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आत्म अनुष्ठान में रत साधु छोटे बड़े पशु पक्षी स्त्री पुरुष गरीब अमीर में कोई भेद नहीं करते – आचार्य कनकनंदी

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पारडा ईटीवार(विश्व परिवार) l सिद्धांत चक्रवर्ती वैज्ञानिक धर्माचार्य कनकनदी गुरुदेव ने पारडा ईटीवार से अंतरराष्ट्रीय वेबीनार में बताया कि योगी हमेशा आत्म अनुष्ठान में सलग्न में रहते हैं l आत्मा के ध्यान अध्ययन में रत रहते हैं l आत्म अनुष्ठान में रत साधु छोटे बड़े पशु पक्षी स्त्री पुरुष गरीब अमीर में कोई भेद नहीं करते l आधी व्याधि उपाधि मोक्ष मार्ग में बाधक है l साधु का लक्ष्य कृत कृत्य बनना, अरिहंत सिद्ध बनना है l
महाराज श्री ने कहा मोह व प्रसिद्ध की चाह में साधु स्वयं की गरिमा को स्वयं ही नष्ट कर देते हैं l नाम चाहना प्रसिद्ध चाहना मिथ्या दृष्टि जीव का काम है l साधु स्वयं को श्रद्धा प्रज्ञा से सिद्ध स्वरूप मानता है चाहे णमोकार मंत्र भी ना आ रहा हो l
आचार्य श्री कहते हैं
जिस करनी से बने अरिहंत सिद्ध महान l
उस करनी को हम करें हम तुम सिद्ध समान l
जितने परमेष्ठी सिद्ध बने हैं उसका भी अनंतवा भाग भावी सिद्ध नरक में निगोद में है पापी है मिथ्या दृष्टि है l भविष्य कालीन सिद्धो को नमस्कार करना अतः भावी जो सिद्ध होने वाले हैं अभी किसी भी पर्याय में हो उनके भावी गुणो को नमस्कार किया जाता है l
सोहम का अर्थ जो परमात्मा है वह मैं हूं साधु स्वयं को सोहंम मानते है l इसलिए किसी में भेदभाव नहीं करते हैं l प्राचीन शास्त्र श्रीभुवलय में भी कहा गया है कि सब धर्मो के भगवान को नमन है जो आठो कर्मों से रहित है l
जब भक्त भगवान के पास जाता है तो दास बनकर जाता है दासोहं दासोहं रटता रटता भगवान के दर्शन से नष्ट हो जाता है l सोहंम रह जाता है l सोहम का ध्यान करते-करते सकार मिट जाता है l फिर अविनाशी अविकारी अहम रह जाता हैl अहम अर्थात मै आत्म तत्व को प्राप्त करना हैl जो राग से युक्त जीवो को महत्व देता है वह स्वयं रागी द्वैषी बन जाता है l सत्ता संपत्ति बाहरी भौतिक पदार्थ आत्मा की शक्ति आत्मा का वैभव नहीं है l

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