नई दिल्ली (विश्व परिवार)। छह जून की सुनहरी सुबह, गेंदे के फूलों से सुसज्जित, चमचमाती वन्दे भारत एक्सप्रेस, श्री माता वैष्णो देवी कटरा से श्रीनगर के लिए अपनी पहली यात्रा पर , प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी द्वारा, हरी झंडी दिखाकर रवाना की गई। यह ट्रेन, जो अब हर सप्ताह छह दिन श्रीनगर और कटरा के बीच दो बार दौड़ती है, केवल एक आधुनिक परिवहन सेवा नहीं है—यह दशकों पुराने एक सपने का यथार्थ है। यह सपना था कश्मीर को भारत के शेष हिस्से से स्थायी रेल संपर्क के माध्यम से जोडऩे का—एक संकल्प, जो इस्पात, तकनीक और दृढ़ इच्छाशक्ति से पूरा हुआ। आज यह ट्रेन पहाड़ों को चीरते हुए दौड़ती है, और अपने साथ लाती है रोजगार, पर्यटन, कारोबार और उम्मीदों की एक नई सुबह। भारतीय रेल ने अपने 172 वर्षों के गौरवशाली इतिहास में देश सेवा के अनेक कीर्तिमान स्थापित किए हैं। पीढ़ी-दर-पीढ़ी रेल कर्मचारियों ने निष्ठा के साथ रेल के ताने बाने को भारत के ओर-छोर तक पहुँचाया है। एक लोकप्रिय विज्ञापन की पंक्तियों को कुछ बदलते हुए कहें तो—भारतीय रेल सिर्फ पटरियां नहीं बिछाती, यह राष्ट्रीय एकता की बुनियाद का ताना-बाना भी बुनती है!
दशकों से कश्मीर की कहानी को एक जटिल और पेचीदे अध्याय के रूप में देखा जाता रहा है। भूगोल, इतिहास, राजनीति और पडोसी मुल्क की पनाह में पनपते आंतकवाद के साये ने, इसे भारत के अन्य हिस्सों से कुछ पृथक ही रखा। कश्मीर की यात्रा भी एक चुनौती से कम नहीं रही – दुर्गम रास्ते, खतरनाक सडक़ें, सीमित हवाई संपर्क और रेल, मात्र कल्पना! ब्रिटिश काल से ही कश्मीर को रेल से जोडऩे की परिकल्पना की जा रही थी, जो दशकों तक केवल कागजों में ही सिमटी रही। स्वतंत्रता के पश्चात्, अनगिनत विचार-विमर्श, अध्ययन, तकनीकी परीक्षणों और देशी-विदेशी विशेषज्ञों के परामर्श के बाद, 1994 में, उधमपुर–श्रीनगर–बारामुला रेल लिंक (स्क्चक्ररु) को आधिकारिक मंजूरी मिली। इस परियोजना को भू-राजनीतिक जटिलताओं ने बार-बार बाधित किया। फिर भी इस परियोजना के उत्तरी और दक्षिणी हिस्से तो पूरे हुए, लेकिन कटरा से बनिहाल तक का मध्य खंड एक बड़ी चुनौती बना रहा। यह खंड न केवल तकनीकी रूप से कठिन था, बल्कि इसमें सुरक्षा, पर्यावरण और भूगर्भीय बाधाएँ भी थीं। वर्ष-दर-वर्ष परियोजना दो हिस्सों में बंटी रही—जैसे एक-दूसरे को छूने के लिए गहरी घाटियों के कगार पर बाहें फैलाये हुए खड़ी हों। अंतत: इस परियोजना को सरकार ने ‘राष्ट्रीय प्राथमिकता’ घोषित कर अंतिम पड़ाव तक पहुंचाने का दृढ़ संकल्प लिया – तब जाकर पहाड़ों की चुप्पी टूटी और फौलाद की नसें सुरंगो से गजऱने लगीं। रेल मंत्री श्री अश्विनी वैष्णव ने सही ही कहा, यह केवल एक परिवहन परियोजना नहीं, बल्कि राष्ट्र निर्माण का कार्य था।
स्क्चक्ररु परियोजना, भारतीय रेलवे की अब तक की सबसे चुनौतीपूर्ण और भव्य परियोजनाओं में से एक है। 272 किलोमीटर की इस रेललाइन में 40 सुरंगें और 900 से अधिक पुल शामिल हैं।
इस परियोजना का प्रतीक चिन्ह है चिनाब रेलवे ब्रिज—दुनिया का सबसे ऊंचा रेलवे पुल, जो समुद्रतल से 359 मीटर की ऊँचाई पर खड़ा है। यह पुल 260 किमी/घंटे तक की हवाएँ और तीव्र भूकंप के स्पन्दन को भी सहन करने की क्षमता रखता है। साथ ही, यहाँ स्थित है अंजी खड्ड पुल — भारत का पहला ‘केबल-स्टे’ रेल पुल — जो 193 मीटर ऊँचे एक स्तम्भ से जुड़ी 96 केबलों के सहारे, घाटी से 331 मीटर की ऊंचाई पर टिका हुआ है। कश्मीर के संत्री कहे जाने वाली पीर पंजल पर्वतमाला के ह्रदय को भेदती, 11 किलोमीटर से लंबी, ‘टी-80 सुरंग’, बनिहाल को काज़ीगुंड से जोड़ती है। ऐसी अनेकों सुरँगों और पुलों से निर्मित यह रेलवे लाइन गाथा सुनाती है, न सिर्फ इंजीनियरिंग तकनीक की, बल्कि मानव संकल्प, साहस और दृढ निश्चय की – आसमान को फौलाद की चुनौती देती यह रेलवे लाइन जोड़ती है देश को कश्मीर से कन्याकुमारी तक!
भारतीय रेल का सबसे नया सितारा, कटरा को श्रीनगर से जोड़ता वन्दे भारत एक्सप्रेस का सफर, मात्र एक यात्रा नहीं, एक वृतांन्त है। यह घाटियों और पर्वतों को लांघता, दूरियां घटाता, घोषणा करता है कि कश्मीर अब दूर नहीं! छह घंटो से अधिक समय लेता, दुर्गम घाटियों, पेचीदे मोड़ों और मौसम की मार सहता, सडक़ का सफर, अब रेल के काँधे पर, मात्र आधे समय में, आरामदेह कुर्सियों पर, चाय की चुस्कियों के साथ गुजऱता है। ट्रेन के पहियों का संगीत, न केवल शहरों को जोड़ता है बल्कि संजोता है उम्मीदों को, जि़न्दगियों को, तरक्की को।
कश्मीर के दूरदराज़ गांवों के बच्चे अब जम्मू और दिल्ली के विश्वविद्यालयों की बातें करते हैं। स्थानीय कारीगर, सेब उत्पादक और कालीन बुनकर अब अपने उत्पादों को घाटी से बाहर के बाज़ारों में तेजी से और ताजग़ी के साथ पहुँचाने के सपने बुन रहे हैं। श्रीनगर के एक युवा दुकानदार ने कहा: जहां पहले चेकपोस्ट और देर होती थी, अब वहां ट्रेन की आवाज़ सुनाई देती है। ऐसा लगता है जैसे अब हम बाकी देश का इंतज़ार नहीं कर रहे—हम उसी के साथ चल रहे हैं।
यह सच है कि एक ट्रेन, या एक रेलवे लाइन, कश्मीर की सभी समस्याओं का हल नहीं है। न तो ये इतिहास मिटा सकती है, न ही जख्मों को तुरंत भर सकती है — सुरक्षा से जुड़ी चिंताओं का समाधान अभी भी जरूरी है। लेकिन सच्चाई यह भी है कि यह स्थाई संपर्क मार्ग, नए रास्ते, नए अवसर और नए दरवाज़े खोल रहा है। जम्मू और कश्मीर के आर्थिक, सांस्कृतिक और सामाजिक उत्थान को नयी ऊंचाइयों पर ले जाने का मार्ग प्रशस्त कर रहा है। और यही इस परियोजना की सबसे बड़ी उपलब्धि है।
एक सपना, जो कभी अंग्रेज़ी अफसरों की ड्रॉइंग बोर्ड पर था—आज वह इस्पात की पटरियों पर हकीकत बनकर दौड़ रहा है। यह उस राष्ट्र की कहानी है, जो न तो भौगोलिक चुनौती से डरा, न आतंक से, और न ही समय से। पर्वतों के सायों से निकलकर धूप में नहाए स्टेशनों तक, एक नई यात्रा शुरू हो चुकी है—जो सिर्फ दूरी नहीं, दिलों को भी पाटती है।