(विश्व परिवार)। बसंत पंचमी के एक दिन पहले कॉपी- किताब और अलमारी की सफाई कर रहा था। किताबों में लगे फटे चिथड़े जिल्द को बदलते भी जा रहा था। तभी अलमारी के कोने से किसी के सिसकने रोने की आवाज आई।अलमारी के पीछे झांककर देखा तो भौंचक्का रह गया, दरअसल वहां पड़ी सरस्वती माई की फोटो रो रही थी।
फोटो को जब मैंने उठाया तो धूल की पर्त फोटो के ऊपर जमी हुई दिखाई दी। मैंने पूछा क्या हो गया माई? क्यों कलप कलप कर रो रही हो? तब फ्रेम के भीतर जड़ी हुई माई बोली- मेरा दुःख दर्द पूछने वाले तुम कौन परोपकारी हो बाबू?ठीक से दिखाई नहीं दे रहे हो। कांच के ऊपर जमी धूल की पर्त को साफ करोगे तभी तो देख पाऊंगी।
सरस्वती माई की फोटो के ऊपर जमी धूल की पर्त को मैंने जैसे ही टॉवल से साफ किया।माई मुझे झट से पहचान गईं।वे बोली-अच्छा अच्छा …।याद आया।तुम्हीं तो मुझे पिछले वर्ष मुझे बसंत पंचमी के दिन बाजार से खरीद कर लाए थे। उनकी बातें सुनकर मैं बछड़े की तरह कूलकते हुए बोला- हां माई, मैं ही तुम्हें बाजार से लाया था। विधि-विधान से पूजा करके खुबसूरत फूलमाला अर्पित भी किया था।आपने मुझे पहचान लिया यह मेरे लिए बड़ी खुशी की बात है।
तुम्हें कैसे नहीं पहचानूंगी बाबू।कहते हुए माई ने तल्ख़ लहज़े में कहा-देख रहे हो न। पिछले वर्ष जिस माला को मुझे पहनाए थे, वह आज तक मेरे गले में फांसी के फंदे की तरह लटका हुआ है। वह भी तुम्हारी प्रतीक्षा में पड़ा हुआ है कि कब उसे तुम किसी नदी तालाब में ठंडा करोगे।खैर, वर्ष में एक बार मेरी सफाई करने की याद तो तुम्हें आ ही गई।
हां माई कल बसंत पंचमी है। मैंने तय किया कि कल मैं ‘रेजोल्यूशन’ लूंगा कि हर दिन सुबह तुम्हारी पूजा किया करूंगा। मेरी बात सुनकर माई आंखें फाड़ते हुए बोली- ए ‘रेजोल्यूशन’ क्या होता है बाबू? किसी नए फल या मिठाई का नाम है क्या? ऐसे शब्द तो मैने गढ़े नहीं है।
माई की यह बात सुनकर मुझे बरबस हंसी आ गई। हंसते-हंसते मैंने कहा-माई हिंदी में जिसे ‘संकल्प’ कहते हैं। उसे ही विदेशी अंग्रेजी भाषा में ‘रेजोल्यूशन’ कहते हैं। इतना सुनते ही सरस्वती माई माथा ठोकते हुए बोली- तुम्हारे बढ़ते हुए ज्ञान को देखकर मुझे खुशी तो हो रही है पर मुझे ऐसा आभार हो रहा है कि तुम लोग विदेशी भाषा को बोलते समय गर्व महसूस करते हो और अपनी बोली भाषा से परहेज करते हो।
अपनी बात को आगे बढ़ाने के पहले माई लंबी सांस छोड़ते हुए बोली- बेटा,मेरी बात कान खोल कर सुन लो। तुम्हारे जैसे ना जाने कितने लोग कर्म- धर्म को निभाने की कसम खाते हैं। संकल्प लेते हैं पर वह केवल चार दिन की चांदनी फिर अंधेरी रात की तरह ही होती है। देख लेना दो-चार दिन के बाद तुम भी मेरी पूजा पाठ करना भूल जाओगे और मैं फिर से धूल धूसरित हो जाऊंगी।तुम लोग……।
माई की बात को बीच में ही काटते हुए मैंने बलपूर्वक कहा -नहीं नहीं माई ।अब दुबारा ऐसी गलती नहीं करूंगा। करबद्ध विनती कर रहा हूं। अपनी कृपा दृष्टि मुझ पर बनाए रखना। सावन की झड़ी की तरह आशीर्वाद की वर्षा करना ताकि मेरी कलम की धार अनवरत बनी रहे। कलम से निकली कहानी-कविताओं से मुझे पद्मश्री जैसे पुरस्कार की प्राप्ति हो।अगर आपकी ऐसी महान अनुकंपा हुई तो मैं पाव भर पेड़ा आपके चरणों में अर्पित करूंगा।
वाह बेटा वाह। कहते हुए माई खिल खिलाकर हंस पड़ीं और बोली -यही है आजकल के सपूतों का रंग ढंग। जो मां तुम्हें जन्म देती है। खुद भूखी रहकर अपना खून जलाकर तुम्हें दूध पिलाती है।पालती पोसती है। उसकी कीमत तुम लोग पाव भर पेड़ा के बराबर समझते हो। इतना कहते कहते माई का गला भर आया था। वह रूंधे गले से बोली- बेटा मेरी इस बात को हृदय में आजीवन बसाकर रखना कि मइयां का प्यार उधार में नहीं मिलता और मइयां का दूध भी बाज़ार में खरीदने पर नहीं मिलता।
माई इतना कह कर क्षण भर रूक गई।अपनी आंखों से छलकते हुए आंसुओं को पोंछने के बाद बोलीं-यह बात तो तुम जानते हुई हो कि बसंत पंचमी के दिन ही मेरी वीणा के झंकार से ध्वनि की उत्पत्ति हुई थी। जीव- जंतुओं सहित प्रकृति में सूर- लय- ताल- शब्दों की संरचना हुई थी। ऐसे गुणों से युक्त जो माई तुम्हें जन्म देकर बोलना सिखाती है।बड़े होकर उसी माई को तुम लोग चुप रहना सिखा देते हो।यह बस देखकर तो लगता है कि माई की भलाई तो इसी में है कि वह कपूतों को जन्म देने के बजाय बांझ ही बनी रहे।
सरस्वती माई के एक-एक शब्द मेरे भीतर नोकदार आरी की तरह चल रहे थे। अब रोने सिसकने की बारी मेरी आ गई थी।माई की फोटो को छाती से लिपटाते हुए मैंने कहा- क्षमा करना माई। मेरी आंखों में स्वार्थ का जाला पड़ गया था। आज वह पूरी तरह से धूल गया है।आज के बाद किसी भी माई को मान सम्मान देने में कमी नहीं करूंगा। मेरा दृढ़ संकल्प है।
मेरी बात सुनकर सरस्वती माई के चेहरे पर मुस्कान आ गई। वह मेरे सिर पर हाथ रखते हुए बोली- बेटा जब जागे तभी सबेरा। मेरा आशीर्वाद है तुम्हारी कलम की धार सदा सही दिशा में बहती रहे।