कोल्हापूर(विश्व परिवार)। चर्या शिरोमणी, आध्यात्मयोगी आचार्य श्री विशुद्धसागर जी महाराज के दर्शन करने हेतू 18 अकटूबर 2024 को नांदणी में श्रवणबेलगोला के स्वस्तिश्री चारुकीर्ती भट्टारक स्वामीजी पधारे थे | तब उन्होने चर्या शिरोमणी आध्यात्मयोगी आचार्य श्री विशुद्धसागर जी महाराज संसघ को श्रवणबेलगोला पधारणे हेतू स्वस्तिश्री चारुकीर्ती भट्टारक स्वामीजी, श्रवणबेलगोला ने निवेदन किया था।
श्रवणबेलगोला में विश्व प्रसिद्ध भगवान बाहुबली की विशाल एवं भव्य मूर्ति हैं | चर्या शिरोमणी आचार्य श्री 108 विशुद्धसागर जी महाराज संसघ मंगल विहार नांदणी से गोम्मटेश बाहुबली श्रवणबेलगोला (कर्नाटक) के लिए चल रहा है।
संभवता 25/11/2024 की शाम को या 26/11/2024 की सुबह आचार्य श्री विशुद्धसागर जी ससंघ का भव्य मंगल प्रवेश दक्षिण भारत के सुप्रसिद्ध तीर्थ क्षेत्र गोम्मटेश बाहुबली श्रवणबेलगोला जी कर्नाटक मे होगा। परम पूज्य चर्या शिरोमणि आचार्य श्री विशुद्धसागर जी महाराज को कर्नाटक सरकार से कर्नाटक प्रवास तक राज्यकीय अतिथि घोषित किया गया।
आगामी भव्य पंचकल्याणक श्री दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र जैनरगुत्ती, हासन (कर्नाटक) 28 नबम्बर 2024 से 4 दिसम्बर 2024 तक हैं।
उत्तर भारत की उज्जयनी नगरी में जब बारह वर्षीय का अकाल पड़ा, उसी समय अंतिम श्रुतकेवली भद्रबाहु स्वामी ने अपने ज्ञान से जान लिया कि आने वाले समय में यहां पर अकाल पडऩे वाला है। तभी अंतिम श्रुतकेवली भद्रबाहु स्वामी जी चंद्रगुप्त सहित बारह हजार मुनियों के साथ दक्षिण भारत में चंद्रगिरि पर्वत पर आत्म साधना करने आए थे। उस समय दक्षिण भारत में जैन धर्म पहले से ही प्रचलित था।
जिस प्रकार अंतिम श्रुतकेवली भद्रबाहु स्वामी उत्तर से दक्षिण आकर जैनधर्म का प्रचार किया था, उसी प्रकार पंचकल्याणक पूजा महोत्सव हेतू प. पू जिनसेन भट्टारक पट्टाचार्य महास्वामीजी, नांदणी के नेतृत्व में वर्तमान के भद्रबाहू स्वामी जी को आचार्य विशुद्धसागर महाराज जी और उनके 25 शिष्यों के संघ को उत्तर से दक्षिण धर्म प्रभावना हेतू लाये हैं।
चन्द्रगिरि पर्वत पर भद्रबाहु गुफा में आज भी हमें भद्रबाहु स्वामी के चरणों की वन्दना करने का अवसर प्राप्त होता है। चंद्रगुप्त मुनि के नाम से ही पर्वत का नाम बाद में चन्द्रगिरि पर्वत हुआ और साथ में ही चंद्रगिरि पर्वत पर एक मन्दिर(बसदी) का नाम भी चंद्रगुप्त बसदी है। इन दोनों गुरु-शिष्य का वर्णन प्राचीन शास्त्र में विस्तार से दिया गया है और श्रवणबेलगोला के शिलालेखों में भी मिलता है। नमोस्तु शासन जयवंत हो।