- वर्धमान धर्म शाला का महावीर काम्प्लेक्स के रूप में होगा भव्य निर्माण- राकेश कासंल
- अशोक नगर पर मुनि पुंगव श्रीसुधासागरजी महाराज की कृपा हमेशा रही है- विजय धुर्रा
सागर(विश्व परिवार)। संबंध जोड़ो या तोड़ो चलेगा लेकिन संबंध बिगाड़ना नहीं है बिगड़े संबंध बहुत ख़तरनाक होते हैं वे किसी भी सीमा तक चले जाते हैं संबंध बिगाड़ते हैं जो आपका बहुत करीबी होता है उसे आपके जीवन की सब तरह की जानकारी होती है संबंधो में गहराई के बाद संबंध बिगड़ जाते हैं तो बह किसी भी हद तक जा सकते हैं मोटीवेशन ले संबंध टूट जाये चलेगा लेकिन संबंध बिगाड़ना नहीं चाहिए नहीं तो ये व्यक्ति की ज़िंदगी बर्बाद करते हुए भी देखें जाते हैं उक्त आश्य केउद्गार मुनि पुंगव श्रीसुधासागरजी महाराज ने सागरोगद तीर्थ सागर में धर्म सभा को सम्बोधित करते हुए व्यक्त किए ।
मुनि श्री को श्री फल भेंट कर पंच कल्याणक महोत्सव का किया निवेदन
सागर से लौटकर जैन समाज के मंत्री विजय धुर्रा ने बताया कि जैन समाज अध्यक्ष राकेश कासंल उपाध्यक्ष राजेंद्र अमन महामंत्री राकेश अमरोद कोषाध्यक्ष सुनील अखाई मंत्री शैलेन्द्र श्रागर मंत्री विजय धुर्रा इंजिनियर राजेश कुमार थूवोनजी कमेटी अध्यक्ष अशोक जैन टींगू मिल महामंत्री मनोज भैसरवास पूर्व महामंत्री विपिन सिंघई मंत्री शैलेन्द्र दददा युवा वर्ग अध्यक्ष सुलभ अखाई सचिन एन एस संयोजक मनीष सिंघ ई विनोद मोदी राजीव चन्देरी टिंकल जैन मंटू छाया सहित अन्य प्रमुख जनो ने मुनिश्री के चरणों में श्री फल भेंट कर आशीर्वाद प्राप्त किया वाद में मुनिश्री के समक्ष श्री वर्धमान जैन धर्मशाला के हेतु मुनिश्री को श्री फल भेंट कर आशीर्वाद प्राप्त किया इस दौरान समाज अध्यक्ष राकेश कासंल ने कहा कि शहर के हृदय स्थल पर स्थित श्री वर्धमान धर्मशाला को श्री वर्धमान महावीर काम्प्लेक्स के भव्य रूप में विकसित करने का निर्णय पंचायत कमेटी ने लिया है परम पूज्य गुरुदेव आपका जो भी मार्ग दर्शन निर्देशन होगा उसके अनुसार सभी कार्यो हम सब मिलकर सम्पन्न करेंगे इस दौरान कमेटी के मंत्री विजय धुर्रा ने कहा कि अशोक नगर जैन समाज के सभी प्रमुख कारण आपके आशीर्वाद और मार्ग दर्शन से हमेशा से पूरे होते रहे जव से आपने अशोक नगर में त्रिकाल चौबीस की स्थापना कराकर है आज हमारे नगर को देशभर के भक्त तीर्थ के रुप देखते है
पूरा अशोक नगर हमेशा से हमारा ही है- मुनि पुंगव
इस दौरान मुनि पुंगव श्रीसुधासागरजी महाराज ने कहा कि अशोक नगर तो हमेशा से ही अपना था और रहेगा कार्य कोई भी करें सभी अपने ही है उसमें क्या हांडी का एक चावल टटोया जाता है पूरी हांडी की जांच की जरूरत ही नहीं है सब कुछ बहुत अच्छा होगा।
उन्होंने कहा कि जो चीज तुम्हें दोबारा चाहिए है बस उसे पर गर्व करना जो आपके लिए बहूमूल्य है दूर्लभ है जैसे मुझे अपनी जिंदगी पर बहुत गर्व है, मुझे अपने मुनि पद पर बहुत खुश हूँ, मुझे मुनिचर्या पालन करने में कितने ही कष्ट हुए लेकिन अपने से बहुत खुश हूँ, भगवान मेरे से खुश है और मैं भगवान से खुश हूँ। या तो संबंध तोड़ो या संबंध जोड़ो, बस सम्बन्ध बिगाड़ना नही। राग करो या वीतराग बस दोनों को बिगाड़ना नही।
जिस चीज में हमारा अहित हो उस पर बड़ो से विमर्श करें
जिस चीज में हमारा अहित हो उसे पर बड़ों से परामर्श करो, उनसे पूछो कि मैं गुटखा खा सकता हूँ क्या, गंदी बातें करने का मन हो तो गुरु से, शास्त्र से पूछो। अच्छी बातें न पूछ पाओ गुरु से कभी तो बुरी बातें क्या है ये पूछने का साहस करना। मुझे धर्म से राग है इसलिए मैं हर परिस्थिति में धर्म को छोड़ने को तैयार नहीं हूँ, उठते, बैठते, खाते, पीते, चलते, फिरते सब में मुझे भगवान से राग है, उसको पाने के लिए मुझे कुछ भी करना पड़े, मुझे कितने भी कष्ट उठाना पड़े मैं तैयार हूँ। मुझे गुरु से राग है, उनको खुश करने के लिए मुझे जो भी आज्ञा मानना पड़े मैं मानूँगा क्योंकि मैं वीतरागी नही, मुझे उनसे राग है। जिनवाणी माँ जो कहती है उसमे बहुत कष्ट होते है लेकिन मैं अपनी माँ से इतना राग करता हूँ कि उसके कहने पर मैं मर सकता हूँ लेकिन उसकी आज्ञा का उल्लंघन कर सकता हूँ।
रागी वनों या वीतरागी वीच में मत रहना
उन्होंने कहा कि आज रागी बनो या फिर वीतरागी बनों, अधर में मत लटके रहों, न इधर के न उधर के। महाराज मैं शरीर को कष्ट नहीं दे सकता, मुझसे शरीर के कष्ट नहीं देखे जाते, अतः यदि तुम्हे शरीर से राग है तो आज एक नियम लेना है जो जो वस्तुये हमारे शरीर के लिए नुकसानदायक है, उनका मैं त्याग करता हूँ। इतना कर लो मैं गारंटी देता हूँ तुम्हारी दुर्गति होने से बचा लूँगा बिना धर्म के। मैं वो नियम नहीं दे रहा हूँ जो तुम्हें धर्मात्मा बनाता है, मैं तुम्हें वो नियम देता हूँ जो तुम्हें अच्छी तरह जिंदगी जीना सिखाता है। तुम्हें गुटखे का, शराब का, बुरी आदतों का त्याग करा दिया, कोई तुम्हें धर्मात्मा नहीं बना दिया, नही, तुम्हारा शरीर सुरक्षित हो गया।