्ठ सदस्यों के द्वारा प्रदान किया गया। उन्हें यह पुरस्कार 880 निबंधों में प्राप्त हुआ। डॉ अरिहंत जैन ने अपना परिचय देते हुए बताया कि मैं चंडीगढ़ के पीजीआई अस्पताल में 15 वर्षों से हु उन्होंने कहा कि चिकित्सा के क्षेत्र में मेरे लगभग 100 से भी अधिक शोध पत्र हैं लेकिन भगवान महावीर के सिद्धांत पर लिखना और उस पर कुछ कहने लिखने का यह मेरा पहला अवसर है मैं अनेक देशों में होकर आया हूं और मैंने जो चिकित्सा के क्षेत्र में रहते हुए अध्ययन किया है उससे यही पता लगता है कि हम जितना ज्यादा भगवान महावीर के सिद्धांतों को पढ़ेंगे उतनी हमारी रुचि इसके प्रति बढ़ेगी एवं इसकी वैज्ञानिकता के प्रति हमें ज्ञात होगा। उन्होंने सभी का आभार प्रकट किया यह पुरस्कार उन्हें आचार्य आदिसागर अंकलीकर अंतर्राष्ट्रीय जागृति मंच द्वारा प्रदान किया गया एवं यह प्रतियोगिता भगवान महावीर के 2550वे निर्वाण महोत्सव पर एक वर्ष तक आयोजित की गई।

डॉक्टर अरिहंत जैन चिकित्सा के क्षेत्र में रहते हुए जीव दया एवं परोपकार का कार्य भी करते रहे हैं और अनुदान भी काफी करते रहे हैं उन्होंने अपने पिता श्रीमान जम्बूकुमार जैन माता मधु जैन की प्रेरणा एवं सहमति से पुरस्कार से प्राप्त अधिक राशि को चंडीगढ़ में बन रहे स्वाध्याय भवन हेतु प्रदान की जो उनकी उदारता एवं जैन दर्शन के प्रति रुचि को दर्शाता है।

उन्होंने इसका श्रेय श्रमण भगवान महावीर को देते हुए कहा कि इसमें मेरी बहन मेघा जैन जो मंदसौर में है पूरा सहयोग रहा। एवं मेरी बुआ निर्मला सोनी एवम मेरे पिता ने निबंध की प्रारंभिकता लिखने में मेरा सहयोग किया साथ ही मेरी माताजी मधु जैन एवम धर्मपत्नी खुशबू जैन ने मुझे लेखन कंप्यूटर आदि में करने में सहयोग प्रदान किया। निश्चित रूप से अरिहंत जैसे युवा जो उच्च चिकित्सा होने के बावजूद भी धर्म से विमुख नहीं है एवं सेवा परोपकार के साथ धर्म के प्रति रुचि रखकर कार्य कर रहे हैं। यह अपने आप में पाश्चात्य संस्कृति में युवाओं के लिए एक पर्याय बनकर सामने आए हैं। निश्चित रूप से अरिहंत ने परिवार का समाज का एवं जैन जगत को गौरवान्वित किया है।

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