Home रायपुर भारतीय परंपरा और संस्कृति का उदाहरण बनी गणपति गजानन समिति

भारतीय परंपरा और संस्कृति का उदाहरण बनी गणपति गजानन समिति

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– कालोनी में अपरिचित रहने वाले लोगों के बीच पारिवारिक वातावरण बना गणेश स्थापना से
– प्रश्नों के माध्यम से अपनी परंपरा और संस्कृति को जानने का मिल रहा अवसर

रायपुर(विश्व परिवार)। राजधानी में ऐसे तो बड़े-बड़े गणेश पंडाल बनाए गए हैं और विशाल प्रतिमा स्थापित की गई है, परन्तु डीडीनगर सेक्टर 04 के गणपति गजानन समिति के गणेश स्थापना का ढंग वास्तव में न केवल अनुकरणीय है बल्कि लोगों को अपनी परंपराओं में लौटने का सकारात्मक संदेश दे रहा है। गणपति गजानन समिति ने पहली बार गणेश की स्थापना की और कालोनी में जहां पड़ोसी एक-दूसरे का नाम नहीं जानते थे, वहां ऐसा वातावरण तैयार किया, जिससे उनके बीच आत्मिक संबंध स्थापित हो गए हैं और लोकमान्य तिलक ने जिन उद्देश्य को लेकर इस पर्व की शुरूआत की थी, उसे चरितार्थ करते हुए दिखाई दे रही है।
आमतौर पर गणेश स्थापना करने वाली समिति चंदा की रसीद बुक छपाई से कार्य का आरंभ करती है, परन्तु गणपति गजानन समिति ने इस पवित्र और आध्यात्मिक कार्य के लिए किसी से पैसे मांगने चंदा नहीं मांगने का निर्णय लिया। सर्वप्रथम प्रतापचंद अल्पना दास, लक्ष्मण ललिता भंडारकर, रत्ना पटेल ने अपने घरों में उपलब्ध बांस बल्ली, तिरपाल, स्टेज बनाकर कार्य आरंभ किया और आसपास के लोगों को वाट्सएप के माध्यम से ग्रुप बनाकर गणपति स्थापना की नियमित जानकारी पोस्ट करना आरंभ किया। गणपति की स्थापना में लोग एक-दूसरे को जाने-पहचाने इसके लिए 11 दिन 11 परिवार को बारी-बारी से आरती के लिए आमंत्रित किया गया। उनके पति-पत्नी,बच्चों के नाम की सूची तैयार की गई और उन्हें गणेश जी की सेवा की एक दिन की जिम्मेदारी सौंपी गई। इसका यह लाभ हुआ कि पूरा परिवार एक दिन गणेश जी की पूजा की तैयार में लगा रहा, बच्चों ने हार बनाई तो घर में ही प्रसाद भी बनाया गया। धीरे-धीरे 11 परिवार से और अधिक परिवार जुड़ने लगे। गणेश को छप्पन भोग लगाकर प्रकृति प्रदत्त आहार का महत्व बच्चों को समझाया गया और फास्ट फुड का उपयोग कम करने की बात कही। महाआरती में 1001 दिये जलाकर सबसे लिये सद्भावना और सुख की कामना की गई।
बुद्धिप्रिय प्रश्न के माध्यम से संस्कृति की जानकारी
गणपति गजानन समिति ने प्रतिदिन बुद्धिप्रिय प्रश्न प्रतियोगिता का आयोजन किया, जिसमें रोज सुबह वाट्सएप पर संस्कृति एवं परंपरा से संबंधित प्रश्न भेजे जाते थे, जिसमें बच्चों के साथ बड़े उनका उत्तर वाट्सएप पर देते थे, इससे वे दिनभर रचनात्मक शोध में व्यस्त रहे। इसमें गणेश जी से संबंधित प्रश्नों के साथ ही देश के गणेश मंदिरों के सवाल होते थे। इसके अलावा प्रश्नों में अपने कुलदेवता का नाम, उसमें क्या भोग लगता है। उनके दादा-परदादा का क्या नाम था, जैसे सवाल पूछे जाते थे, जिनके जवाब बच्चे माता-पिता व अन्य संबंधियों से पूछकर देते थे।
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भीड़ वाला भंडारा नहीं, बैठ कर कराया भोज
इस समिति ने आम भंडारे की तरह लाइन लगाकर और खड़े होकर प्रसाद वितरण जैसी व्यवस्था के बजाय भारतीय परंपरा के अनुरूप गणेश जी के साथ स्नेह भोज का आयोजन किया, जिसके लिए सब्जी, चावल, पुड़ी इत्यादि सभी परिवार के महिला-पुरुषों में मिलकर एकसाथ बनवाया और उसे आरती के बाद सबको जमीन पर बैठाकर पत्तल से वितरित किया। आयोजकों ने पंडाल में गणेश जी को भोग के साथ सबकी मंगलकामना के लिए इस प्रसाद को ग्रहण करने की भावना रखी। इससे प्रभावित होकर लोगों ने स्वैच्छिक रूप से सहयोग राशि देना प्रारंभ कर दिया, संभावित खर्च के अनुसार अधिक राशि मिल गई तो समिति ने लोगों को चंदा देने से मना भी किया। समिति के सदस्यों का कहना है कि यदि हमें किसी भी कार्य करने का प्रयोजन पता है तो उसके लिए बड़ी धनराशि की आवश्यकता नहीं पड़ती। लोगों में आपसी सामंजस्य, सौहार्द्रता और पारिवारिक वातावरण मिलजुलकर रहने से बनाती है, इसके लिए पैसा नहीं लगता, हमने वही कार्य किया। उनका कहना है कि आज सब काम श्रमिक और ठेके पर कराया जाता है जिससे बच्चों में ईमानदारी और पारदर्शिता के साथ सामाजिक कार्य करने का संस्कार नहीं बन पाता। जब बच्चे अपने माता पिता को सार्वजनिक कार्य में खुद मेहनत करते हुए देखकर तो उनसे इसे संस्कार को रूप में ग्रहण करते हैं।
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अपने आसपास रहने वाले श्रेष्ठ व्यक्ति से लेते थे प्रेरणा
समिति बुद्धिप्रिय प्रश्न प्रतियोगिता की पुरस्कार वितरण के लिए प्रतिदिन एक अतिथि को आमंत्रित करती थी, ये अतिथि आपने आसपास रहने वाले श्रेष्ठ व्यक्ति होते हैं। वे अपने विषय से संबंधित होते थे। जैसे छत्तीसगढ़ के गणेश मंदिर और ढोलकल की गणेश प्रतिमा को लेकर जिस दिन प्रश्न पुछा गया, उस दिन उस पुरातत्वविद् को आमंत्रित किया गया था, जिसमें ढोलकल की टूटी प्रतिमा को फिर से जोड़कर स्थापित करने में अहम भूमिका निभाई थी। कुल देवता और अपने पूर्वजों को लेकर जिस दिन प्रश्न पूछा गया, उस दिन पं. रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति डॉ. एसके पांडेय का उद्बोधन रखा गया। संस्कृति से संबंधित प्रश्न वाले दिन समाजसेवी और सीएसईबी के पूर्व एमडी श्री पीएल विधानी ने बच्चों को सबके साथ मिलजुलकर रहने की प्रेरणा दी।
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अलग प्रकृति के होने के बाद भी एकजुट होने का संदेश
परिवार पर आधारित प्रश्न वाले दिन डगनिया के पांच बेटे बहुओं वाले संयुक्त परिवार के मुखिया भीषम लाल ताम्रकार को आमंत्रित किया गया, उन्होंने शिव परिवार का उदाहरण देकर बताया कि नंदी, शेर, सांप, मोर और चूहा शेर ये सभी शिव परिवार के वाहन हैं, लेकिन इनकी कभी एक-दूसरे से नहीं जमती। इनका स्वभाव एक दूसरे के दुश्मन की तरह रहता है, परन्तु शिव परिवार में सभी एकसाथ तालमेल के साथ रहते हैं, हमें भी अपने परिवार के साथ ऐसा रहना चाहिए। इसमें चार्टेड अकाउंटेंट विकास शर्मा, साहित्यकार डॉ सुधीर शर्मा और माना वृद्धाश्रम के अध्यक्ष राजेंद्र निगम को भी आमंत्रित किया गया, जिन्होंने बच्चों को अच्छे भविष्य के लिए शिक्षा के महत्व को बताया।

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