- परम पूज्य आचार्य गुरुवर विद्यासागर महाराज से दीक्षित पूज्य मुनि श्री 108 क्षमा सागर जी महाराज सचमुच साधना के सुमेर के साथ-साथ क्षमा की मूर्ति थे।
रामगंजमंडी (विश्व परिवार)। आज हम उनका दसवां समाधि दिवस मना रहे हैं। पूज्य महाराज श्री ने अपने प्रवचनों के द्वारा कर्म सिद्धांत एवं जीवन को अच्छा बनाने के उद्बोधन के द्वारा अनेकों का जीवन उन्नत किया। यह रामगंजमंडी नगर का परम सौभाग्य था एवं हमारा भी सौभाग्य था कि पूज्य महाराज श्री का वर्षायोग हम रामगंज मंडी नगर वासियों को वर्ष 2003 में मिला था जिसकी स्मृति आज भी नगर वासियों के अंतः स्थल में अंकितहै।
आचार्य गुरुवर विद्यासागर महाराज की मंगल आशीष रामगंज मंडी नगर पर वर्ष 2000 में बरसी जब आर्यिका का 105 आदर्श मति माताजी का वर्षा योग रामगंज मंडी नगर को मिला आचार्य श्री की कृपा पुनः वर्ष 2003 में बरसी वर्ष 2003 में पूज्य मुनि श्री 108 क्षमा सागर महाराज का वर्षा योग रामगंज मंडी नगर को मिला। पूज्य महाराज श्री का एक सपना और था कि समाज में पढ़ने वाले उच्च शिक्षित छात्र-छात्राएं धर्म से जुड़े जिसके लिए उन्होंने मैत्री समूह के सहयोग से यंग जैना अवार्ड का प्रारंभ किया था और रामगंज मंडी नगर के गौरव का विषय था कि वर्ष 2003 का यह कार्यक्रम करने का सौभाग्य भी नगर को मिला था। यह कार्यक्रम अपने आप में एक संस्कारों का जीवंत प्रमाण दे रहा था।
वर्षायोग मंगल प्रवेश उद्बोधन में महाराज श्री भावुक हो उठे
रामगंजमंडी के वर्षा योग को लगभग 22 वर्ष बीत चुके हैं और उनका मंगल प्रवेश 10 जुलाई 2003 को रामगंज मंडी नगर में हुआ था रामगंजमंडी नगर में उनकी एक अनोखी अगवानी देखने को मिली थी। पूज्य गुरुदेव का नगर के प्रमुख मार्गो से होते हुए श्री शांतिनाथ दिगंबर जैन मंदिर में मंगल आगमन हुआ महाराज श्री ने शांतिनाथ भगवान के दर्शन किए और दर्शन उपरांत जो आशीर्वचन महाराज श्री ने दिए थे उस को सुन मौजूद भक्त भावुक हो उठे थे और सभी की आंखें नम थी।
प्रथम आशीर्वचन में महाराज श्री बहुत भावुक मन से बोले मुझे लगा यहा की समाज यहा भक्ति कैसी होगी यह सोचकर मे चकित था जैसे ही नगर मे आगवानी हुयी मैने देखा आचार्य गुरुवर की जय जयकार गूंज रही है मुनि श्री भावुक हो उठे ऐसा उद्बोधन वहा मोजूद समुदाय को भावुक कर गया आज भी वह उद्गार मेरे ह्रदय को छु जाते है।
अनुशासन प्रिय थे मुनि श्री
पूज्य मुनिश्री अनुशासन प्रिय साधक थे उन्होंने धर्म के साथ-साथ युवाओं को जागृत किया एवं अनुशासन को बताया निश्चित रूप से कहा जा सकता है कि अनुशासन क्या होता है यह रामगंज मंडी नगर के युवाओं ने पूज्य महाराज श्री से ही जाना।
गुरु के प्रति उनका अनुराग उनका समर्पण सचमुच अपने आप में देखते हुए बनता था जब भी वह अपना प्रवचन देते थे तो वह आचार्य श्री के प्रति कृतज्ञता भाव प्रकट करते थे एवं गुरुवर को याद कर भावुक होते थे। उनकी श्रद्धा एवं समर्पण भक्ति एवं शिष्य का गुरु के प्रति समर्पण आदर भाव कैसा था यह उनके द्वारा लिखी गई काव्य रचनाएं जिसमें दीप उनका गीत उनका सहारा भी उनका में चल रहा हूं मैं चल रहा हूं ऐसी काव्य रचना उन्होंने रचित की थी जिसमें उन्होंने जो ज्योति था मेरे हृदय में रोशनी देता गया जो सांस बनकर मेरे हृदय में आता रहा जाता रहा के साथ-साथ आचार्य श्री से जुड़े संस्मरण को उन्होंने आत्मान्वेषी पुस्तक में संकलित किया।
उनकी एक कविता जो जीवन का जीवंत चित्रण प्रस्तुत करती है जो आज भी सभी गुनगुनाते हैं।
वे काव्य रचना को मधुर कंठ से सुनाते थे जिसे सुन हर कोई जीवन का यथार्थ स्वरूप समझ पाता था वह काव्य रचना थी
आगे-आगे अपनी अर्थी के मैं गाता चलूँ,
सिद्ध नाम सत्य है अरिहंत नाम सत्य है।
सिद्ध नाम सत्य है अरिहंत नाम सत्य है।।
पीछे पीछे दूर तक दिख रही जो भीड़ है
पंछी शाख से उड़ा खाली पड़ा नीड़ है।
सृष्टि सारी देख ले पर्याय ही अनित्य है
सिद्ध नाम सत्य है अरिहंत नाम सत्य है।।
जिनको मेरे सुख दुखों से कुछ नहीं था वास्ता।
उनके ही कांधों पे मेरा कट रहा है रास्ता।।
आंख जब मुंदी तो बोली न शत्रु है न मित्र है।
सिद्ध नाम सत्य है अरिहंत नाम सत्य है।।
डोरियों से मैं बंधा, नहीं ये मेरा संस्कार था।
एक कफन पर मेरा रह गया अधिकार था।।
तुम उसे उतारने जा रहे ये सत्य है।
सिद्ध नाम सत्य है अरिहंत नाम सत्य है।।
आपके अनुराग को आज ये क्या हो गया।
मैं चिता पर चढ़ा महान कैसे हो गया।।
सत्य देख हंस रहा कि जल रहा असत्य है।
सिद्ध नाम सत्य है अरिहंत नाम सत्य है।।
आपके ही वंश से भटका हुआ हूँ देवता।
आत्म तत्व छोड़ कर मैं जगत को देखता।।
ये अनादि काल की भूल का ही कृत्य है।
सिद्ध नाम सत्य है अरिहंत नाम सत्य है।।