सागर (विश्व परिवार)। चित्रो का अनावरण उनका किया जाता है जिनकी समाधि हो गई है जो महापुरुष हैं लेकिन जीवित साधू या महापुरुषों के चित्रों का अनावरण नहीं करना चाहिए। इसमें भी सुधार आवश्यक है। यह बात बाहुबली कालोनी में विराजमान निर्यापक मुनिश्री योग सागर महाराज ने प्रवचनो में कहीं।
उन्होंने कहा कि शांतिधारा के समय व्यक्तियों के नामों का उच्चारण नहीं करना चाहिए हम श्रीजी की प्रतिमा का अभिषेक शांति धारा करते हैं। नामों का उच्चारण शांति धारा के बाद में करें तो अच्छा है। शांति धारा का मतलब सबके लिए मंगल हो। सबके लिए शांति हो किसी एक दो का नाम लेकर के शांति धारा नहीं करना चाहिए यह परंपरा बन गई है। यह ठीक नहीं है और इसमें सुधार जरूरी है। तभी आपको पुण्य मिलेगा
उन्होंने कहा कि जो आचरण के विपरीत कार्य करता है वही मूर्ख होता है पढ़ा लिखा मूर्ख नहीं होता है। प्रवचन में जितने शांत बैठोगे उतनी पापों की निर्जरा होगी और पुण्यार्जन होगा। सभा में सभ्य लोग ही बैठते हैं अन्य लोग नहीं।
जब तक इस शरीर में प्राण हैं तब तक भोजन आत्मा करेगी आत्मा खायेगी पीएगी प्राण निकलेंगे तो वह न कुछ खाएगी न पीएगी। यह शरीर अन्न का कीड़ा है।
मुनिश्री ने कहा कि धर्म अनादिकाल से चला आ रहा है। इसमें अनन्त आत्माओं ने पवित्र होकर के पूर्णता को प्राप्त किया है।
पूज्य निरोग सागर महाराज ने कहा कि जो दीनहीन साधर्मी है उनकी हर संभव मदद होना चाहिए उन्होंने महाकवि निराला जी का उदाहरण देते हुए बताया कि जब उन्हें उनकी किताब लिखने पर रायल्टी के रूप में ₹900 प्राप्त हुए थे और वापसी में एक मां ने उनका रिक्शा रोक कर उनसे भिक्षा मांगी और कहा बेटा 3 दिन से कुछ नहीं खाया अतः कुछ भीख दे दो तो उन्होंने उससे क्रम क्रम से पूछते हुए कि इतने पैसों में कितने दिन का खर्चा चल जाएगा अंत में पूरे ₹900 उसको दे दिए और कहा कि जिसे आपने बेटा कहा वह अपनी मां को भीख मांगते हुए नहीं देख सकता
मुकेश जैन ढाना ने बताया कि मुनि संघ का कुछ दिनों का प्रवास अब बाहुबली कालोनी में ही होगा प्रतिदिन सुबह 8:30 बजे से प्रवचन और 10 बजे से आहारचर्या संपन्न होगी।