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संपूर्ण परिग्रह का त्याग करना आकिंचन्य धर्म है। में अकेला हूं में शुद्ध हूं कषाय कर्म से जकड़ी दुखी आत्मा को धर्म रतनत्रय से सुखी करे – आचार्य श्री वर्धमान सागर जी

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पारसोला(विश्व परिवार)। उत्तम आकिंचन्य धर्म आज 10 लक्षण पर्व का 9 वा दिन है। प्राचीन लोग जानते हैं कि 9 का अंक अक्षय अंक है। पहाड़ा लिखकर देखेंगे तो भी 9 का बार-बार आता है ।आकिंचन धर्म का शास्त्र अनुसार आशय है कि मेरा कुछ भी नहीं है ,आप कुछ भी नहीं है ।दशलक्षण धर्म में प्रतिदिन उत्तम क्षमा, मारदव सरलता, सत्यता ,तप ,सत्य संयम आदि धर्म को प्राप्त किया विषय कषाय के त्याग से धर्म प्राप्त होता है। दशलक्षण पर्व महान पर्व है , यह पर्वों का राजा है ।तपस्या ,धर्म, तप से कर्मों की निर्जरा होती है। उक्त मंगल देशना आचार्य शिरोमणि श्री वर्धमान सागर जी ने पारसोला की महती धर्म सभा में प्रकट की। ब्रह्मचारी गज्जू भैया एवं राजेश पंचोलिया अनुसार आचार्य श्री में प्रवचन में आगे बताया कि तप की अग्नि से आत्मा के कर्मों को जलाना है, संसारी प्राणी यह महसूस करें कि विगत दिनों में 9 दिन में हमने क्या प्राप्त किया है 8 दिन से हटाए विषय कषाय कर्मों को समझकर कि इसे कष्ट होता है इस कारण संसार में परिभ्रमण कर रहे हैं यही कारण है कि आप आत्मा की आराधना कर रहे हैं ।अनेक ब्राह्य परिगृह करते हैं । ब्राह्य पदार्थ के प्रति ममता, आसक्ति से दुख मिलता है। पर्व अनुष्ठान से शक्ति क्षमता धर्म के प्रति बढ़ाना चाहिए। हमें क्रोध आया, कषाय आई ,परिग्रह आया इस का चिंतन करना चाहिए। संघ सानिध्य में आपको जागृत रहना होगा इसके लिए मोह ,कर्मों , कषाय की गहरी नींद से जागृत होने की बात है। कुंदकुंद आचार्य ने कहा कि मैं एक हूं ,मैं शुद्ध हूं ,इससे आत्मा का स्वरूप प्रकट होता है।
में अकेला हू यही मूल मंत्र है।साधु आत्मा को खोजने का पुरुषार्थ करते हैं।यही पुरुषार्थ तीर्थंकर,चक्रवती,कामदेव ने किया।तीर्थंकर भगवान ने धर्म तीर्थ का प्रवर्तन किया। कषाय के कारण आत्मा मलिन और दुखी हैं 10 धर्मो रतनत्रय का पुरुषार्थ कर आत्मा को सुखी बनावे। धर्म और आत्मा के अतिरिक्त आपका कुछ भी नहीं है ,परिग्रह दुख की जड़ है जिसके पास है उसके लिए भी और जिसके पास नहीं है उसके लिए भी ,दोनों दुखी है। नौ ग्रह की चर्चा सब करते हैं किंतु हम दसवां ग्रह परिग्रह को बताते हैं ।और दसवा परिग्रह ग्रह सभी ग्रहों के साथ है पुण्य भी कर्म है जो नष्ट होता है। पुण्य और पाप कर्म है दोनों के नष्ट होने पर ही शाश्वत सुख मिलता है ।परिग्रह से सुख शांति नहीं मिलती, दुख मिलता है । पर्व अच्छा जीवन जीने का संदेश देते हैं ।सिद्ध बनने पर अनुपम सुख मिलता है जो हमारे पास है हमारा नहीं है यही भाव से धर्म को समझेंगे यही सही धर्म है ।हम सबके साथ रहे किंतु यह सब हमारे भीतर नहीं रहे इस मूल मंत्र को समझना जरूरी है। जयंतीलाल कोठारी एवं ऋषभ पचौरी ने बताया कि घरियाबाद क्षेत्र के विधायक ने आचार्य वर्धमान सागर जी के दर्शन कर आशीर्वाद प्राप्त किया ।समाज द्वारा विधायक जी का सम्मान किया।आगामी अक्टूबर माह में आचार्य पदारोहण शताब्दी महोत्सव को देखते हुए खराब सड़कों , और पानी की समस्या के बारे में अवगत कराया इसके बारे में विधायक महोदय ने कहा कि मैं इस संबंध में शीघ्र शासन स्तर पर कार्रवाई करूंगा।

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