औरंगाबाद(विश्व परिवार)। हमने चारित्र चक्रवर्ती आचार्य श्री शांतिसागर जी महाराज को नहीं देखा। हमने अंकलीकर श्री आदि सागर जी को नहीं देखा। हमने ज्येष्ठ और श्रेष्ठ पूर्वा आचार्यों में, परम पूज्य तपस्वी सम्राट आचार्य श्री सन्मति सागर जी महाराज को देखा। तपस्वी सम्राट ने अपने चिंतन को, अपनी साधना को, बहु आयामी विस्तार दिया और जीवन जगत में, साधना, उपासना के विभिन्न रूपों और रंगों का संस्पर्श किया है। तपस्वी सम्राट का संपूर्ण जीवन सीधा और सरल था। तपस्वी गुरुदेव अपने सागर की गहराइयों और विराट अन्तेस की ऊंचाइयों को समेटे थे। एक निर्ग्रन्थ, आचार निष्ट साधक का तप के गगन में अकेले उड़ान भरना और अनंत आकाश की उस उड़ान में, कोई बीच में नहीं, सिर्फ प्रेम, करुणा, सदभाव और मैत्री का संचार था।
तपस्वी सम्राट का जीवन मानव की पहचान में अनगिनत राहों पर रुका और आचार्य श्री ने आत्म दृष्टि की सर्जना की। इन सब का लक्ष्य, आत्म सिद्धि और आत्म विशुद्धि तक की रचना की। आचार्य श्री की साधना में एक प्रवाह था, निरंतरता थी, शुचिता थी, पारदर्शिता थी, बिलकुल वैसे ही जैसे गोमुख से निकली गंगा से निश्चल प्रवाह रहता था। तपस्वी सम्राट की तप साधना को शब्दों की परिधि में बांधना संभव नहीं है। उसमें अवगाहन करने की अनुभूतियां शब्दातीत है। वह एहसास सुखमय और शुभमय आनंद का था। महाव्रतों की साधना में, रचे बसे आचार्य तपस्वी सम्राट श्री सन्मति सागर जी महाराज के रत्नत्रय की यात्रा के, उत्कर्ष से विकसित हुआ, उनका प्रखर व्यक्तित्व बन गया,, करुणा और अनेकांत का जीवन उनका दस्तावेज था। इसलिए मैंने कहा – तप साधना के रहस्य तपस्वी सम्राट आचार्य श्री सन्मति सागरजी महाराज के चौदह वीं समाधि उत्सव पर मेरी भावांजलि विनयाञ्जली, श्रद्धांजलि समर्पित करके, अनंत प्रणाम करता हूँ। अंतर्मना आचार्य प्रसन्न सागरजी महाराज कुलचाराम से बद्रीनाथ अहिंसा संस्कार पदयात्रा चल रही है।