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मौन और त्याग की महासाधना – पूज्य गणिनी आर्यिका 105 पुनीत चैतन्यमति माताजी की आठ दिवसीय तपश्चर्या को नमन

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मधुबन (विश्व परिवार)। यह तिथि केवल एक दिन नहीं, एक अभूतपूर्व आत्मिक यात्रा की पूर्णाहुति का दिन है। परम पूज्या गणिनी आर्यिका 105 पुनीत चैतन्यमति माताजी विगत आठ दिनों से निरंतर मौन, अन्न-त्याग, और घी-त्याग जैसी अत्यंत कठिन तपश्चर्या में लीन हैं। यह कोई साधारण व्रत नहीं — बल्कि आत्मा के गहनतम तल तक उतरने की साधना है, जो केवल मोक्ष की प्यास से प्रेरित आत्मा ही उठा सकती है।
जैन आगम में कहा गया है:
मुणियं च तवस्स सारं, तवो वि मुणिस्स सारओ।
एग्गं दुव्वयं उभयं, मुणि-तवो पव्वयं समं॥
भावार्थ: मौन ही तप का सार है, और तप ही मुनि का सार है। दोनों एक-दूसरे में पूर्ण समाहित हैं — जैसे आत्मा और परमात्मा।
पूज्य माताजी का यह मौन व्रत, केवल वाणी का नियंत्रण नहीं है; यह भीतर की समस्त तरंगों को स्थिर कर, आत्मा को उसके मूल स्वरूप में स्थिर करने का प्रयास है। जब शब्द शांत होते हैं, तब आत्मा अपने से संवाद करती है — और वहीं से प्रारंभ होता है मोक्ष का मौन पथ।
अन्न व घृत का त्याग — सूक्ष्म राग का संपूर्ण विसर्जन: जैन आगमों में अन्न और विशेष कर घृत (घी) को सूक्ष्म स्वादासक्ति का प्रतीक माना गया है। दशवैकालिक सूत्र में स्पष्ट कहा गया है:”जं च खलु घयं… ते चारि असंयमा।”
अर्थात घृत, मांस, मधु और मद्य — ये सभी असंयम के कारण हैं, और इनका त्याग साधु-साध्वियों के लिए अनिवार्य है। परंतु घृत का त्याग, विशेष तप है — क्योंकि यह स्वाद और शक्ति दोनों का सूक्ष्म आकर्षण है। जब एक आत्मा इस सूक्ष्म वासना को भी त्यागती है, वह यह संकेत देती है कि अब उसके लक्ष्य में कोई भ्रम, कोई आकर्षण शेष नहीं।
हमारे लिए प्रेरणा — आत्मा की सीमाओं से परे जाने का संदेश — आज जब संसार भोग की ओर भाग रहा है, ऐसे समय में गणिनी आर्यिका श्री के इस व्रत का आध्यात्मिक प्रकाश हमें अपनी आत्मा की ओर देखने का निमंत्रण देता है। उनका हर क्षण का मौन, हर त्याग का पल हमें सिखाता है — वाणी की सीमा से परे भी संवाद होता है — आत्मा से आत्मा का। भोजन का त्याग केवल भूख नहीं, परिग्रह से मुक्ति की साधना है। घृत का त्याग, स्थूल से सूक्ष्म तक राग को छोड़ने का महान व्रत है। और सबसे बढ़कर — मोक्ष, केवल सिद्धों की गाथा नहीं, साध्वी माताजी जैसी आत्माओं की जीवंत यात्रा है।
19 मई 2025 को यह तपश्चर्या पूर्ण होगी — लेकिन यह एक आत्मा की यात्रा का पड़ाव भर होगा, अंत नहीं। पूज्य माताजी की यह तप आराधना, उनकी आत्मा को मोक्ष की सीढ़ियों पर और ऊपर चढ़ा रही है। और हमें — इस युग की अशांत चित्तवृत्तियों में — यह सच्चा आत्म-प्रकाश दिखा रही है। आइए, हम उनके इस गहन तप को केवल देखकर नहीं, समझकर नमन करें। और उनके मौन से उठती चेतना की गूंज को अपने जीवन में अपनाएँ।

 

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