अवधपुरी (विश्व परिवार)। श्री विद्या प्रमाण गुरुकुलम् में पंचकल्याणक महोत्सव के तपकल्याणक दिवस पर आयोजित विशेष प्रवचन सभा में मुनिश्री प्रमाणसागर जी महाराज ने श्रद्धालुओं को जीवन के गहन रहस्य और आत्मिक साधना का स्मरण कराया।
प्रसिद्ध पारिजात कथा से प्रारंभ करते हुए मुनिश्री ने कहा —
“वृक्ष यदि फूल नहीं देता तो वह बांझ है। और जीवन यदि आत्मा को जाग्रत नहीं करता तो वह भी एक निष्फल वृक्ष है।”
तप – आत्मोद्धार का आह्वान
मुनिश्री ने भगवान ऋषभदेव के दीक्षा कल्याणक की पृष्ठभूमि में तप की महिमा बताते हुए कहा —
“राजपाट त्याग कर भगवान ने जीवन का अर्थ समझा और परमार्थ की दिशा में बढ़े। यही उनकी दीक्षा की सार्थकता थी।”
जीवन के चार मापदंड: अर्थ, व्यर्थ, अनर्थ और परमार्थ
मुनिश्री ने स्पष्ट किया —
अर्थ – जीवन की शक्तियों का उद्देश्यपूर्ण प्रयोग
व्यर्थ – शक्तियों का अपयोग
अनर्थ – शक्तियों का दुरुपयोग
परमार्थ – आत्मकल्याण के लिए उन शक्तियों का नियोजन
“यदि तुम्हारा जीवन किसी को शांति नहीं देता, तो तुम्हारा वृक्ष भी फलहीन है।”
प्रश्न आत्मा से: तुम्हारा ध्येय क्या है?
मुनिश्री ने श्रद्धालुओं से प्रत्यक्ष प्रश्न किया —
“क्या तुम्हारे जीवन की दिशा तुम्हारे ध्येय की ओर है?”
“गलत ट्रेन में बैठकर सही मंज़िल नहीं पाई जा सकती। यदि तुम्हारा उद्देश्य मोक्ष है, तो भोगों की ओर क्यों दौड़ रहे हो?”
राजा की माला और आत्मा का पुल
एक प्रभावशाली कथा के माध्यम से मुनिश्री ने समझाया —
“जीवन केवल 5 साल का राज्य नहीं है — उस पार जाने का पुल तैयार करना ही असली राजधर्म है। यदि तुमने वह पुल नहीं बनाया तो जीवन की उपलब्धियाँ मगरमच्छों का आहार बन जाएँगी।”
उपलब्धियाँ या आत्मिक उलझनें?
मुनिश्री ने कहा —
“नाम, काम, दाम, चाम — इन चार उपलब्धियों के पीछे भागने से पहले यह सोचो कि आत्मा की शांति किसमें है।”
“भगवान ने सब उपलब्धियाँ छोड़ दीं क्योंकि उनके उद्देश्य के सामने वे तुच्छ थीं।”
तपकल्याणक का जीवनमूल्य
मुनिश्री ने भावपूर्वक आग्रह किया —
“केवल भगवान को देखकर ताली मत बजाओ, भगवान की दिशा में स्वयं चलो — यही तपकल्याणक की सच्ची आराधना है।”
सभा में हजारों श्रद्धालु उपस्थित रहे। दीक्षा कल्याणक के दृश्य ने सभी को भावविभोर कर दिया। शोभायात्रा, अभिषेक, वंदन और पूजन के क्षणों से गुरुकुल परिसर में दिव्य ऊर्जा का संचार हो गया।