मनुस्मृति ग्रंथ में कहा गया है कि
यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवताः ।
यत्रैतास्तु न पूज्यन्ते सर्वास्तत्राफलाः क्रियाः ।।
जहाँ स्त्रियों की पूजा होती है वहाँ देवता निवास करते हैं और जहाँ स्त्रियों की पूजा नही होती है, उनका सम्मान नही होता है वहाँ किये गये समस्त अच्छे कर्म निष्फल हो जाते हैं।भारत में जितने भी ऋषि मुनि दिव्य महापुरुष, त्यागी, तपस्वी देश भक्त हुए है उन सब की माताओं के जीवन चरित्र जरूर पड़ना चाहिए। एक मां जो संस्कार बच्चे में डाल सकती है वो संस्कार सौ शिक्षक मिलकर भी नहीं डाल सकते। मां महात्मा ओर परमात्मा तीनो का जीवन में बड़ा महत्वपूर्ण स्थान होता है मां बचपन को सवार देती है महात्मा जवानी को सुधार देता है और परमात्मा बुढ़ापा को सवार देता है ।दुनिया में सबसे बड़ा चलाता फिरता शिक्षालय है तो वो है मां। मां के द्वारा दिए गए सद संस्कार पचपन की दहलीज पार करने के बाद भी ज्यो के त्यों बने रहते है। मां से जीवन है हमारा अस्तित्व है वजूद है मां नही तो कुछ नहीं । किसी ने कितना खूबसूरत लिखा है “मेरी जिंदगी में गर खुशियों का बसर है” “इसमें जरूर मेरी मां की दुवाओ का असर है”।मां को धरती की उपमा दी जाती है। विपरीत परिस्थितियों में मां धैर्य को धारण करती है।भारतीय संस्कृति में मां का स्थान परम पूजनीय, वंदनीय, अभिंदनीय रहा है। यदि धरती पर जितने समुद्र नदिया जलाशय है उनकी स्याही बना ली जाए और जितने वन उपवन है उनकी कलम बना ली जाए तब भी मां की मां की महिमा गरिमा को नही लिखा जा सकता।एक uमाँ का अपने बच्चों के ऊपर इतने परोपकार होते है, अगर बच्चा दस जन्म भी लेगा तो अपनी माँ का कर्ज नहीं उतार पायेगा। जिनके जीवन में मां बाप का प्यार है वो बड़े भाग्य शाली है।