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सुमतिधाम में पट्टाचार्य महोत्सव का भव्य आयोजन, लाखों श्रद्धालु बने ऐतिहासिक क्षण के साक्षी

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  • विधि, अभ्यास और गुरु को कभी नहीं छोड़ना चाहिए- पट्टाचार्य विशुद्ध सागर महाराज

इंदौर (विश्व परिवार)। रेखा संजय जैन जी ने अवगत कराया की,अक्षय तृतीया के विशेष अबूझ मुहूर्त में 12 आचार्यों ने हाथ थामकर जैसे ही आचार्य विशुद्ध सागर जी महाराज को पट्टाचार्य सिंहासन पर विराजित किया, पूरा पंडाल शंखनाद, नगाड़ों, घंटियों, ढोल-मंजीरों और लाखों श्रद्धालुओं की तालियों की गूंज से गूंजायमान हो उठा। दक्षिण दिशा से आए भट्टारक स्वामी जी ने मंत्रोच्चार किया, वहीं मुनि महाराज और आर्यिकाओं ने पाद प्रक्षालन कर आशीर्वाद प्राप्त किया और ‘नमोस्तु’ कहा।
श्री सुमतिनाथ दिगंबर जिनालय, गोधा एस्टेट, पट्टाचार्य महोत्सव समिति, गुरु भक्त परिवार एवं मनीष-सपना गोधा ने बताया कि 6 दिवसीय पट्टाचार्य महोत्सव का मुख्य आयोजन अत्यंत भव्यता एवं श्रद्धा के साथ मनाया गया। प्रातः काल मंगल यात्रा निकाली गई, जिसके लिए अनुयायियों और धर्मालंबियों ने सुबह पांच बजे से ही अपने स्थान ग्रहण कर लिए थे। सात बजे के बाद निर्धारित मुहूर्त में विशेष मंत्रोच्चारण प्रारंभ हुआ। अष्टकुमारियों ने कलश स्थापना की। पट्टाचार्यों ने भूमि शुद्धि की। गोधा एस्टेट के गुरुभक्त मनीष और सपना गोधा ने पवित्र नदियों से लाया गया जल, गंधोदक और चंदन से सिंहासन का शुद्धिकरण किया।
इसके पश्चात 12 आचार्यों ने सामूहिक रूप से हाथ थामकर आचार्य श्री विशुद्ध सागर जी महाराज को पट्टाचार्य सिंहासन पर विराजित कर उन्हें पथप्रदर्शक के रूप में स्वीकार करते हुए अनुमोदना और सहमति प्रकट की।
स्वर्ण-रजत कलश जल से हुआ पाद प्रक्षालन
सुमतिनाथ दिगंबर जिनालय, गोधा स्टेट में उस क्षण ऐसा प्रतीत हो रहा था मानो समय ठहर गया हो। दसों दिशाओं के साथ क्षेत्रपालों का आह्वान किया गया। वायुकुमार, मेघकुमार, अग्निकुमार के नाम के अर्घ्य चढ़ाकर उन्हें आमंत्रित कर प्रतिष्ठित किया गया।
इस अद्वितीय, ऐतिहासिक क्षण में 12 आचार्य, 8 उपाध्याय, 140 मुनि महाराजों व आर्यिका माताजी ने अपने पट्टाचार्य को सम्मानपूर्वक स्थापित किया। मनीष-सपना गोधा ने स्वर्ण-रजत कलश जल से पट्टाचार्य पद पर विराजमान आचार्य विशुद्ध सागर जी के चरणों का पाद प्रक्षालन किया और उस जल को श्रद्धापूर्वक अपने मस्तक से लगाया। सभी मुनि महाराज और आर्यिकाओं ने भी वह जल मस्तक से लगाकर आशीर्वाद ग्रहण किया।
गुरु के आदेश का शिष्यों ने किया पालन
अक्षय तृतीया के इस शुभ अवसर पर आचार्य श्री विशुद्ध सागर महाराज को पट्टाचार्य उपाधि गणाचार्य विराग सागर जी की आज्ञा से प्रदान की गई। शिष्यों ने अपने गुरु की आज्ञा को न केवल सुना, बल्कि उसे अक्षरशः पालन करते हुए पट्टाचार्य पदवी प्रदान की।
विधानाचार्य धर्मचंद्र शास्त्री, चंद्रकांत ईंडी, नितिन झांझरी के निर्देशन में प्रातः 5:15 बजे स्तुति, देव स्तवन, आचार्य वंदना एवं स्वाध्याय के पश्चात 6 बजे अभिषेक व शांतिधारा की विधियां संपन्न हुईं। प्रातः 6:30 बजे मंगल जुलूस परिसर में निकाला गया। 36 संस्कार विधियों के अंतर्गत पट्टाचार्य पद प्रतिष्ठा संस्कार समारोह संपन्न हुआ। इसमें कलश स्थापना, भूमि शुद्धि, स्थान शुद्धि, सिंहासन शुद्धि के पश्चात समाज व गुरु भक्तों के निवेदन को स्वीकार करते हुए विशुद्ध सागर महाराज को सिंहासन पर विराजमान किया गया। दीप स्थापना एवं पीठ शुद्धि के साथ पट्टाचार्य पद के माता-पिता बनने का सौभाग्य सपना-मनीष गोधा परिवार को प्राप्त हुआ।
रात्रि में महाआरती, लेजर शो और सम्राट खारवेल नाटिका का भव्य मंचन हुआ, जिसे जैन धर्मालंबियों ने अत्यंत सराहा।
पट्टाचार्य का पहला आशीर्वचन
“विधि, अभ्यास और गुरु को कभी नहीं छोड़ना चाहिए” पट्टाचार्य विशुद्ध सागर महाराज उन्होंने कहा:
“गुरुदेव ने मुझमें क्या देखा, यह मुझे नहीं पता। मैंने केवल गुरु सेवा और उनकी आज्ञा को देखा और उसी मार्ग पर चलता गया। आज भी यह जिम्मेदारी उसी आज्ञा से संभाल रहा हूं। मुझे याद है, मेरे गुरुदेव ने मेरे भीतर वैराग्य के बीज को पहचाना और एक झलक में ही वह प्रस्फुटित हो उठा। आगम कहता है कि एक बार जिसे गुरु मान लिया जाए, वह जीवन भर गुरु ही रहना चाहिए।
दीक्षा के बाद मैंने एक दिन भी गुरु कक्ष छोड़ा नहीं। मैंने संकल्प लिया था कि गुरु के सामने कभी लेटूंगा नहीं, न ही खांसूंगा। एक रात 3 बजे गुरुदेव की पिच्छी मेरे सिर पर घूम रही थी, उन्होंने कहा — ‘जाग जाओ, सोने की जरूरत नहीं है, जिनागम का रहस्य समझो।’ उस समय तो समझ नहीं आया, लेकिन आज समझ आ रहा है कि वे मुझे इस दायित्व के लिए तैयार कर रहे थे।
यदि मुझसे कोई पूछे कि आप इस पद तक कैसे पहुंचे तो मेरा उत्तर होगा — विधि, अभ्यास और गुरु का आशीर्वाद कभी नहीं छोड़ना चाहिए। आज इस सिंहासन पर जो प्रतिष्ठा हुई है, वह अकेले मेरी नहीं है, सभी 12 आचार्यों को मिलकर इस पद के कर्तव्यों का निर्वहन करना होगा।”
जन्मदिवस पर पहुंचे मंत्री कैलाश विजयवर्गीय
अपने जन्मदिवस पर नगर प्रशासन मंत्री कैलाश विजयवर्गीय सुमतिधाम पहुंचे और पट्टाचार्य विशुद्ध सागर जी से आशीर्वाद प्राप्त किया। उन्होंने कहा:
“इंदौर में मैंने इतने साधु-संतों का एक साथ ऐसा भव्य समागम पहले कभी नहीं देखा। यह दृश्य अविस्मरणीय और गौरवपूर्ण है। मां अहिल्या की नगरी आज पुण्यभूमि बन गई है। आज देश में बढ़ती अशांति और हिंसा को संतों की साधना और तप ही रोक सकते हैं। जब तक इस धरती पर पानी और अग्नि हैं, तब तक जिन शासन रहेगा। आप सभी संत समाज को शांति और अहिंसा का मार्ग दिखाएं।”

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