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देश के शीर्ष साहित्यकार विनोद कुमार शुक्ल को साहित्य अकादमी ने अपने सर्वोच्च सम्मान महत्तर सदस्यता से विभूषित किया

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रायपुर(विश्व परिवार)। देश के शीर्ष साहित्यकार, रायपुर के रहने वाले विनोद कुमार शुक्ल को साहित्य अकादमी ने शुक्रवार को अपने सर्वोच्च सम्मान महत्तर सदस्यता से विभूषित किया. साहित्य अकादमी ने रायपुर में उनके घर में एक संक्षिप्त आयोजन में उन्हें महत्तर सदस्यता प्रदान की. भारत में साहित्य अकादमी का यह सबसे बड़ा सम्मान है।
इस अवसर पर साहित्य अकादमी के सचिव के श्रीनिवास राव ने प्रशस्ति पाठ करते हुए कहा कि विनोद कुमार शुक्ल, कविता और गल्प का अद्भुत संयोग रचने वाले सर्जक हैं. यह संयोग कुछ ऐसा होता है कि विधाओं की सीमा का अतिव्यापन-सा हो जाता है. प्रथमतः कलावादी प्रत्ययों से संसाधित जान पड़ने वाली रचना में गहरे प्रवेश करने पर पता चलता है कि रचनाकार ने अमूर्तन को स्थानीयताओं से मूर्त और प्रयोजनीय बना दिया है. अपरिग्रह का अभ्यासी यह रचनाकार अभिव्यक्ति कला और शब्द-शक्तियों का ऐसा अपूर्व अन्वेषण करता है कि रचना रहस्य-लीला-सी लगने लगती है. किसी स्मृति के आख्यान-सी मृदुल और झिलमिल, जिसमें एक विलक्षण प्रशांति का सुख है।
उन्होंने कहा कि इस अर्थ में विनोद कुमार शुक्ल बिलकुल अपने-से रचनाकार हैं, जिनके मूल्यांकन के लिए कला प्रतिमानों को अपने अभिप्राय के लिए शंकित होना पड़ता है और इसलिए नए कला मापदंडों की आवश्यकता महसूस होती है। इसी नाते विनोद कुमार शुक्ल हमारे समय के सर्वश्रेष्ठ लेखकों में शुमार किए जाते हैं. उन्होंने कहा कि स्थानिकता का वैश्विकता से क्या रिश्ता है यह विनोद कुमार शुक्ल की रचनाओं को पढ़कर जाना जा सकता है. दुनियाभर के आदिवासी इन दिनों जल, जंगल, ज़मीन से विस्थापन के संकट से गुज़र रहे हैं. ऐसे में विनोद कुमार शुक्ल की कविताएं भरपूर स्थानिक एवं विशद् वैश्विक एक साथ हैं।
अपनी तरह के अकेले विनोद कुमार शुक्ल
1 जनवरी 1937 को राजनांदगांव में जन्मे विनोद कुमार शुक्ल पिछले 50 सालों से लिख रहे हैं. विनोद कुमार शुक्ल का पहला कविता-संग्रह ‘लगभग जयहिंद’ 1971 में प्रकाशित हुआ था. उनके उपन्यास नौकर की कमीज, खिलेगा तो देखेंगे, दीवार में एक खिड़की रहती थी हिंदी के श्रेष्ठ उपन्यासों में शुमार होते हैं. कहानी संग्रह पेड़ पर कमरा और महाविद्यालय भी बहुचर्चित रहे हैं. इसी तरह लगभग जयहिंद, वह आदमी चला गया नया गरम कोट पहनकर विचार की तरह, सब कुछ होना बचा रहेगा, अतिरिक्त नहीं, कविता से लंबी कविता, आकाश धरती को खटखटाता है, जैसे कविता संग्रह की कविताओं को भी दुनिया भर में सराहा गया है. बच्चों के लिये लिखे गये हरे पत्ते के रंग की पतरंगी और कहीं खो गया नाम का लड़का जैसी रचनाओं को भी पाठकों ने हाथों-हाथ लिया है. दुनिया भर की भाषाओं में उनकी किताबों के अनुवाद हो चुके हैं।
कई सम्मान और पुरस्कार
कविता और उपन्यास लेखन के लिए गजानन माधव मुक्तिबोध फेलोशिप, रजा पुरस्कार, वीरसिंह देव पुरस्कार, सृजनभारती सम्मान, रघुवीर सहाय स्मृति पुरस्कार, दयावती मोदी कवि शिखर सम्मान, भवानीप्रसाद मिश्र पुरस्कार, मैथिलीशरण गुप्त सम्मान, पं. सुन्दरलाल शर्मा पुरस्कार जैसे कई पुरस्कारों से सम्मानित हो चुके विनोद कुमार शुक्ल को उपन्यास ‘दीवार में एक खिड़की रहती थी’ के लिए 1999 में ‘साहित्य अकादमी’ पुरस्कार भी मिल चुका है. हाल के वर्षों में उन्हें मातृभूमि बुक ऑफ द ईयर अवार्ड भी दिया गया है. पुरस्कार के लिए विनोद कुमार शुक्ल को चुनने वालों में लेखक-संगीतकार अमित चौधरी, ईरानी- अमेरिकी पत्रकार रोया हाकाकियन और इथियोपियाई-अमेरिकी लेखिका माज़ा मेंगिस्टे थे।
पैनल ने कहा, “शुक्ल के गद्य और पद्य में सूक्ष्म और अनचीन्ही चीज़ों का अवलोकन है. उनके लेखन में जो आवाज़ सुनाई पड़ती है, वो एक गहरी बुद्धिमत्ता वाले चितेरे की है. गोया दिन में सपने देखने वाला एक व्यक्ति, जो बीच-बीच में हठात चकित हो उठता है.” पिछले ही साल उन्हें पेन अमरीका ने अंतर्राष्ट्रीय ख्याति के लिए नाबोकॉव अवार्ड से उन्हें सम्मानित किया था. एशिया में इस सम्मान को पाने वाले वे पहले साहित्यकार हैं. विनोद कुमार शुक्ल के उपन्यास ‘नौकर की कमीज’ पर जाने-माने फ़िल्मकार मणिकौल ने एक फ़िल्म भी बनाई थी।
स्थानिकता का वैश्विकता से क्या रिश्ता है यह विनोद कुमार शुक्ल की रचनाओं को पढ़कर जाना जा सकता है. दुनिया भर के आदिवासी इन दिनों जल, जंगल, ज़मीन से विस्थापन के संकट से गुज़र रहे हैं. ऐसे में विनोद कुमार शुक्ल की कविताएँ भरपूर स्थानिक एवं विशद् वैश्विक एक साथ हैं. विनोद कुमार शुक्ल, कविता और गल्प का अद्भुत संयोग रचने वाले सर्जक हैं. यह संयोग कुछ ऐसा होता है कि विधाओं की सीमा का अतिव्यापन-सा हो जाता है. प्रथमतः कलावादी प्रत्ययों से संसाधित जान पड़ने वाली रचना में गहरे प्रवेश करने पर पता चलता है कि रचनाकार ने अमूर्तन को स्थानीयताओं से मूर्त और प्रयोजनीय बना दिया है. अपरिग्रह का अभ्यासी यह रचनाकार अभिव्यक्ति कला और शब्द-शक्तियों का ऐसा अपूर्व अन्वेषण करता है कि रचना रहस्य-लीला- सी लगने लगती है. किसी स्मृति के आख्यान-सी मृदुल और झिलमिल, जिसमें एक विलक्षण प्रशांति का सुख है।
इस अर्थ में विनोद कुमार शुक्ल बिलकुल अपने-से रचनाकार हैं, जिनके मूल्यांकन हेतु कला प्रतिमानों को अपने अभिप्राय के लिए शंकित होना पड़ता है और इसलिए नए कला मापदंडों की आवश्यकता महसूस होती है और इसी नाते विनोद कुमार शुक्ल हमारे समय के सर्वश्रेष्ठ लेखकों में शुमार किए जाते हैं।

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