दिल्ली(विश्व परिवार)। आस्था की भूमि पर जब ज्ञान का बीज बोया जाता है तो चारित्र का वृक्ष उत्पन्न होता है। उस चारित्र रूपी वृक्ष पर तप फूल खिलते हैं। जिनसे त्याग की सुगंध उत्पन्न होती है जो पूरे साधक जीवन की महक प्रदान करती है। उरत तप के फूल पर ही सुख, शान्ति और आनंद के फल अति है ऐसी ही तप व्याग और साधना की प्रतिमूर्ति थे आचार्य श्री मानतेग स्वामी। वे कभी ग्रीष्म काल में पर्वत के शिखरों पर आतापन योग धारण करते है तो कभी वषर्षाकाल में किसी वृक्ष के मूल में वृक्षमूल तप की आराधना करते थे तो कभी शीतकाल में किसी नदी किनारे खुले आकाश में अम्रावकाश नाम की कठोर तपसाधना के माध्यम से अपने आत्माहित का पावन पुरुषार्थ किया करते थे। ऐसे महान संत जो इस भौतिक जग से अपरिचित निज आत्म ध्यान में लीन रहा करते थे, ऐसे महान साधक पर जब उपसर्ग हुआ तो उन्होंने श्री भक्तामर स्तोत्र के माध्यम से प्रथम तीर्थकर ऋषभदेव की स्तुति की ओर उनकी वह भाव स्तुति महान अतिशय का कारण बनी। उस भक्तामर रचना के प्रभाव से 48 जेलो के ताले और शरीर पर बंधी हुई जंजीर क्षणभान में टूटकर नीचे गई। आचार्य श्री मानतंबा स्वामी भी यह अतिशय चमत्कारी भक्तामर रातोन पर परम पूज्य जिनागम पंथ प्रववेक,आदर्शमहाकवि भावलिंगी संत,श्रमणाचार्य श्री विमर्शसागर जी महामुनिराज के मंगल सानिध्य एवं मधुर कण्ठ से श्री भक्तामर महिमा प्रशिक्षण शिविर का महामांगलिक आयोजन श्री दिगम्बर जैन समाज कृष्णा नगर में आज 30/07/2024 से प्रारंभ हो चुका है.ऐतिहासिक शुभारंभ श्री भक्तामर प्रशिक्षण शिविर का गुरु शुभाशीष पूर्वक भव्यता पूर्वक सम्पन्न हुआ ।
की परमपूज्य दिगम्बराचार्य ने कहा प्रतिदिन सभी शिविरार्थी को अपनी किट को लेकर आना होगा,किट में अध्ययन संबंधी,डायरी पेन,पुस्तक और विनय का प्रतीक टोपी होगी। प्रतिदिन पुरुष वर्ग सफेद वस्त्रों में और महिमा वर्ग केसरिया साड़ी में रहेंगे। प्रतिदिन गुरुमुख से अमृत देशना सुनने के लिये अपार भीड उपस्थित हो रही है प्रवचन स्थल कम हो रहा है भीड़ दिन ब दिन बढती जा रही है ।