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जीवन में संयम और अनुशासन की आवश्यकता अंतर्मना आचार्य श्री 108 प्रसन्नसागरजी महाराज

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औरंगाबाद(विश्व परिवार)। महापर्व के सातवें दिन को उत्तम तप धर्म के रूप में हर्षोल्लास से मनाया गया
तेलंगाना के मेदक स्थित श्री 1008 विघ्नहर पार्श्वनाथ दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र कुलचारम में चल रहे चातुर्मास के अंतर्गत इस विशेष दिन का आयोजन साधना शिरोमणि अंतर्मना आचार्य श्री 108 प्रसन्नसागरजी महाराज के पावन आशीर्वाद और उपाध्याय श्री पियूष सागरजी महाराज के निर्देशन में संपन्न हुआ। तप की महत्ता को समझाने और जीवन में उसे आत्मसात करने की प्रेरणा देने के लिए इस आयोजन में भक्तों ने विशेष उत्साह के साथ भाग लिया।
दिन की शुरुआत प्रातःकालीन पूजा और भगवान पार्श्वनाथ के मंगल अभिषेक से हुई। 24 तीर्थंकरों की जिनआराधना के गुरुदेव ने तप को आत्मशुद्धि और मोक्ष प्राप्ति का सर्वोत्तम मार्ग बताया। उनके प्रवचनों ने भक्तों को तप के प्रति प्रेरित किया और जीवन में संयम और अनुशासन की आवश्यकता को रेखांकित किया।
मध्यान्ह में प्रवर्तक मुनि श्री सहज सागरजी महाराज के द्वारा तत्त्वार्थ सूत्र का वाचन और गुरुपूजन संपन्न हुआ। इस अवसर पर भक्तों ने गुरुओं के प्रति अपनी श्रद्धा प्रकट की और धर्म के गहरे अर्थों को समझने का प्रयास किया।
संध्याकाल में श्रावक प्रतिक्रमण का आयोजन हुआ, जिसमें भक्तों ने अपने दिन भर के कार्यों और विचारों की समीक्षा की। इसके बाद गुरुभक्ति और 24 तीर्थंकरों के नाम और चिन्हों पर आधारित प्रवचन हुए। प्रवचनों के माध्यम से तप धर्म की महत्ता को समझाया गया और इसे जीवन में अपनाने के लिए प्रेरित किया गया। अंत में, मंगल आरती के साथ इस पावन दिवस का समापन हुआ। आरती में सभी भक्तों ने भाग लिया और उत्तम तप धर्म को अपने जीवन का हिस्सा बनाने का संकल्प लिया।
इस प्रकार, उत्तम तप धर्म का यह पावन
दिन भक्तों के लिए आत्मशद्धि और समापन हुआ। आरती में सभी भक्तों ने भाग लिया और उत्तम तप धर्म को अपने जीवन का हिस्सा बनाने का संकल्प लिया।
इस प्रकार, उत्तम तप धर्म का यह पावन दिन भक्तों के लिए आत्मशुद्धि और आध्यात्मिक उन्नति का सन्देश लेकर आया। तप और संयम के महत्व को समझाते हुए यह आयोजन धार्मिक अनुशासन की ओर एक महत्वपूर्ण कदम साबित हुआ।

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