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अंतरंग आत्मा पर लगे कर्मों को संयम तप साधना के माध्यम से हटाया जाता है – आचार्य श्री वर्धमान सागर जी

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इंदौर (विश्व परिवार)। आचार्य श्री वर्धमान सागर जी संघ सहित मुंगाणा में विराजित हैं। दोपहर को शास्त्र स्वाध्याय में आचार्यश्री ने अंतरंग औरबहिरंग तप की विवेचना कर बताया कि अंतरंग की शुद्धि ज्यादा जरूरी है एक दृष्टांत बगुले के माध्यम से बताया कि बगुला भगत की कहानी सब जानते हैं बगुला श्वेत श्वेत रंग का किंतु उसका हृदय कपटी होता है वह नदी में ध्यान करने का ढोंग कर मछलियों का भक्षण करता है श्वेत मुद्रा के कारण उसे जीव साधु समझते हैं ।इसलिए अरिहंत जिनेंद्र भगवान द्वारा प्रतिपादित आचरण के विरुद्ध कार्य करना निंदनीय है इसलिए सभी का अंतरंग शुद्ध होना जरूरी है यह मंगल देशना आचार्य श्री ने वर्धमान सागर जी ने प्रवचन के दौरान बताई। ब्रह्मचारी गज्जू भैया, राजेश पंचोलिया अनुसार आचार्य श्री ने आगे बताया कि 6 काय के जीवो को प्रमाद रहित होकर कमलवत होना चाहिए । नदी में कमल के गुण के बारे में बताया कि वह जल में ऊपर रहता है पानी डालने पर भी स्थिर रहता है कमल जल में लिप्त नहीं होता है इसी प्रकार श्रावकों मुनियों को कर्मों के बंध होने के कारणों से बचना चाहिए उन्हें जीवन में जल में कमलवत रहना चाहिए राग और द्वेष के कारण कर्मों का बंध होता है ।अंतरंग और बाह्य परिग्रहों के कारण आत्मा में विशुद्धता नहीं होती। परिग्रहों के त्याग के बिना चित शुद्ध नहीं हो सकता है।जैन समाज अध्यक्ष करणमल एवं अनुरुद्ध ने बताया कि आचार्य श्री वर्धमान सागर जी श्री संघ सानिध्य में धर्मनगरी मुंगाणा श्री आदिनाथ मंदिर में दिनाँक 10 फरवरी 2025 से प्रतिदिन सायं 7 बजे से 8 बजे (आचार्य श्री की आरती) के बाद शुरू किया गया शिविर में बालक, बालिकाएं,युवक,युवतियां,पुरुष ,महिलाएं व बुजुर्ग सभी शिविर में भाग लेकर अपने ज्ञान में अभिवृद्धि एवं पुण्य का संचय कर रहे हैं|

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