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जिंदगी एक किराए का घर है यह बात सार्वभौमिक सत्य है – पारस जैन

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  • दुर्लभ मानव पर्याय मिली है ये चिंतामणि रत्न से कम नहीं है

हजारों साल की ये कायनात खूबसूरत प्राकृतिक विरासतों के बीच हमें जो ये चौरासी लाख योनियों में घूमने के बाद दुर्लभ मानव पर्याय मिली है ये चिंतामणि रत्न से कम नहीं है मात्र 70 से 80 वर्ष के लिए मिली है। इसका एक एक पल क्षण क्षण कीमती है। दुबारा मिलना बहुत कठिन है। जीवन में जब भी मन में अहंकार आए ये विचार कर लेना चाहिए कि कितने कम समय के लिए जीवन मिला है 500 सालो तक तो रहना नहीं है। हमसे बड़े बड़े महारथी इस धरती पर आए और चले भी गए हमको उनके नाम तक मालूम नहीं है। जीवन पानी की बूंद से ज्यादा नहीं हैं सात कु धातुओं से मिलकर ये शरीर बना है। किसी ने कितना खूबसूरत लिखा है मत कर तू अभिमान रे बंदे मत तू
अभिमान । एक गीत के बोल है “एक दिन बिक जाएगा माटी के मोल जग में रह जायेगे प्यारे तेरे बोल” । एक भजन की खूबसूरत लाइन है ” सज धज कर जिस दिन मौत की शहजादी आयेगी न सोना काम आएगा ना चांदी आयेगी। छोटा सा तू कितने बड़े अरमान है मिट्टी का तू सोने के सब सामान है तेरे मिट्टी की काया मिट्टी में जिस दिन समाएगी न सोना काम आएगा न चांदी आयेगी।”
मेरे पिताजी दिनांक 16 अगस्त 2022 को ब्रेन पेरे लाइसिस बीमारी से ग्रसित हो गए। लगभग ढाई साल वे बीमारी से पीड़ित रहे उस समय ने मुझे संसार की क्षण भंगुरता साक्षात्कार बहुत ही बारीकी से करवाया।
जब मानव इस दुनिया में आता है तो वो 3 से 5 किलो के बीच का वजन लेकर आता है जब इस संसार से बिदा होता है तब भी उसके जो फूल चुनते है गंगा नदी में अस्थियां प्रवाहित करते है तो उसका वजन भी लगभग बराबर होता है । जन्म ओर मृत्यु के बीच जो जीवन मिला होता है उसका हर पल हर दिन उत्सव त्यौहार की तरह निकलना चाहिए । इंसान भरी मुट्ठी लेकर आता है और जब संसार से जाता है तब खाली हाथ जाता है मात्र उसके साथ उसके कर्म ही जाते है एक तिनका भी साथ नहीं जाता । यही प्रकृति का नियम है ।जीवन में गुरु अवश्य बनाना चाहिए जिनके जीवन में गुरु नहीं होता उनका जीवन शुरू नहीं होता।” गु “अर्थात अंधकार “रु “अर्थात प्रकाश जो जीवन को अज्ञान रूपी अंधकार से सत्य के प्रकाश की ओर ले जावे वो ही सच्चे गुरु होते है। संसार में मानव पर्याय सांसारिक बंधनों से छुटकारा पाने के लिए मिलती है लेकिन मानव इस पर्याय में न जाने कैसे कैसे कर्म का बंध बांध लेता है कि कर्मों के बंध युगों युगों तक नहीं छूटते। मानव पर्याय संसार शरीर और भोगों से वैराग्य धारण कर संयम तप त्याग और साधना करके मानव को महामानव, कंकर से शंकर, पाषाण से परमात्मा, नर से नारायण की यात्रा के लिए मिली है। संसार में हर कोई माफ कर सकता है परंतु कर्म कभी माफ नहीं करेगा वो तो मात्र इंसाफ करता है। संसार में किसी डरो मत परंतु अपने कर्मों से अवश्य डरना चाहिए। यदि इस संसार में सुख चैन होता तो तीर्थंकर इतना सांसारिक वैभव होते हुवे संसार शरीर और भोगों को छोड़कर वैराग्य धारण करके राजभवन से वन की ओर गमन क्यों करते। वो समझ गए संसार असार है प्रतिक्रिया मात्र है जो दोगे सो मिलेगा। जैसा बीज वैसा फल वाली कहावत चरितार्थ है। अंत में एक गीत की खूबसूरत लाइन याद आ रही है ।
जो बोएगा वही पाएगा तेरा किया आगे आयेगा जैसी करनी वैसी भरनी जैसी करनी वैसी भरनी।

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