Home इंदौर “यदि आप धर्मात्मा हैं तो कभी कान के कच्चे न बनें ”...

“यदि आप धर्मात्मा हैं तो कभी कान के कच्चे न बनें ” – भावलिंगी संत आचार्य श्री विमर्शसागर जी

38
0

इंदौर (विश्व परिवार)। सज्जन पुरुषों की संगति हमेशा करना चाहिए चाहे वह कठिनता से भी प्राप्त क्यों न हो और दुर्जनों की संगति यदि सुलभता से भी प्राप्त हो तो भी कभी ग्रहण नहीं करना चाहिए । गणधर भगवान गौतम स्वामी कहते हैं- “संगति सर्वदायैः”।
आचार्य भगवन् कुन्द‌कुन्द‌ स्वामी कहते हैं – अज्ञानी जीव अपने ही अज्ञान एवं पापकर्मोदय से प्रभावित होकर जगत्पूज्य संयम तप, नियम, योग आदि गुणों को धारण करने वाले धर्मात्मा जनों पर मिथ्या-झूठे आरोप-दोष लगाता है ऐसा पापी पुरुष स्वयं धर्म से भ्रष्ट है और वह दूसरे धर्मात्माओं को भी भ्रष्ट करना चाहता है।
धर्मात्मा जीवों को कभी भी “कान का कच्चा ” नहीं ” बनना चाहिए “जैसे कभी किसी अज्ञानी जीव ने गुणों के समुद्र धर्मात्मा पुरुषों की आपके कान में निन्दा – बुराई – चुगलखोरी फूंक दी और आपने उसको यथार्थ मानकर उन धर्मात्मा के प्रति अश्रद्धा अपने अंदर पैदा कर ली और अन्य लोगों के बीच भी उनका अपवाद फैलाने लगे” ऐसे अज्ञानी जनों को घोर पापकर्म का बंध निरंतर होता रहता है जिससे वे चिरकाल तक नरकादि दुर्गतियों के दुःखों को भोगते रहते हैं।
सच्चे धर्मात्मा जन तो वे होते हैं कि कभी किसी धर्मनिष्ठ जीव से प्रमादवश अथवा कर्मोदय से कोई दोष हो गया तो भी सच्चे धर्मात्मा जीव उनके दोष का उपगूहन (ढाँकना) करते हैं और स्थितिकरण करते हैं किन्तु कभी भी भूलकर भी उनकी निन्दा – बुराई-चुगली नहीं करते ।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here