कोल्हापूर(विश्व परिवार)। चर्या शिरोमणी आचार्य विशुद्ध सागर जी महाराज के शिष्य श्रमण मुनी श्री अनुत्तर सागर जी महाराज, श्रमण मुनी श्री प्रणेय सागर जी, श्रमण मुनी श्री प्रणव सागर जी, श्रमण मुनी श्री सर्वार्थ सागर जी, श्रमण मुनी श्री संकल्प सागर जी और श्रमण मुनी श्री सदभाव सागर जी महाराज जी का उपसंघ मालगाव (महाराष्ट्र) में विराजमान हैं | मालगाव (महाराष्ट्र ) में 21 नवम्बर को चर्या शिरोमणी दिगंबराचार्य श्री विशुद्धसागर महाराज जी का मुनी दिक्षा दिवस मनाया जायेगा।
नमोस्तु शासन को निरंतर जयवंत करने वाले दिगंबर जैनाचार्य विशुद्धसागरजी महाराज अत्यंत प्रेरणास्पद हैं | आप निरंतर ज्ञान – ध्यान – तप एवं शास्त्र स्वाध्याय में लीन रहते है।
आपने अपनी आगमानुसार चर्या से , आचरण साधना से, अपनी आध्यत्म – पियुष देशाना से जैन समाज और समग्र श्रमणसंस्कृती को आकर्षित किया है।
आपके वाणी में समयसार झलकता है।
आपकी मुद्रा में जिन मुद्रा का दर्शन मिलता है | धरती पर चलते – फिरते ‘ धरती के देवता ‘ हैं आप। आचार्य श्री जिनसेन स्वामी जी ने लिखा है कि पंचमकाल में दिगंबर मुनि ही अरिहंत हैं। वर्तमान में पूज्य आचार्य श्री विशुद्धसागरजी महाराज हमारे महावीर ही हैं ।
चर्या शिरोमणी आचार्य श्री विशुद्धसागर महाराज जी के चरण जहाँ पड जाते हैं, उस भूमी का कण -कण पवित्र हो जाता है। आप जैनदर्शन के एवं ‘ नमोस्तु शासन ‘ के उगते दिवाकर हैं। आचार्य श्री विशुद्धसागर महाराज जी जैनजगत को साहित्य का अनुपम उपहार दे रहे हैं।
आचार्य श्री विशुद्धसागरजी आध्यात्म सरोवर के राजहंस हैं। आपके चारित्र में संयम का नीर भरा है, जहाँ से अध्यात्म का अमृत बरसता है।
समाधिस्थ गणाचार्य 108 श्री विरागसागर जी गुरुदेव के अंतिम उपदेशानुसार, आध्यात्म सरोवर के राजहंस आचार्य श्री विशुद्धसागर महाराज जी को ‘पट्टाचार्य पद’ सुमतिधाम,इंदौर में प्रदान किया जायेगा।
27 अप्रैल 2025 से 2 मई 2025 तक सुमतिधाम इंदौर (म. प्र ) में ” पट्टाचार्य महामहोत्सव ” का आयोजन किया है | 30 अप्रैल , अक्षय तृतीया के दिन पट्टाचार्य-पदारोहण के संस्कार होंगे।
श्रमण संस्कृति के समाधिस्त गणाचार्य श्री विरागसागर महाराज जी की जन्म जयंती 2 मई 2025 को बड़ी धूमधाम से मनाई जाएगी।
यह भारत का सौभाग्य रहा कि, नमोस्तु शासन को जयवंत करने वाले तीर्थंकर आदि महापुरुषों ने जन्म लिया, उसी परंपरा में वर्तमान के परिवेश में आचार्यदेव श्री विशुद्धसागरजी महाराज ऐसे सूर्य हैं, जो बुंदेलखंड कि भूमी पर साधनारत रहते हुए भव्य जीवों को दैदीप्यमान कर रहे हैं।
परमपूज्य 108 श्री विशुद्धसागरजी महाराज के आशीर्वाद एवं छत्रछाया में अपने को पाकर यहाँ मुनिराज अपनी मोक्षमार्ग कि यात्रा पर निरंतर चल रहे हैं, वहीं संघ में रहकर निरंतर उस रत्नत्रय रुप को प्राप्त करने के लिए ब्रम्हचारीगण भी प्रयासरत हैं।
आचार्य श्री विशुद्धसागरजी महाराज जो वर्तमान में हमारे लिए वर्धमान हैं ।
पंचमकाल में भी ऐसे दिगंबर साधु इस धरती पर विचरण कर रहें हैं, यह हमारा सौभाग्य ही है।
आध्यात्मयोगी जैनाचार्य श्री विशुद्धसागरजी महाराज जैन श्रुत – साहित्य को अपने श्रीमुख से निर्झरित कर जन – जन का अज्ञान – मिथ्यात्व का शमन कर श्रेष्ठ अहिंसा, ब्रम्हचर्य, सत्य, अपरिग्रहादि कि समाराधना में प्राणियों को संलग्न कर रहे है। उनके श्रीमुख से निकलनेवाला प्रत्येक शब्द संकलित होकर शास्त्र के रुप में जन – जन तक पहुँच रहा है | ऐसे श्रुत के देवता, दिगंबर महर्षी के रुप में पूज्य आचार्यदेव आध्यात्मिक ज्योति प्राप्त कर रहे हैं।
आचार्य श्री विशुद्धसागरजी महाराज इसी प्रकार रत्नत्रय के तेज से जिनधर्म कि प्रभावना करते रहें, ऐसी कामना करता हुं।
मेरा सौभाग्य है कि ऐसे महानतम श्रेष्ठ आचार्यभगवन के गुणों का गुणानुवाद करने का मूझे अवसर प्राप्त हुआ है।
आपकी प्रभावना पुरे विश्व में जयवंत हो। नमोस्तु शासन का ध्वज लहरानेवाले पूज्य आचार्यदेव जयवंत हो।