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जैन संस्कृति के चार योग… ऐसे बन सकते है तीर्थंकर :- मुनि श्री प्रसाद सागर जी महाराज

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जबलपुर(विश्व परिवार)। निर्यापक श्रमण मुनि श्री प्रसाद सागर जी ने श्री १००८ चंद्र प्रभु दिगंबर जैन मंदिर संगम कॉलोनी में अपने उद्बोधन में बताया की तीर्थंकर प्रकृति के बंध में हेतुभूत सोलहकारण भावनाओं में एक भावना अभीक्ष्ण ज्ञानोपयोग संवेग भी है। इसका मतलब यह नहीं कि सिर्फ अभीक्ष्ण ज्ञानोपयोग ही तीर्थकर प्रकृति के बंध में कारण है बल्कि अभीक्ष्ण संवेग भावना (निरन्तर वैराग्य की भावना) भी तीर्थंकर प्रकृति के बंध में कारण है।
महाराज श्री ने बताया की जैन धर्म में चार योग बताए गए है जिसमें प्रथमानुयोग भले ही बहुत राउन्ड लेकर तत्व पर आता है किन्तु उसके पठन-पाठन से प्रशम भाव की प्राप्ति होती है, वैराग्य की ओर कदम बढ़ाने में सुविधा होती है। जिन लोगों की यह धारणा बन चुकी है कि प्रथमानुयोग ग्रन्थों में सिर्फ कथा कहानियाँ ही हैं उन्हें रत्नकरण्डक श्रावकाचार के प्रसंग को भली-भाँति पढ़ लेना चाहिए। आचार्य समन्तभद्र स्वामी ने प्रथमानुयोग को बोधि-समाधि का निधान कहा है। वास्तव में शलाका पुरुषों के जीवन चरित्र को पढ़ने से कषायें शान्त होती हैं, मार्ग पर बढ़ने का साहस आता है।
दूसरा योग करणानुयोग ,करण शब्द के दो अर्थ हैं एक परिणाम और दूसरा गणित। अनुयोग के प्रसंग में करण का अर्थ गणित ही लिया गया है क्योंकि आचार्य समन्तभद्र स्वामी ने स्वयं कहा है कि जो शास्त्र चतुर्गति, युग परिवर्तन और लोक-अलोक के विभाग आदि का कथन करते हैं वे सब करणानुयोग के शास्त्र हैं अर्थात् भौगोलिक जानकारी देने वाले शास्त्रों को करणानुयोग में ही गर्भित करना चाहिए। इन शास्त्रों के स्वाध्याय करने से संवेग भाव की प्राप्ति होती है।
तृतिय चरणानुयोग जिसमें किस ओर चलें? और कैसे चलें? इस निर्णय के बाद भी पथ में पाथेय की आवश्यकता होती है जिसकी पूर्ति चरणानुयोग से ही होती है। सागार और अनगार की चर्या का वर्णन करने वाले इन शास्त्रों के पढ़ने से जीवों के प्रति करुणा/अनुकंपा का भाव हृदय में स्वयमेव आता है।
एवं अंतिम द्रव्यानुयोग,पाप-पुण्य, बन्ध-मोक्ष और जीवादिक तत्वों का कथन जिन शास्त्रों में है वे सभी शास्त्र द्रव्यानुयोग के ही शास्त्र हैं। इन शास्त्रों के पठन-पाठन से विश्वास मजबूत होता है, आस्तिक्य भाव की प्राप्ति होती है अत: जो व्यक्ति जोर देकर यह कहते हैं कि सम्यकदर्शन की प्राप्ति के लिये मात्र अध्यात्म ग्रन्थों को ही पढ़ना चाहिए उन्हें अभी और अधिक गंभीरता से द्रव्यानुयोग के विषय में चिन्तन करने की जरूरत है।
ऐसे चारो योगो के ज्ञान से मोक्ष मार्ग पर अग्रसर हुआ जा सकता है।

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