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धर्म से जीवन श्रेष्ठ बनता है इसलिए धर्म को सुनकर ,ग्रहण कर,चिंतन कर जीवन में उपयोग कर मनुष्य जीवन को सार्थक करें- आचार्य श्री वर्धमान सागर जी

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पारसोला(विश्व परिवार)। पंचम पट्टाघीश आचार्य श्री वर्धमान सागर जी महाराज पारसोला सन्मति भवन में संघ सहित विराजित है। प्रतिदिन धार्मिक अनुष्ठान के अंतर्गत प्रातकाल पंचामृत अभिषेक के पश्चात धर्म सभा आयोजित हुई।
आचार्य श्री ने प्रवचन में बताया कि सबका पुण्य है कि 84 लाख योनियों में भ्रमण करते हुए चार गति में मुख्य मनुष्य गति है क्योंकि मनुष्य ही नरक गति तिर्यचगति ,स्वर्ग के सुख दुख देख सकता है। स्वर्ग में केवल सुख मिलता है, नरक में दुख मिलता है मनुष्य और तिर्यच गति में सुख और दुख दोनों मिलता है मनुष्य जीवन में ज्ञान की महिमा बहुत है ज्ञान से आशय लौकिक ज्ञान के साथ-साथ धार्मिक ज्ञान से भी है यह मंगल देशनाआचार्य श्री वर्धमान सागर जी महाराज ने धर्म सभा में प्रकट की। राजेश पंचोलिया अनुसार आचार्य श्री ने प्रवचन में आगे बताया कि आज का मानव उच्च जॉब के लिए उच्च लौकिक शिक्षा प्राप्त करना चाहता है, शिक्षा पुण्य के प्रभाव से मिलती है पुण्य से ज्ञान मिलता है और धर्म से पुण्य की प्राप्ति होती है। चार प्रकार के मंगल बताए गए हैं अरिहंत मंगल ,सिद्ध मंगल ,साहू मंगल और केवली पढित धर्म मंगल। इसलिए धर्म की शरण से उत्तम की शरण प्राप्त होती है और यही चारों लोक में उत्तम मंगल बताए गए हैं उनकी संगति के लिए भगवान मंगल की शरण में जाना होगा जिनालय में विराजित भगवान के प्रति श्रद्धा बनाना होगा श्रद्धा से भगवान की महिमा को समझना जरूरी है।
भगवान के प्रतिदिन दर्शन करें तब कहिए कि आज मेरा जन्म सफल हो गया यही रोज कहना चाहिए धर्म को हृदय में उतरना होगा देव शास्त्र गुरु के दर्शन से कर्मों का छय होता है उसके लिए भाव और परिणाम अच्छे होना जरूरी है। आचार्य श्री ने श्रोता के गुण बताएं कि देव शास्त्र गुरु के समक्ष आप में धर्म की बात सुनने की इच्छा होनी चाहिए धर्म की बात सुनकर ग्रहण करें चिंतन करें और धर्म की बात को जीवन में अपनाने का प्रयास करें। आचार्य श्री ने बताया कि इंद्रभूति गौतम मिथ्या दृष्टि थे किंतु जिनेंद्र भगवान के मान स्तंभ को देखकर उनका मिथ्यात्व नष्ट हो गया। जिस प्रकार आप धन का संग्रह करते हैं उसी प्रकार आपको धर्म का भी संग्रह करना चाहिए संग्रहित धर्म से बच्चों को भी संस्कारित करें ।वर्तमान फैशन पर चिंता व्यक्त करते हुए आचार्य श्री ने बताया कि फटे कपड़े पहनने से अगले भव जन्म में दरिद्र कुल में जन्म होता है इसलिए देव शास्त्र गुरु के समक्ष पहनावा मर्यादित होना चाहिए विनय पूर्ण होना चाहिए। धर्म से जीवन श्रेष्ठ बनता है इसलिए धर्म का संग्रह कर भावी पीढ़ी को संस्कार दे सकते हैं धर्म की बात सुनकर ग्रहण कर चिंतन कर जीवन में अपनाने का पुरुषार्थ कर मनुष्य जीवन को सफल बनाने का प्रयास करें। जयंतीलाल कोठारी ऋषभ पचोरी अनुसार पुण्यशाली परिवारों द्वारा आचार्य श्री के चरण प्रक्षालन कर जिनवाणी भेंट की। शाम को श्री जी के पश्चात शाम को श्री जी की आरती पश्चात आचार्य श्री की आरती का कार्यक्रम हुआ ‌।

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