दयानगर (विश्व परिवार)। जैन दर्शन में श्रुतपंचमी का बहुमहत्व है, प्रभु द्वारा प्रतिपादित आगमश्रुत को जिनवाणी के रूप में मुनिराजों द्वारा संकलन कर जनमानस के लिए प्रयुक्त किया, जो आज जैन दर्शन का प्रमुख आधार हैं। यह पर्व जैन धर्म का एक महान और ऐतिहासिक पर्व है, जिसे ‘ज्ञान पंचमी’ और ‘प्राकृत भाषा दिवस’ के रूप में भी जाना जाता है। श्रुत पंचमी ज्येष्ठ शुक्ल पंचमी को मनाई जाती है और यह आगमों और शास्त्रों की वंदना, उनकी शुद्धता और संरक्षण की भावना से जुड़ी है।
ग्रंथों में वर्णित हैं कि इस दिन आचार्य धरसेन के निर्देशन में आचार्य पुष्पदंत और भूतबलि ने पहली बार जैन धर्म के मौखिक ज्ञान को ग्रंथों में लिपिबद्ध किया। इस ग्रंथ को ‘षट्खंडागम’ कहा जाता है, जो जैन धर्म का मूल स्तंभ है। इससे पहले भगवान महावीर की वाणी केवल मौखिक रूप से चलती थी, जिसे उनके शिष्य (गणधर) स्मरण रखते थे, इसलिए इसे ‘श्रुत’ परंपरा कहा गया।
इसकी स्मृति में श्रुतपंचमी मनाई जाती हैं ।
हनुमानताल मार्ग में मंगली बजरिया स्थित वर्तमान नव स्वरूप में लाल मंदिर जी के रूप में प्रतिष्ठित श्री पार्श्वनाथ दिगम्बर जैन “बरियाबाला मंदिर जी में आज प्रातः संगीतमय मां जिनवाणी की आराधना बड़े भक्तिभाव से करते हुए श्रुत स्कंध महामंडल विधान का आयोजन किया गया,अध्यक्ष सुनील सिंघई ने बतलाया कि आज सुबह से धार्मिक पूजन एवं श्रुत स्कंध यंत्र जी का अभिषेक विधानाचार्य शंशाक भैया,दयानगर के निर्देशन में सम्पन्न हुआ।
संपूर्ण बरियाबाला ट्रस्ट कमेटी द्वारा विधान में सम्मिलित समस्त श्रद्धालुओं का आभार प्रकट किया गया।