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नववर्ष का दीपक – विजय मिश्रा

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(विश्व परिवार)। महानगर में निवासरत अपने एक धनाढ्य मित्र प्रदीप भोले जी के निवास पर मैं नव वर्ष के प्रथम दिवस पर बधाई शुभकामनाएं देने पहुंचा था। दरअसल उनका नया बंगला बना था और मैं गृह प्रवेश समारोह में नहीं पहुंच पाया था। अपरिहार्य कारणवश मैं अनेक वर्षों से उनसे मिल भी नहीं पाया था।इसलिए एक पंथ दो काज का भाव लिए मैंने नववर्ष के प्रथम दिवस को चुना था।
वहां मैंने देखा उनके शानदार बंगले के भीतर बड़े-बड़े एक्वेरियम में महंगी- महंगी मछलियां तैर रही थीं। पिंजड़े में कैद विविध किस्म के खुबसूरत पक्षी चीं चीं कर रहे थे।अनेक नस्ल के कुत्ते-बिल्ली भी दिखे। कोई कुत्ता गद्देदार सोफा पर बैठा हुआ था तो कोई बॉल खेलने में मग्न था।
मेरा धनाढ्य मित्र और उनकी धर्मपत्नी बड़े प्यार से मछली ,पशु- पक्षियों को दाना पानी दे रहे थे। यह सब देखकर मैंने कहा- आप लोगों की दयालुता और जीव जंतुओं के प्रति प्रेम देखकर मेरा मन गदगद हो गया है।आपके बच्चे कितने है? कहां हैं? वे दिखाई नहीं दे रहे हैं।
मेरे इस सवाल का जवाब भोले जी की धर्मपत्नी हंसते हुए दीं – अरे !क्या बताएं मिश्रा जी,बच्चों के लिए तो हम समय ही नहीं निकाल पाते।दो छोटे -छोटे बच्चे हैं। दोनों की देखभाल के लिए अलग-अलग दो आयाबाई रख लिए हैं। उन्हीं लोग कहीं बगीचे में बच्चों को खिला पिला रही होंगी।
ऐसे उत्तर की अपेक्षा मुझे नहीं थी। मैं थोड़ा असहज सा हो गया था। मैने देखा भोले जी अपनी गोद में बैठे कुत्ते को पप्पी देने में लगे थे। मैंने साहस करके कहा -अच्छा.. अच्छा..और बाबूजी कहां हैं?वे भी दिख नहीं रहे हैं?
इस बार उत्तर भोले जी ने दिया -अरे यार, मां के निधनोपरांत पिताजी को अकेलापन काटने दौड़ता था। घर पर उनका समय नहीं कटता था।इसीलिए हमनें उन्हें वृद्धाश्रम भेज दिया। वहां उनको बढ़िया माहौल मिल गया है।
बच्चों सहित बाबूजी के प्रति उनका रवैया मुझे फांस की तरह चुभ रहा था। तभी भोले जी का नौकर पानी लेकर आ गया। मैंने अनमने मन से कहा- मेरा निर्जला व्रत है भोले भाई। मैं कुछ खाऊंगा पिऊंगा नहीं।आज्ञा दीजिए। मैं वापस जाने लगा तो भोले जी ने कहा- ठीक है यार।अपना घर समझकर कभी भी आ जाना।
भोले की बात मुझे आग में घी की तरह लगी। मैंने तल्ख लहजे में कहा- माफ़ करना भोले जी,अब आपका घर तो घर रहा ही नहीं।घर और चिड़ियाघर में फर्क होता है। चिड़ियाघर में भी देखना जीव-जंतु अपने मां बाप बच्चों सहित रहते हुए दिखते हैं।तुमने तो अपने घर को चिड़ियाघर से भी बद्तर बना डाला है।
मेरी बातें भोले के दिल को छू गईं।वह मुझसे लिपट पड़ा और रूंधे गले से बोला – यार,मेरी आंखे खोल दी तुमने।चलो अभी ही वृद्धाश्रम से बाबूजी को लाते हैं।भोले की बात पर त्वरित सहमति देते हुए उनकी धर्मपत्नी बोली -हां जी,आप लोग बाबूजी को लेकर आइए। नये वर्ष में बाबूजी के पैर नये घर पर पड़ जाएं।इससे अच्छी बात और क्या होगी।मैं द्वार पर रंगोली सजाकर दीपक जलाकर रखती हूं। भोले और मैं वृद्धाश्रम से जब बाबूजी को लेकर घर लौटे तो नववर्ष का दीपक झिलमिलाते हुए सबका स्वागत कर रहा था। तमसो मा ज्योतिर्गमय का आशीष दे रहा था।

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