Home दिल्ली दीक्षार्थी बहिनों की मांगलिक गोद भराई भी रश्म सम्पन्न हुई

दीक्षार्थी बहिनों की मांगलिक गोद भराई भी रश्म सम्पन्न हुई

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गुरु के प्रति समर्पण ही सबसे बड़ी साधना- आचार्य श्री विमर्श सागर जी
अमृत से घट भरना है,अमृत सिद्धि करना है।
प्रभु चरणों की भक्ति से, भव से पार उत्तरना है।।
श्रद्धा ही प्रभु का, दीदार करतये रे ।
जीवन है पानी की बूंद, कब मिट जाये रे।
गुरु आज्ञा ही शिष्यों का सच्चा साधना पथ है।
कृष्णानगर(विश्व परिवार)। अपने विश्व प्रसिद्ध महाकाव्य जीवन है पानी भी बूंद” भी पन्तियों से धर्मोपदेश की शुरुवात करते हुये कृष्णानगर जैन मंदिर में प.पू.भावलिंगी संत श्रमणाचार्य श्री 108 विमर्शसागर जी महामुनिराज ने कहा कि- जिंदगी के घट में अनंत काल से हम सिर्फ मौत का जल भरते आये हैं। जीवन के घट में कभी अमृत भरने का पुरुषार्थ नहीं किया। सांसे आ रही है’ सांसे जा रहीं हैं लेकिन हमें सांसों का संगीत सुनाई नहीं देता। श्रद्धा भी गीत जब सुनाई देता है तभी सांसों क्या संगीत अनुभव में आग है। जीवन का बोध उन्हें ही प्राप्त हो सकता है जिन्हे परमात्मा से प्रेम होता है। प्रेम के बिना जीवन भी कल्पना भी संभव नहीं है। प्रेम सभी के जीवन में होता है, बरस प्रेम के मायने सभी के पृथक-पृथक होते हैं। जिन्हें अपने शाश्वत अविनाशी बोध जीवन का बोध होता है उनका प्रम् परमात्मा के प्रति होता है। और जिन्हें जीवन का बोध नहीं जी मृत्यु का ही वरण करने को तत्पर हैं उनका प्रेम जगत के भोतिक प्र‌दायों के प्रति अपनी भाकांक्षाओं के प्रति होता है। जब अंग्रंग में आकांक्षाये, जागृत होती है तो आत्मा
पातित्मा के दर भीगी भी भओर भागता है। इसकाल में सर्वप्रथम भगवान ऋषभ ने भोगमार्ग से मोक्षमार्ग की ओर जाने की प्ररूपणा की। वे स्वयं प्रथम दिगम्बर मुनि बने और जगत भी बताया कि आत्मकल्याण के लिये भीग संस्कृति का व्याग और योग संस्कृति का आश्रय आवश्यक है।
संयमियों भी गोद भराई – परम पूज्य जिनागम पंथ प्रवर्तक श्रावलिंगी संत – श्रमणाचार्य श्री 108 विमर्शसागर जी महामुनिराज के मंगल सानिध्य में अके ही अनुज आचार्य श्री विहर्ष सागर जी मुनिराज भी युगल शिष्यार्य, दीक्षार्थी बा-ब्रः नीतू धीदी एवं बा-ब्र. प्रियंका दीदी भी मांगलिक गोद भराई भी रश्म बड़ी ही धूमधाम के साथ सम्पन्न हुई। गोद भराई पूर्व दोनों दीदीयों ने गुरु भाशीष प्राप्त किया। आचार्य श्री ने उन्हे आशीष दिया कि जीवन में सबसे बड़ी साधना शुरू के प्रति समर्पण का भाव है और शिवय के लिये सर्वोपरि गुरू आता है।

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