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लोगों की जिंदगी में कुछ घटनाएं बड़ा संयोग लेकर आती हैं-मंत्री ओ.पी. चौधरी

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रायपुर(विश्व परिवार)।  लोगों की जिंदगी में कुछ घटनाएं बड़ा संयोग लेकर आती हैं। अब छत्तीसगढ़ मंत्रिमंडल के एक सबसे नौजवान मंत्री ओ.पी. चौधरी राजनीति में आने के पहले आईएएस अफसर थे, और राजधानी रायपुर के कलेक्टर थे। फिर उन्होंने रमन सिंह सरकार के रहते हुए ही राजनीति में आना तय किया, और नौकरी से इस्तीफा दिया। उस वक्त मुख्य सचिव के बंगले पर जाकर उन्होंने बंगला-दफ्तर कहे जाने वाले कमरे में सीएस की टेबिल पर सामने बैठकर इस्तीफा लिखा था, और उन्हें दे दिया था। इसके मंजूर होते ही वे राजनीति में आए, पहला चुनाव हारा, और दूसरा चुनाव जीतकर वे मंत्री बने।
अब जिस बंगले के जिस कमरे में बैठकर उन्होंने मुख्य सचिव के सामने इस्तीफा लिखा था, आज वे उसी बंगले में मंत्री की हैसियत से रहते हैं, और बंगले का वही कमरा उनका आज का बंगला दफ्तर है। मेज बदल गई है, लेकिन कमरा वही है, और उस कमरे में पहला दस्तखत उन्होंने अपने इस्तीफे पर किया था, और अब वे रोजाना वहां दर्जनों दस्तखत करते हैं। कमरे की दीवारें भी कुछ हैरान होती होंगी।
साय सरकार ने युवा आयोग के अध्यक्ष पद पर अंबिकापुर के पार्षद विश्व विजय सिंह तोमर की नियुक्ति कर स्थानीय बड़े नेताओं को चौंका दिया है। तोमर अंबिकापुर के युवा मोर्चा के शहर अध्यक्ष हैं। चर्चा है कि उनकी नियुक्ति में प्रदेश प्रभारी नितिन नबीन की अहम भूमिका रही है। यही नहीं, महामंत्री (संगठन) पवन साय, और डिप्टी सीएम विजय शर्मा की सहमति रही है।
तोमर, डिप्टी सीएम विजय शर्मा जब युवा मोर्चा के प्रदेश अध्यक्ष थे, तब उनकी कार्यसमिति में भी थे। नितिन नबीन जब प्रदेश भाजपा के सहप्रभारी के तौर पर काम कर रहे थे, तब से तोमर उनसे जुड़े थे। ये अलग बात है कि ‘लाल बत्ती’ के दावेदारों में सरगुजा के जिन नेताओं के नाम की चर्चा रही है उनमें ज्यादातर नेता रायपुर में देखे जा सकते हैं। ऐसे में वहां तोमर को ‘लाल बत्ती’ देकर एक नई लाइन तैयार करने की कोशिश की गई है। देखना है कि तोमर बतौर युवा आयोग के अध्यक्ष कितने सफल रहते हैं।
राजीव भवन से मिल रही खबरों पर भरोसा करें तो पीसीसी में कोई बदलाव नहीं होना है। दीपक बैज और उनकी कार्यकारिणी को कम से कम छ माह का अभयदान मिल गया है। चर्चा है कि अध्यक्ष के लिए जो नाम चल रहे हैं वो भी अभी नहीं बनना चाहते। इसका पहला कारण अभी बने तो अगले चार वर्ष संगठन को चलाने खर्च अपनी जेब से करना होगा। (क्योंकि पार्टी कोष में विधायकों के अंशदान की हिस्सेदारी का हाल सब जानते)।
दूसरा कारण- सामने निगम पंचायत चुनाव में सत्ताधारी दल के मुकाबले हार जीत के आरोप से बचा जा सकेगा। ये चुनाव दिसंबर से फरवरी मार्च तक होंगे। तीसरा कारण- नए प्रभारी सचिवों के प्रदेश व्यापी दौरे भी होने हैं। उसके बाद ही उनका मशविरा भी होगा। इन्हें देखते हुए अध्यक्ष की नई नियुक्ति मार्च के बाद ही हो पाएगी। तब तक दीपक बैज को अभयदान मिल गया है, यह भी स्पष्ट है कि संगठन में रिक्त पद भी वे भर नहीं पाएंगे। वैसे दिल्ली से जुड़े सूत्र बताते हैं कि हाईकमान भी महाराष्ट्र, झारखंड विधानसभा चुनाव तक छत्तीसगढ़ जैसे छोटे और हारे हुए राज्य को लेकर नई नियुक्तियों को लेकर जल्दबाजी में नहीं है।

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