(रायपुर) संत शिरोमणि आचार्य गुरुदेव विद्यासागर महाराज के परम प्रभावक शिष्य वात्सल्य मूर्ति निर्यापक श्रमण मुनि श्री समतासागर महाराज, मुनि श्री पवित्रसागर महाराज ऐलक श्री निश्चयसागर महाराज ऐलक श्री निजानंद सागर महाराज क्षु. श्री संयम सागर महाराज के परम सानिध्य में श्री आदिनाथ दि. जैन बड़ा मंदिर मालवीय रोड़ पर श्री समवसरण महामंडल विधान बाल ब्र.प्रतिष्ठाचार्य धीरज भैया राहतगढ़ के निर्देशन में दिनांक 16 मार्च रविवार से प्रारंभ होंने जा रहा है, जो कि लगातार 19 मार्च तक चलेगा। प्रवक्ता अविनाश जैन विद्यावाणी,एवं अतुल जैन गोधा ने बताया प्रातःकाल 7:15से घट यात्रा निकाली जाऐगी तत्पश्चात कार्यक्रम स्थल पर ध्वजारोहण किया जाऐगा तथा पात्रों का चयन होगा प्रतिदिन प्रातः7-15 से अभिषेक शांतिधारा एवं समवसरण विधान के मध्य में गुरुदेव की देशना का लाभ भी प्रतिदिन 9 बजे से मिलेगा श्री दि. जैन बड़ा मंदिर पंचायत टृस्ट/कार्यकारणी उपसमिति, बालिका मंडल, महिलामंडल सहित सकल जैन समाज रायपुर से अपील है कि उपरोक्त आयोजन में शामिल होकर धर्म लाभ लें।
मुनि श्री ने सन्मति नगर फाफा डीह में प्रातःकालीन धर्म सभा को सम्वोधित करते हूये कहा कि आप लोग समय समय पर धर्म तो बहूत करते हो परिणामों के साथ प्रवत्ति में भी धर्म आना चाहिये मजवूरी अथवा मजदूरी में धर्म नहीं करना चाहिये मजबूती के साथ धर्म करना चाहिये यदि आपकी देर से उठने की आदत है,तो फिर व्यक्ति चाहे तो वह अपनी आदतों को बदल सकता है। मुनि श्री ने शंकर नगर दि. जैन मंदिर की धर्म सभा में सम्वोधित करते हुये
कहा “भारतीय संस्कृति उत्सव प्रधान संस्कृति है” त्योहार मनुष्य ही मनाते है, पशु पक्षी नहीं मनाते क्यों कि वह किसी प्रकार से तनाव ग्रहस्त नहीं रहते लेकिन मनुष्य चिंता और तनाव में रहता है,और उसे बहूत विकल्प आते है, और अपने अपने कार्यों की व्यस्तता से वह अस्त व्यस्त हो जाता है, उदासीनता और परेशानी उसके जीवन में आ जाती है भारतीय संस्कृति के पवित्र पर्व और त्योहार आते है जो उदासीनता और परेशानियों से हटकर प्रसन्नता की ओर ले जाते है। मुनि श्री ने कहा कि यह मंदिर आपकी श्रद्धा के केंद्र है और श्रद्धा से भरा व्यक्ती अपने आराध्य स्थल को कुछ न कुछ अवश्य देता ही है। हमारे पूर्वजों की संस्कृति रही है कि गरीबी में घर में बैठकर रुखी रोटी भले ही खाता है लेकिन जब भी वह मंदिर आयेगा तो भगवान की आरती शुद्ध घी के दिया से ही करता है” जब वह भगवान की आरती घी से करता है तो एक दिन ऐसा आता है कि उसकी भी आरती उतरने लगती है भारतीय संस्कृति त्याग और श्रद्धा की है जितने भी पर्व त्योहार आते है वह सभी पर्व त्योहार आपको धर्म से जोड़ते है। पर्व और त्योहारों को विकृति का रुप प्रदान कर दिया है न दिवाली खराब थी न दशहरा खराब था न होली खराब है सभी का कोई न कोई उद्देश्य है व्यक्तिओं को परंपराओं से जोड़ने का एक मेसेज है उन पर्व की परंपराओं को समझा नहीं और मेंसेज भी विगाड़ कर रख दिया।
“होली” पर कींचड़ फैकने लगे व्यसन को अपनाने लगे त्योहार के उद्देश्य को ही समाप्त कर दिया
” आचार्य कुंद कुंद स्वामी कहते है कि तुम जब तक तुम अपने, स्वभाव में रहोगे तुम्हारे ऊपर कर्मो का रंग नहीं चड़ेगा जैसे ही आपका उपयोग बाहर की ओर गया कि कर्मो का रंग चड़ जाता है। आचार्य श्री ने मूकमाटी में लिखा है “कर” पर “कर” दो बच पाओगे,अन्यथा जैल में पछताओगे” इसके भी दो अर्थ है पहला सामाजिक व्यवस्था पर है यदि आपने समय से सरकार का कर चुका दिया तो ही आप बच पाओगे अन्यथा जैल में जाओगे दूसरा आध्यात्मिक पक्ष है “कर पर कर दो” अर्थात “हाथ पर हाथ धर कर ध्यान में बैठ जाओ अन्यथा कर्मों की जेल में सड़ जाओगे “होली खेलें मुनिराज अकेले बन में” कर्म काठ की होली बनाओ और उसमें ध्यान की अग्नि जलाओ मुनि श्री ने कहा कि जैन धर्म में होली का कोई विशेष उल्लेख नजर नहीं आता, लेकिन यह लौकिक पर्व के रूप में आप हम सभी मनाते है पर्व हमारे अंदर खुशियाँ प्रदान करते है सभी से प्रेम व्यवहार का संदेश प्रदान करते है इस अवसर पर मुनि श्री पवित्रसागर महाराज,ऐलक श्री निश्चय सागर महाराज ने भी सम्वोधन दिया इस अवसर पर ऐलक निजानंद सागर क्षु.संयम सागर महाराज विराजमान रहे।राष्ट्रीय प्रवक्ता अविनाश जैन एवं स्थानीय प्रचार प्रमुख अतुल जैन गोधा ने बताया मुनिसंघ का मध्यान्ह में विहार फाफाडीह जैन मंदिर से दि. जैन बड़ा मंदिर के मालवीय रोड़ लिये हुआ रविवार से यंहा पर विशेष आयोजन किये जा रहे है।