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अनर्थ से बचना ही प्रयोजनभूत है: मुनि श्री १०८ पद्म सागर जी महाराज

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जबलपुर(विश्व परिवार)।आज संगम कॉलोनी जबलपुर में चातुर्मास रत निर्यापक श्रमण मुनि श्री १०८ प्रसाद सागर जी के संगस्थ वाक्य पटु मुनि श्री १०८ पद्म सागर जी ने जीवन के अनसुलझे रहस्यों को सुलझाते हुए बताया की अपने बारे में सोचो, अपने अनर्थों के बारे में सोचो दूसरे के भले के बारे में सोचो, यह अपाय विचय धर्मध्यान है और दूसरे का बुरा सोचने से दुध्यान होता है।अर्थ नीति के बिना गृहस्थ का जीवन चल नहीं सकता, लेकिन अनर्थ नीति से धन इकट्ठा करना ठीक नहीं।
प्रयोजन दूसरा होने पर हम प्रयोजनभूत को भूल जाते हैं।मुनि श्री ने बताया पहले दूध का दान होता था, आज चाय का, यह पाउच संस्कृति है, दरिद्रता का प्रतीक है एवं महाराज श्री ने सभी को प्रेरणा देते हुए कहा दुर्लभ क्षणों को व्यर्थ मत गवाओ, माला फेरो, स्तुति पाठ करो। पहले के समय में चक्की चलाते रहते थे और स्तुति पढ़ते रहते थे, मन को भटकने नहीं देते थे।
मुनिराज अहिंसा महाव्रत को पालने वाले होते है वे रात्रि में तो बोलते नहीं है, दिन में भी निष्प्रयोजन नहीं बोलते।अतः प्रयोजन के अभाव में बोलना भी हिंसा का कारण है एवं अनर्थों से बचने से रत्नत्रय धर्म पुष्ट होता है । आज सभी के बीच शहद का बहुत प्रचलन है परंतु मधु (शहद) की एक बूंद खाने से सात गाँव जलाने के बराबर दोष लगता है। इसलिए इस अनर्थ से बचना चाहिए। और जो अनर्थ से डरता है, वह विकास कर सकता है। अनर्थ से डरने वाला हमेशा सावधान रहता है। सो सभी सावधान रहे।

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