Home पेंड्रा श्रमण परम्परा के साधना सूर्य — गणधराचार्य श्री विराग सागर महाराज

श्रमण परम्परा के साधना सूर्य — गणधराचार्य श्री विराग सागर महाराज

82
0

गौरेला(विश्व परिवार) | अभी जगत आचार्य श्री विद्यासागर महाराज की समाधि से आई शून्यता से उबर भी न पाया था कि पांच माह के अंतराल में गणधराचार्य श्री विराग सागर महाराज की समाधि से व्याप्त शून्यता में समा गया। श्रमण संस्कृति में इन दोनों आचार्यों का योगदान अतुलनीय अविस्मरणीय है। दोनों आचार्यों ने विशाल मुनि संघ की संरचना कर मोक्ष मार्ग प्रशस्त किया।

सरल सहज करुणा की मूर्ति थे आचार्य श्री विराग सागर महाराज

आगम के पालन में कठोर और वाणी में माधुर्य के अनुपम गुणों का समागम आचार्य श्री विराग सागर महाराज के व्यक्तित्व की विशेषता थी।सहज सरल रूप की मूर्ति, कोई भी दर्शनार्थी निःसंकोच आप तक जा सकता था, कोई भी जिज्ञासु समाधान पा सकता था। प्रत्येक प्राणी के प्रति दया की भावना समस्त जगत के कल्याण की भावना निरंतर निर्झरित होती रहती थी।

आत्मा के मोही, काया के निर्मोही

परम् वीतरागी संत आचार्य श्री विराग सागर महाराज की समाधि ने जगत को दिखाया कि वीतरागी संत काया से कितना मोहरहित निष्ठुर होता है। आचार्य श्री विराग सागर महाराज ने पूर्ण पारदर्शी समाधि लेकर संसार की नश्वरता को प्रमाणित किया। समाधि के पूर्व आचार्य श्री को दो हृदयाघात हो चुके थे, समीप ही चिकित्सालय था और चिकित्सकों का आग्रह था कि उपचार से पूर्ण स्वस्थ हो जायेगें।मगर अपनी आगमानुसार चर्या के दृढ़ अनुगामी ने विनम्रतापूर्वक पूर्वक आग्रह को अस्वीकार कर आत्मकल्याण के मार्ग का चयन किया।दो दिन उन्होंने विशाल मुनि संघ का मार्ग प्रशस्त करते हुवे संघ के सभी दायित्वों से स्वयं को मुक्त किया। पूरी सजगता के साथ मुनि संघ और चराचर जगत के समस्त प्राणियों से क्षमायाचना की और सबको क्षमा कर निराकुलता से शांति धारण कर समाधिपूर्वक चतुर्दशी की प्रातः काल में नश्वर देह त्याग दी।

काल को परास्त कर आचार्य महाराज कालजयी हो गये।

परम् वीतरागी संत आचार्य श्री विराग सागर महाराज की समाधि ने जगत को दिखाया कि वीतरागी संत काया से कितना मोहरहित निष्ठुर होता है। आचार्य श्री विराग सागर महाराज ने पूर्ण पारदर्शी समाधि लेकर संसार की नश्वरता को प्रमाणित किया। समाधि के पूर्व आचार्य श्री को दो हृदयाघात हो चुके थे, समीप ही चिकित्सालय था और चिकित्सकों का आग्रह था कि उपचार से पूर्ण स्वस्थ हो जायेगें।मगर अपनी आगमानुसार चर्या के दृढ़ अनुगामी ने विनम्रतापूर्वक पूर्वक आग्रह को अस्वीकार कर आत्मकल्याण के मार्ग का चयन किया।दो दिन उन्होंने विशाल मुनि संघ का मार्ग प्रशस्त करते हुवे संघ के सभी दायित्वों से स्वयं को मुक्त किया। पूरी सजगता के साथ मुनि संघ और चराचर जगत के समस्त प्राणियों से क्षमायाचना की और सबको क्षमा कर निराकुलता से शांति धारण कर समाधिपूर्वक चतुर्दशी की प्रातः काल में नश्वर देह त्याग दी। काल को परास्त कर आचार्य महाराज कालजयी हो गये।

संस्मरण……

अगस्त 2023, आचार्य श्री विराग सागर महाराज संघ सहित श्रेयांस तीर्थ पन्ना मध्यप्रदेश में पावस योग चातुर्मास कर रहे थे।मैं भी परिवार सहित तीर्थाटन पर था। कटनी में विराजमान निर्यापक श्रमण मुनिश्री समता सागर महाराज के दर्शन कर खजुराहो जा रहा था कि बहुत दिनों से श्रेयांस तीर्थ के दर्शनों की अभिलाषा थी वो मार्ग होने से दर्शन करने का बहुत उत्साह था। यहां पहुंचने पर ज्ञात हुआ कि आचार्य श्री विराग सागर महाराज विराजमान हैं। आचार्य श्री के प्रथम दर्शन थे। गिरि के बीच में ही आचार्य श्री अपने संघ सहित विराजमान थे। दृष्टि मिलते ही आचार्य श्री की आंखों में वात्सल्य देख आनंद आ गया। कोई रोक-टोक नहीं देख किंचित आश्चर्य मगर सुखानुभूति हुई। समीप पहुंच नमोस्तु किया और परिचय दिया। नाम सुनते आचार्य श्री ने आशीर्वाद देते हुवे अपरिचित होने अनुभूति पर विराम लग गया, आचार्य महाराज ने कहा आपका नाम सुना है। इतनी सरलता और सहजता देख मन बल्लियों उछल रहा था। पत्रकार जी आप बैठिए आपसे बात करना है,कहते हुवे आचार्य श्री लघुशंका को चले गये। अन्य मुनि महाराजों ने अपना वात्सल्य प्रदान किया।

बातचीत से ज्ञात हुआ कि आचार्य श्री दिगम्बर मुनियों के विहार की सुरक्षा के प्रति चिंतित थे। वर्तमान काल में व्याप्त कटुता और आक्रामकता भी उनकी चिंता का एक कारण था। आचार्य श्री ने बताया कि जैन आयतनों पर जैसा संकट अभी है ऐसा विगत दो तीन सौ वर्षों में नहीं था।

जैन दर्शन जगत कल्याण की भावना प्रधान,सभी प्राणियों के प्रति करुणा और दया का धर्म है। भगवान महावीर के जियो और जीने दो के सूत्र में संसार की सभी समस्याओं का समाधान है। हमारी जीवन शैली अहिंसा और शांति की है। तब क्यों हमारे ही देश में अहिंसा के आयतनों पर संकट है। आचार्य श्री विराग सागर महाराज दिगम्बर साधुओं में व्याप्त अनशन से भी व्यथित थे। मतांतर होना ठीक है पर समन्वय और सहिष्णुता अन्य मुनियों और मुनि संघों के लिये रखने के प्रबल पक्षधर थे। अन्य संघों के मुनियों में परस्पर वात्सल्य और आचार्यों के लिये यथोचित सम्मान के भाव होना चाहिए।

उनकी इच्छा थी कि आचार्य श्री विद्यासागर के सानिध्य में भारत के सभी दिगम्बर जैन आचार्यों का समागम हो और हम सब जिनवचनों के ध्वज को ऊपर उठाने में सहभागी बने।

पन्ना जिला के श्रेयांस गिरि तीर्थ का विकास भी उनकी प्राथमिकताओं में था।अति सुन्दर प्राकृतिक सुषमा से भरपूर गिरि में आदिनाथ भगवान की प्राचीन मनोज्ञ प्रतिमा के दर्शन से ह्रदय प्रफुल्लित हो जाता है।इस तीर्थ में आचार्य श्री विराग सागर महाराज ने पांच चातुर्मास किये हैं।

उन्होंने आगमानुसार निर्दोष समाधि साधना कर आत्मकल्याण कर लिया,किंतु उनके पवित्र भावनाओं को पूरा करना भारतीय जैन धर्मावलंबियों का दायित्व है। उन्हें विनयांजलि देते हुवे मुझे आचार्य श्री विद्यासागर महाराज द्वारा रचित ये पंक्तियां स्मरण में आ रही हैं |

“वेदचन्द जैन”

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here