भारत के स्वच्छता अभियान में हुई प्रगति का दशक समारोह
नई दिल्ली(विश्व परिवार)। भारत में महिलाएं लंबे समय से उचित स्वच्छता सुविधाओं की कमी से प्रभावित रही हैं। सार्वजनिक स्थानों पर सुरक्षा, गोपनीयता और सम्मान महिलाओं के समक्ष महत्वपूर्ण चुनौतियां रही है। इन चुनौतियों से निपटने के लिए स्वच्छ भारत मिशन ने महिलाओं के अनुकूल शौचालय बनाने पर ज़ोर दिया है। सार्वभौमिक स्वच्छता की दिशा में प्रयासों में तेज़ी लाने के लिए, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 2 अक्टूबर 2014 को स्वच्छ भारत अभियान की शुरुआत की। यह पहल भारत के स्वच्छता अभियान की दिशा में एक परिवर्तनकारी बदलाव को चिह्नित करती है।
देश जहां स्वच्छ भारत अभियान का दशक समारोह मना रहा है, वहीं “स्वभाव स्वच्छता, संस्कार स्वच्छता” विषय के अंतर्गत स्वच्छता ही सेवा 2024 अभियान अपने सातवें वर्ष में प्रवेश कर रहा है। सामूहिक प्रयास और नागरिक भागीदारी इस अभियान में अग्रणी रहें है। विशेष रूप से महिलाओं के लिए समावेशी स्वच्छता सुविधाओं का विकास स्वच्छ भारत अभियान की सबसे प्रभावशाली पहल है।
कर्नाटक राज्य के मैजेस्टिक, बैंगलोर में भीड़भाड़ वाले केएसआरटीसी बस टर्मिनल पर बना स्त्री शौचालय महिलाओं के अनुकूल स्वच्छता की दिशा में हुए नवाचारों और सार्वजनिक स्वच्छता आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए बेकार पड़े वाहनों को पुनः उपयोग में लाने का एक बेहतरीन उदाहरण है। इन शौचालयों को भारतीय और पश्चिमी शैली के कमोड, एक इंसिनरेटर, एक सैनिटरी नैपकिन वेंडिंग मशीन और बच्चो को खिलाने और डायपर बदलने के स्थान की सुविधाओं के साथ डिजाइन किया गया है। इसके अतिरिक्त, सौर ऊर्जा प्रणाली द्वारा संचालित एक स्व-संचालित सौर सेंसर लाइट हर समय प्रकाश की सुविधा और महिलाओं की सुरक्षा को सुनिश्चित करती है। यह स्त्री शौचालय महिलाओं, विशेष रूप से छोटे बच्चों वाली माताओं के लिए, सार्वजनिक स्थानों पर आवश्यक सुविधा और सुरक्षा प्रदान करते हैं और लिंग-संवेदनशील बुनियादी ढाँचे की दिशा में एक आवश्यक कदम भी है।
नोएडा में भी महिलाओं और लड़कियों की आपातकालीन जरूरतों के अनुसार पिंक शौचालय बनाए गए है। इनमें सुविधा, सुरक्षा और निजता पर जोर दिया गया है। अगस्त 2019 में अपनी शुरूआत के बाद से ये शौचालय शहरी क्षेत्रों में एक आवश्यक सुविधा बन गए हैं। इन पिंक शौचालयों में सैनिटरी नैपकिन वेंडिंग मशीन और इंसिनरेटर से लेकर स्तनपान कराने वाली माताओं के लिए निर्दिष्ट स्थान, स्नान और कपड़े बदलने के लिए कक्ष और विश्राम करने के लिए अलग जगह की नि:शुल्क सुविधाएं सुबह 8 बजे से रात 8 बजे तक उपलब्ध है। इन शौचालयों को ओडीएफ++ मानदंडों के अनुरूप, दाग-रहित, स्वच्छ और समावेशी बनाया गया है, जिसमें दिव्यांगों के अनुकूल सीटें और आईसीटी-आधारित प्रतिक्रिया व्यवस्था जैसी सुविधाएं उपलब्ध हैं।
सार्वभौमिक स्वच्छता की दिशा में, महिलाओं के अनुकूल शौचालयों का निर्माण भारत की स्वच्छता, सुरक्षा और सभी के लिए सम्मान के प्रति बढ़ती प्रतिबद्धता का प्रमाण है। कर्नाटक में स्त्री शौचालय और नोएडा में पिंक शौचालय जैसी पहल यह दर्शाती है कि अभिनव बुनियादी ढांचा महिलाओं को सुरक्षित, स्वच्छ और सुलभ सुविधाएं प्रदान करके उनके जीवन को बदल सकता है। ये परियोजनाएं स्वच्छता आवश्यकताओं को पूर्ति के साथ लैंगिक समानता की दिशा में एक व्यापक अभियान का प्रतिनिधित्व करती है और यह सुनिश्चित करती है कि महिलाएं सार्वजनिक स्थानों पर आत्मविश्वास से आ-जा सकें। स्वच्छ भारत मिशन के एक दशक पूरे होने और स्वच्छता ही सेवा 2024 अभियान की निरंतर प्रेरणा के साथ, समावेशी स्वच्छता पर ध्यान न केवल सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिए एक अग्रणी कदम है, बल्कि भारत में महिलाओं के लिए अधिक न्यायसंगत और सशक्त भविष्य की ओर एक छलांग है।