- नगर के व्यवसाई श्री भंवर लाल सरिया ने दीक्षा हेतु किया निवेदन : आचार्य श्री वर्धमान सागर जी
नई दिल्ली (विश्व परिवार)। पंचम पट्टाधीश वात्सल्य वारिधी आचार्य श्री वर्धमान सागर जी धरियावद विराजित हैं नगर के व्यवसाई श्री भंवर लाल सरिया ने दीक्षा हेतु आचार्य श्री को निवेदन किया आपके पिता ने भी सन 1979 में दीक्षा लेकर मुनि श्री उदय सागर जी बने थे आपकी समाधि 1980 में हुई ।आचार्य श्री ने पूजन के दौरान चढ़ाए जाने वाले द्रव्य किस आशय से चढ़ाए जाते हैं उन गुणों बाबद सरल भाषा में बताया। जो सिद्ध भगवान का गुणागुवाद किया जाता है ,उनकी प्रशंसा की जाती है उसकी विवेचना करते हुए बताया कि जो संसार के बंधनों से छूट गए हैं जिनमें अनंत दर्शन ,अनंत ज्ञान, अनंत सुख और अनंत वीर्य प्रकट हो गए हैं, जो द्रव्य कर्म ,भाव कर्म, और नौ कर्म से सर्वथा रहित हो गए हैं उन्हें सिद्ध कहते हैं। ऐसे अनंत सिद्ध परमात्मा लोक के अग्रभाग में विराजित हैं सिद्ध भगवान का समुदाय ही सिद्धचक्र कहलाता है ।
यह मंगल देशना आचार्य श्री वर्धमान सागर जी ने प्रगट की। वीणा दीदी, गज्जू भैया,राजेश पंचोलिया अनुसार आचार्य श्री उपदेश में बताया कि सिद्धचक्र विधान में सिद्धदशा प्रकट करने का विधान अर्थात उपाय बताते हुए सिद्धों का गुणानुवाद किया गया है ।ज्ञानी का परम लक्ष्य पूर्ण सुख प्रकट करना है अर्थ अतः उसके हृदय में पूर्ण सुखी अरिहंत और सिद्ध परमेष्ठी के गुणानुवाद के माध्यम से अपने लक्ष्य के प्रति सतर्क रहते हुए अशुभ भावों से सहज बच जाते हैं। सिद्ध चक्र विधान से अनेक रोग शारीरिक रोग तो दूर होते हैं जब से आचार्य श्री वर्धमान सागर जी महाराज धरियाबाद संघ सहित पधारे हैं।
अब वर्षाकाल तो समाप्त हो गया है किंतु नगर में आचार्य श्री वर्धमान सागर जी के पधारने के बाद से लगातार धार्मिकअनुष्ठान ,उपदेश,स्वाध्याय ,धर्म के शिक्षण संस्कार शिविरों के माध्यम से सतत धर्म की वर्षा हो रही है। संघ आगमन के बाद 52 साधुओं की उपस्थिति को चिर स्थाई रखने के लिए 52 जिनालय निर्माण का संकल्प नंदनवन, हिमवन विहार कर आचार्य श्री अजित सागर जी स्मृति हेतु चिकित्सा भवन हेतु आचार्य श्री सानिध्य में शिलान्यास हुआ। धार्मिक कार्यक्रमों में समाज के सभी उम्र के लोगों द्वारा शामिल होकर ज्ञान में वृद्धि हो रही हैं। इसी अगली कड़ी में मूल नायक श्री चंद्र प्रभु का मोक्ष कल्याणक विशेष कार्यक्रमों सहित 6 मार्च को मनाया जाएगा जिसमें भगवान का अनेक प्रकार के फलों,सूखे मेवे दूध, दही, धी,केशर,चंदन ,पुष्पों से पंचामृत अभिषेक होगा।फागुन शुक्ला अष्टमी 7 मार्च से 14 मार्च तक आचार्य श्री वर्धमान सागर जी ,मुनि श्री पुण्य सागर जी संघ के 52 साधुओं के मंगल सानिध्य ओर संहिता सूरी पंडित हंसमुख जी, ब्रह्मचारिणी वीणा दीदी के निर्देशन में श्री चंद्रप्रभु जिनालय में सिद्धचक्र मंडल विधान के माध्यम से चयनित सौभाग्य शाली इंद्र परिवारों द्वारा पूजन की जावेगी। 7 मार्च फागुन शुक्ला अष्टमी 24 फरवरी 1969 को आचार्य श्री धर्मसागर जी को आचार्य पद दिया गया। उसी दिन श्री वर्धमान सागर जी सहित 11 दीक्षा हुई । इसी कारण आचार्य श्री धर्म सागर जी का 57 वा आचार्य पदारोहण तथा आचार्य श्री वर्धमान सागर जी का 57 वा संयम दीक्षा वर्ष भक्ति भाव से मनाया जाने के लिए विशेष तैयारी चल रही हैं।आचार्य श्री वर्धमान सागर जी परम्परा के पंचम पट्टाधीश होकर 57 वर्ष के संयमी जीवन में 36 वर्षों से आचार्य हैं आपने अभी तक 113 दीक्षा दी हैं।