रामगंजमंडी (विश्व परिवार)। प्रतिवर्ष की भांति इस वर्ष भी आचार्य भगवंत श्री विद्यासागर जी की महानतम कृति श्री मूकमाटी महाकाव्य का अर्थज्ञान शिक्षण शिविर एवं श्री सम्यग्ज्ञान शिक्षण शिविर का शुभारंभ हुआ जो कि दिनांक 17 मई से 26 मई तक चलेगा।
शिविर के बारे में शिविर संयोजक श्री आकाश जैन आचार्य ने बताया कि प्रातःकाल 6.45 बजे से श्रीजी का अभिषेक शांतिधारा एवं सामूहिक पूजन की गई। दो पाण्डुक शिला पर भगवान विराजमान किए गए इसमें अभिषेक शांति धारा का सौभाग्य श्रीमान सुरेश सिद्धार्थ जैन बाबरिया. श्री प्रदीप संगीता विनायका, श्रीमती संगीता मयंक जैन बडजात्या परिवार श्रीमती शकुंलता श्री महेंद्र सबद्रा परिवार को प्राप्त हुआ ।
इसी क्रम में आचार्य गुरुवर विद्यासागर महाराज का पूजन भक्ति भाव से किया गया। इसके उपरांत समाज के समस्त पदाधिकारी ने मूल नायक शांतिनाथ भगवान के समक्ष श्रीफल भेंट कर शिविर निर्विघ्न संपन्न होने की कामना की। इसके उपरांत समस्त विद्वानों का स्वागत सम्मान किया इस अवसर पर मंगल कलश ध्वज स्थापना एवं दीप प्रज्वलित किया गया मंगल कलश स्थापना करने का सौभाग्य चैतन्य प्रकाश अनुज मनोज जैन परिवार को ध्वज स्थापना का सौभाग्य सुरेश कुमार सिद्धार्थ कुमार बाबरिया परिवार दीप प्रज्वलित करने का सौभाग्य निर्मल कुमार नीलेश धर्मेश लांबाबास परिवार को प्राप्त हुआ समिति द्वारा इन सभी परिवारों का स्वागत भी किया गया।
इस अवसर पर विद्वत श्री विनोद जैन आचार्य ने शिविर के विषय में प्रकाश डाला एवं शिविर का महत्व बताया उन्होंने कहा कि धर्म की जो बातें जहां से भी मिले ग्रहण करे बिन जांचे बिन चिन्तये धर्मसकल सुख दैन धर्म के रास्ते पर चलने की भावना को भाए ग्रंथों का पठन-पाठन होना चाहिए साधु संतों ने पूरा जीवन धर्म ग्रंथो के लिए लगा दिया यदि हम इन ग्रंथो को नहीं जाने तो धिक्कार है। धर्म के प्रचार में भूमिका निभाएं और जो प्राप्त हो रहा है उसे जन-जन तक पहुंचाएं।
जो दीपक स्थापित किया गया है वह अज्ञान तिमिर का नाश करेगा विच्छेद करेगा। उन्होंने ज्ञान के विषय में कहा कि ज्ञान समान जगत में अन्य सुख का कारण नहीं है।
उन्होंने कहा पूजन विधान पढ़ लेंगे तो लाभ नहीं होगा अंतरंग भावों से कार्य करना चाहिए और विशुद्धि पूर्वक अध्ययन करना चाहिए। शिविरों के द्वारा विशुद्धि बढ़ती है शिविरों में विशेष क्रिया करने से हमारे लिए विशेष लाभ होगा।
उन्होंने कलश स्थापना के लिए कहा कि कलश हमारे मस्तक की शोभा है और इसे ग्रंथों में मंगल द्रव्य बताया गया है। ध्वजा स्थापना के विषय में बताया कि जब तक ध्वजा रहेगी अमंगल नहीं होता और उसकी उन्नति बनी रहेगी। मंगल पूर्वक हो उद्घाटन हो इससे मांगलिकता बढ़ जाती है यह ध्वज संस्कार केवल ज्ञान में कारक बनता है और केवल ज्ञान की ज्योति को प्रज्वलित ज्ञानावरण का क्षयोपशम प्राप्त होता है और जैन धर्म की ध्वजा को हम फहराएंगे घरों में भी ध्वजा रहेगी तो ज्ञान का संचार होता रहेगा और हमें पारमार्थिक ज्ञान प्राप्त होगा।