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ज्ञान प्राप्ति के लिए गुरु के प्रति समर्पण होना अनिवार्य है – निर्यापक श्रमण मुनि श्री समतासागर महाराज

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  • “व्यापक कौन” गुरु अथवा गुरुवाणी ? – निर्यापक श्रमण मुनि श्री वीरसागर महाराज

डोंगरगढ़ (विश्व परिवार)। “गुरु” उस विशाल दृष्टी को रखते है,जो सहज में आने वाले एक शिष्य को अपने समान बना लेते है” उपरोक्त उदगार निर्यापक श्रमण मुनि श्री समतासागर महाराज ने प्रातः कालीन धर्मसभा को सम्बोधित करते हुये व्यक्त किये। उन्होंने कहा कि गुरुवर आचार्य श्री के दीक्षा दिवस पर एक बार मैने प्रवचन सभा में कहा था कि पारस के स्पर्श से लोहा सोना बन जाता है लेकिन इसमें बड़ा कोई आश्चर्य नहीं है बस इतना ही है कि किमत में फर्क आ गया| लोहा सस्ती धातू है और सोना महंगा है| समयसार की दृष्टि में लोहा हो या सोना दोनों ही बेकार की वस्तुयें है लेकिन आर्थिक दृष्टिकोण से देखा जाऐ तो लोहा और सोना में फर्क है| आचार्य गुरूदेव कहा करते थे कि पारसमणि लोहा को सोना अवश्य बनाती है लेकिन वह सोना जंग लगा सोना नहीं होना चाहिये| मुनि श्री ने सम्बोधित करते हुये कहा यहाँ पर ही नहीं बल्कि समूचे भारत में गुरुवर की पारसमणि ने इन सभी मुनिराजों तथा आर्यिका माताओं को चमकते हुये स्वर्ण में परिवर्तित कर दिया क्योंकि यह सभी जंग लगा सोने के रुप में नहीं थे| मुनि श्री ने कहा कि हमारे गुरुदेव तो पारसमणि के समान है जिन्होंने लोहे को ही सोना नहीं बनाया बल्कि गुरुदेव ने जब लोहे की छुरी को छुआ तो वह छुरी छुरी न रहकर छतरी का रुप धारण कर गयी जो सभी को छाया प्रदान कर रही है। इस अवसर पर निर्यापक श्रमण वीरसागर महाराज ने सम्बोधित करते हुये गुरुदेव आचार्य श्री विद्यासागरजी महाराज के हायकू “व्यापक कौन” गुरु अथवा गुरुवाणी किससे पूंछे” को संद्रभित करते हुये कहा कि जब व्याप्त व्यापक में समाहित हो जाता है तो हम किसको व्यापक मानें गुरु को अथवा गुरुवाणी को? का जवाब देते हुये कहा कि पर्याय दृष्टि से गुरु ही महान होते है और दृव्य दृष्टि से देखें तो गुरुवाणी ही महान होती है क्योंकि गुरुवाणी अनादिकाल से चली आ रही है वह न तो कभी समाप्त हुई है और न कभी समाप्त होगी| मुनि श्री ने कहा कि पर्याय आती है पर्याय चली जाती है शरीर मिलता है और शरीर चला जाता है किंतु जो जिनवाणी है वह कल भी गूंज रही थी और आज भी गूंज रही है उनका एक एक शब्द और दिये हुये संकेत और दी हुई शिक्षा प्रत्येक शिष्य के ऊपर है | प्रत्येक भक्त के हृदय में ऐसे ही गूंजती हुई सुनाई देती है | मुनि श्री ने कहा कि जब- जब हम द्रव्य की ओर दृष्टी लाते है तो सारे विकल्प समाप्त हो जाते है और जब जब हम पर्याय की ओर दृष्टि ले जाते है तो विकल्प शुरु हो जाते है| मुनि श्री ने कहा कि गुरु से राग करना प्रशस्त राग कहलाता है जो कि कल्याणकारी तथा विषयों से ऊपर उठाने वाला राग है परिवार का राग, बच्चों का राग, शरीर का राग पतन का मार्ग है वही इन सबसे हटकर यदि आपने अपनी आत्मा से राग कर लिया होता तो संसार में भटकना नहीं पड़ता| मुनि श्री ने कहा कि आत्मा से राग नहीं कर सकते तो कोई बात नहीं गुरु से ही राग कर लो आपकी सोच भी गुरु के समान होना चाहिये| मुनि श्री ने कहा जानने का अर्थ यहाँ बुद्धि का विषय नही है जानने अर्थ है जो जाना, उसे आत्मसात करो आपके बीच में गुरु के अलावा तीसरा कोई नहीं होना चाहिये| जैसे उनकी मन वचन और काया कि क्रियायें थी वैसी ही हमारी क्रियायें भी हो जायेगी| मुनि श्री ने कहा कि गुरुवाणी कभी अस्त नहीं होती यहाँ संतभवन से निकलते हुये अचानक देखा तो आचार्य भगवन् का बैठे हुये का कटाऊट लगा है पार्थिव रुप से गुरुदेव भले ही हमारे बीच नहीं है लेकिन उनकी चर्या उनकी शिक्षा को याद करते है तो वहां हमें प्रशस्त राग उत्कृष्ट राग के रुप में दिखाई देता है| जब राग गहराई में पहुंच जाता है तो व्यक्ती को उसके अलावा कुछ और दिखाई नहीं देता उन्होंने कहा कि अभेद बुद्धि से गुरु के प्रति भक्ती करो| गुरु जी कंहीं नहीं गये वह आज भी संकेत और निर्देश रुप से हम सबके हृदय में है| उन्होंने जो कुछ भी हम लोगों को राह दिखाई है उस पर चलना और ज्यादा जरुरी हो जाता है| उन्होंने कहा कि गतवर्ष की 17 फरवरी और आज की 17 फरवरी तारीख वही है लेकिन बहुत कुछ बदल गया जो सोचा न था वह हो गया और जो सोचा था वह न हो पाया उन्होंने कहा कि गुरूदेव ने कहा था कि दो तीन वर्ष तो बहुत होते है यदि कोई शिष्य चाहे तो एक वर्ष में ही गुरु से वह सब कुछ प्राप्त कर सकता है शर्त इतनी है कि उन दोनों के बीच में कोई तीसरा नहीं आना चाहिये| उस समय वह भगवान को भी भूल जाऐ तो ऐसा शिष्य एक वर्ष में भी वह सारा साहित्य, सारा ज्ञान कम समय में प्राप्त कर सकता है| आचार्य भगवन ने वह सब कम समय में ही दादा गुरु से वह सब कुछ प्राप्त कर लिया था। मुनि श्री ने कहा कि जैसे गुरु जी को अपने हृदय में विराजमान कर लोगे तो गुरु जी आपसे कहीं दूर नहीं है।प्रवक्ता अविनाश जैन विद्यावाणी तथा प्रचार प्रमुख निशांत जैन ने बताया कि गुरुदेव की समाधि का एक वर्ष पूर्ण होंने जा रहा है प्रथम चरण में हम सभी लोगों ने श्री सिद्धचक्र महामंडल विधान 1 फरवरी से शुरु किया था जो कि 6 फरबरी तक लगातार चला तथा द्वतीय चरण में 18 फरवरी को प्रातः 8:30 बजे से पांचो प्रतिभास्थलिओं की बहनों द्वारा आचार्य छत्तीसी विधान को किया जाऐगा एवं दोपहर 1:30 बजे से विनयांजलि सभा शुरु होगी जिसमें गुरुपूजा होगी तत्पश्चात प्रतिभास्थलिओं की बहनों द्वारा उनके संस्मरणों को याद किया जाऐगा एवं स्मृति महोत्सव सम्मान समारोह का आयोजन होगा। चंद्रगिरी तीर्थक्षेत्र के अध्यक्ष किशोर जैन, कोषाध्यक्ष श्री सुभाष चन्द जैन, चंद्रकांत जैन, अनिल जैन,जयकुमार जैन, यतीश जैन, सप्रेम जैन, उपाध्यक्ष राजकुमार मोदी, प्रदीप जैन विश्वपरिवार, नरेन्द्र जैन गुरुकृपा, रीतेश जैन डव्वू, विद्यायतन के अध्यक्ष विनोद बडजात्या, निखिल जैन, सोपान जैन, नरेश जैन, अमित जैन, दीपेश जैन सहित समस्त पदाधिकारियों ने समस्त धर्म श्रद्धालुओं से निवेदन किया है कि उपरोक्त कार्यक्रम में पधारकर पुण्यलाभ अर्जित करें।

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