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आईसीएआर-एनआईबीएसएम रायपुर की टीम ने विकसित कृषि संकल्प अभियान में किसानों से किया आमने-सामने संवाद

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  • किसानों ने उठाए फसल बीमा, सिंचाई और MSP से जुड़े मुद्दे; वैज्ञानिकों ने सुझाए उन्नत खेती के समाधान

रायपुर (विश्व परिवार)। आईसीएआर-राष्ट्रीय जैविक स्ट्रेस प्रबंधन संस्थान (NIBSM), रायपुर के निदेशक डॉ. पी.के. राय के मार्गदर्शन एवं पर्यवेक्षण में संस्थान के वरिष्ठ वैज्ञानिकों की एक टीम ने विकसित कृषि संकल्प अभियान के तहत छत्तीसगढ़ के विभिन्न जिलों में दौरा करते हुए किसानों से सीधा संवाद किया। इस टीम में डॉ. आर.के. मुरली बास्करन, डॉ. के.सी. शर्मा, डॉ. एस.के. जैन, डॉ. (श्रीमती) लता जैन, डॉ. श्रीधर जे., डॉ. ललित लक्ष्मण खरबिकर, डॉ. योगेश येले, डॉ. श्रावणी सान्याल और डॉ. प्रियांका मीणा शामिल थे।
वैज्ञानिकों ने रायपुर, बेमेतरा, दुर्ग, बालोद, धमतरी, बिलासपुर, महासमुंद, गरियाबंद और बलौदा बाजार जिलों के गांवों में जाकर किसानों से मिलकर उनकी मुख्य समस्याएँ जानी। किसानों ने इस अवसर पर फसल बीमा राशि न मिलना, मृदा की घटती उपज क्षमता, जल स्रोतों की कमी, कीट एवं रोग नियंत्रण में कठिनाइयाँ, महंगे बीज और खाद की उपलब्धता, मंडी में न्यूनतम समर्थन मूल्य न मिलना, जलवायु परिवर्तन के प्रभाव तथा तकनीकी जानकारी की कमी जैसी समस्याओं को उठाया। किसानों की इन चिंताओं पर गहराई से विचार-विमर्श करते हुए वैज्ञानिकों ने उन्हें त्वरित और व्यवहारिक समाधान प्रदान किए।
इस दौरान वैज्ञानिकों ने प्रेसिजन फार्मिंग की जरूरत पर ज़ोर देते हुए बताया कि मिट्टी की गुणवत्ता एवं नमी का सटीक आंकलन कर खेतों में ड्रोण आधारित सर्वेक्षण व पोषण प्रबंधन से उत्पादन बढ़ाया जा सकता है। उन्होंने ड्रिप एवं स्प्रिंकलर सिंचाई प्रणाली अपनाने की सलाह दी ताकि सीमित जल स्रोतों का अधिकतम उपयोग सुनिश्चित हो सके तथा आवश्यकतानुसार सिंचाई आवृत्ति और पानी की मात्रा का निर्धारण किया जा सके। स्मार्ट एग्रीकल्चर के अंतर्गत उन्होंने बताया कि मोबाइल ऐप्स और आईओटी सेंसर से खेतों में रियल टाइम मिट्टी का पोषण स्तर, कीट-रोग की स्थिति और मौसम आधारित सलाह प्राप्त की जा सकती है, जिससे किसान अपने निर्णय समय पर ले सकें।
ऐसी ही जैविक एवं प्राकृतिक खेती के महत्व पर प्रकाश डालते हुए वैज्ञानिकों ने रासायनिक उर्वरकों के बजाय जैविक खाद, बायोफर्टिलाइजर और नीम आधारित जैविक कीटनाशकों के प्रयोग से मिट्टी की उर्वरता बनाए रखने का तरीका समझाया। साथ ही स्थानीय स्तर पर उपलब्ध गोबर की खाद और वर्मीकम्पोस्ट तैयार करने के लाभों पर भी विस्तृत जानकारी दी। मिट्टी परीक्षण की अनिवार्यता पर बल देते हुए उन्होंने बताया कि नियमित रूप से मिट्टी की पीएच, कार्बनिक कार्बन, फॉस्फोरस, पोटाश और सूक्ष्म पोषक तत्वों का परीक्षण करवाकर संतुलित उर्वरक योजना बनाई जा सकती है, जिससे मिट्टी की उपज क्षमता दिर्घकालीन रूप से बढ़ाई जा सकती है।
फसल विविधीकरण की दिशा में किसानों को दलहन, तिलहन तथा दलहन-तिलहन मिश्रित खेती अपनाने के सुझाव दिए गए, जिससे मोनोकल्चर की बजाय भूमि की उर्वरता में सुधार और आय में स्थिरता लाई जा सके। कीट प्रबंधन के जैविक उपायों में उन्होंने ट्रैप क्रॉपिंग की तकनीक, नीम आधारित घोलों के निर्माण व उपयोग की विधि और खेत स्तर पर जैविक कीटनाशकों के निर्माण की प्रक्रिया साझा की, जिससे किसान रासायनिक कीटनाशकों पर निर्भरता घटाकर टिकाऊ खेती अपना सकें।
डिजिटल कृषि के क्षेत्र में वैज्ञानिकों ने किसानों को बताए कि वे मोबाइल ऐप्स के माध्यम से मौसम पूवार्णुमान, फसल निगरानी और मंडी भाव की जानकारी प्राप्त कर सकते हैं। खेतों में ब्लूटूथ-संचालित मिट्टी सेंसर, स्मार्ट हार्वेस्टर मॉनिटरिंग डिवाइस और ड्रोन जैसी तकनीकों का उपयोग कर फसल की सेहत और उत्पादकता बढ़ाई जा सकती है। इस दौरान किसानों को यह भी समझाया गया कि सिंचाई तालिका निर्धारित करने के लिए कौन से एल्गोरिदम और डेटा स्रोतों का उपयोग करना चाहिए, ताकि जल का संतुलित उपयोग हो और फसल उत्पादन प्रभावित न हो।
इस मतभेद के दौरान फसल बीमा और न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) से जुड़ी परेशानियों का भी समाधान प्रस्तुत किया गया। वैज्ञानिकों ने किसानों को प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना (PMFBY) में पंजीकरण, दावा प्रक्रिया और दस्तावेज़ीकरण की पूर्ण जानकारी दी, जिससे उन्हें बीमा राशि प्राप्त करने में आने वाली कठिनाइयाँ दूर हों। इसके साथ ही मंडी में MSP सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक औपचारिकताओं और सरकारी योजनाओं के तहत उपलब्ध सब्सिडी व समर्थन की जानकारी प्रदान की गई।
जलवायु परिवर्तन के प्रभावों पर विचार करते हुए वैज्ञानिकों ने किसानों को सूखा-प्रतिरोधी वेरायटी के चयन, वर्षा-जल संचयन, तालाब निर्माण तथा जल-संवर्धक गार्डनिंग तकनीकों के माध्यम से अनुकूलन रणनीतियाँ अपनाने की सलाह दी। उन्होंने बताया कि मानसून में जल संचयन करें और सूखे के समय उपयोग के लिए भूमिगत जल भंडार बनाएँ, जिससे सिंचाई पर निर्भरता कम हो।
डॉ. पी.के. राय ने इस दौरान कहा कि विकसित कृषि संकल्प अभियान का मूल उद्देश्य किसानों को आत्मनिर्भर बनाना, जलवायु के प्रति संवेदनशील कृषि अपनाने के लिए प्रेरित करना और विज्ञान-आधारित सुझाव देकर उनकी आय में वृद्धि सुनिश्चित करना है। उन्होंने बताया कि इस दौरे के अनुभवों और फीडबैक के आधार पर आगामी महीनों में क्षेत्रीय कार्यशालाएँ, फील्ड डेमो और ऑनलाइन प्रशिक्षण मॉड्यूल आयोजित किए जाएंगे, ताकि अधिक से अधिक किसान इन जानकारियों का लाभ उठा सकें।
इस अभियान से किसानों की तकनीकी साक्षरता बढ़ेगी, जिसके चलते वे कृषि क्षेत्र की चुनौतियों का सामना अधिक मजबूती से कर पाएंगे। ICAR-NIBSM रायपुर की यह पहल न केवल ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूती प्रदान करेगी, बल्कि छत्तीसगढ़ के कृषि उत्पादन और किसानों की आजीविका को भी दीर्घकालीन रूप से सशक्त बनाएगी।

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